मुक्ताशुक्तिर्मता मुद्रा जठरोपरि कूर्परम्।
ऊर्ध्वजानो: करद्वन्द्वं संलग्नङ्गुलि सूरिभि:।।११।।
अर्थात्-दोनों हाथों की अंगुलियों को मिलाकर और दोनों कुहनियों को उदर पर रखकर खड़े हुए को आचार्य मुक्ताशुक्तिमुद्रा कहते हैं।
भावार्थ-दोनों कुहनियों को पेट पर रखना और दोनों हाथों को जोड़ कर अंगुलियों को मिला लेना मुक्ताशुक्तिमुद्रा है।।११।।