बहुत से लोगों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि चाय भारतीय पेय नहीं है। सोडावाटर की तरह यह भी एक आयातित पेय है और भारत में इसका प्रचलन ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासनकाल में हुआ था। चाय के पौधे का जन्म स्थान चीन, जापान व मलाया को माना गया है और वहीं से यह विश्व के अन्य मुल्कों तक पहुंचा। अब तो भारत भी चाय के उत्पादन में प्रसिद्धि प्राप्त कर रहा है और असम, दार्जिलिंग, नीलगिरी, त्रिपुरा, देहरादून आदि स्थानों पर उत्पादित चाय को उत्तम माना जाता है। चीन का औषध शास्त्र चाय के आरोग्यकारी गुणों को तो मानता है पर यह स्मरण भी करता है कि यह पेय सदैव गुणकारी नहीं होता । प्राचीन चीनी चिकित्सकों के अनुसार तेज आग पर उबालने से चाय के गुण नष्ट हो जाते हैं और देर की बनी हुई चाय जहर का रूप ग्रहण कर लेती है किन्तु इसके विपरीत आधुनिक वैज्ञानिकों का मानना है कि चाय ताजा हो या बासी, वह सदैव मीठा जहर ही है, और कुछ नहीं। आयुर्वेद के अनुसार चाय में अवगुण ज्यादा और गुण कम हैं। हाँ , चाय जहर को जागृत करती है, रूचि उत्पन्न करती है , त्वचा और मूत्राशय को प्रभावित कर पसीना—पेशाब को बहुतायात से लाती है। चाय मानसिक उत्तेजना को क्षणभर के लिए बढ़ा देती है और यही कारण है कि लोग इसे थकान मिटाने वाला पेय समझते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार चाय में पोषक तत्वों का घोर अभाव है। पत्तियों में कुछ प्रोटीन, कार्बोदित व स्नेह की मात्रा है तो वह चाय बनाने के समय ही नष्ट हो जाती है। चाय की ताजा पत्तियों मेंं कैरोटीन, रिबोफ्लेबिन, निकोटिनिक एसिड, पेन्थोनिक एसिड, एस्कोर्बिक एसिड, थियोफिलिन, थियोब्रामिन, डेक्सट्रिन्स, इनोसिटोल आदि द्रव्य भी हैं पर चाय पीने से उन तत्वों का लाभ नहीं मिलता हैं क्योंकि एक तो वे नष्ट हो जाते है और दूसरी बात कि चाय में मौजूद कैफीन व टेनिन नामक जहर कुछ ज्यादा ही नुकसान पहुंचा देता है। चाय में कैफीन दो से तीन प्रतिशत तक होती है जो बहुत ही घातक पर ‘स्लो पायजन’ है। उसका असर तीन तरह से होता है, नाड़ी —तंत्र की उत्तेजना और सभी मांसपेशियों में बल की अनुभूति और इसी के कारण शरीर में स्फूर्ति की अनुभूति होती है पर यह स्नायुतंत्र के ऊपर प्रकृति —विरूद्ध असर डालकर धड़कन बढ़ाती है और अनिद्रा उत्पन्न करती है। वैसे सिरदर्द, नाड़ियों की कमजोरी, पेशाब की कमी, वगैरह में यह कुछ हद तक उपयोगी सिद्ध होती है। चाय में सबसे जहरीला तत्व है टेनिन जो १२ से १५ प्रतिशत की मात्रा में रहता है ।चाय की पत्ती उबालने पर टेनिन एसिड उत्पन्न होता है। यह यकृत—स्राव को हानि करता है, रक्तवाहिनियों की दीवारें सख्त बनाता है और रक्त संचालन में बााधा उत्पनन कर कई बीमारियों को जन्म देता है टेनिन। धीमा जहर है अत: इसका दुष्परिणाम दूरगामी होता है। कब्ज, अनिद्रा, भूख की कमी, पेट की खराबी आदि इसके प्राथमिक लक्षण हैं और समय से इलाज न होने पर यह यही कई बीमारियों के अतिथि सिद्ध होते हैं। अत: चाय पीजिए पर कम। वक्त—बेवक्त और भोजन के तत्काल पूर्ण या तत्काल पश्चात चाय बिल्कुल नहीं पीनी चाहिए। ज्यादा देर उबली व देर की बनी चाय भी नहीं पीजिए तो बेहतर है। बेड —टी तो हर हाल में बन्द कर दीजिए क्योंकि यह पेट के लिए बहुत हानिकारक है।