मुक्तागिरि सिद्धक्षेत्र, परतवाड़ा से १४ किलोमीटर तथा अमरावती से ६५ किलोमीटर की दूरी पर मध्यप्रदेश के बैतूल जिला में स्थित है।
सतपुड़ा पर्वत के नयनाभिराम हरे-भरे वृक्षों के मध्य २५० फुट ऊँचाई से गिरती जलधारा के मध्य १६वीं शताब्दी के कई मंदिर हैं। कहा जाता है – यहाँ १० वें तीर्थंकर
शीतलनाथजी भगवान् के समवसरण आने पर मोतियों की वर्षा हुई थी, इस कारण से यह क्षेत्र मुक्तागिरि कहलाता है।
इस क्षेत्र से साढ़े तीन करोड़ मुनि निर्वाण को प्राप्त हुए थे । यहाँ पर पार्श्वनाथ भगवान् का पहला मंदिर शिल्प कला का सुंदर उदाहरण है। प्रतिमा सप्तफण मण्डित एवं प्राचीन है।
जनश्रुति के अनुसार- यहाँ समय-समय पर केसर की वर्षा होती है ।
मंदिर क्रमांक १० मेंढ्रगिरि के नाम से प्रसिद्ध है, पहाड़ी के गर्भ में खुदा हुआ अति प्राचीन मंदिर है। इसकी नक्काशी, स्तम्भों व छत की अपूर्व रचना दर्शनीय है।
यहाँ पर भगवान् शांतिनाथ की अति मनोज्ञ प्रतिमा है। पहाड़ पर ५२ तथा तलहटी में २ जिनालय हैं।
भारत सरकार द्वारा इसे पर्यटन क्षेत्र घोषित किया गया है। यूरोपियन लोग इस तीर्थ का दर्शन को आते थे। उनका श्रद्धान है कि जो एक बार भी इस पर्वत का दर्शन कर जाता है। उसकी तरक्की होती है और धन भी प्राप्त होता है।
आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के तीन चातुर्मास सम्पन्न हुए एवं इस क्षेत्र पर आचार्य श्री द्वारा ११ फरवरी १९९८ में ९ मुनि दीक्षाएँ एवं १६ मई १९९१ में ७ क्षुल्लक दीक्षाएँ प्रदान की गई ।