१०८ फुट भगवान ऋषभदेव अंतर्राष्ट्रीय पंचकल्याणक की कुशल सम्पन्नता पर दिनाँक १७ फरवरी को सायंकाल मंच पर एकाएक ही ऐसे अद्भुत क्षण प्रगट हुए, जिनको देखकर प्रत्येक भक्त के मनोभाव में रोमांच पैदा हो गया और मंचासीन आचार्यों द्वारा अपनी वरदायनी वाणी से त्रिरत्नों का भरपूर सम्मान हुआ।
जी हाँ! त्रिरत्न अर्थात् मूर्ति निर्माण की प्रेरणास्रोत पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी, मार्गदर्शिका प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी तथा मूर्ति निर्माण के यशस्वी अध्यक्ष व महोत्सव के कुशल नेतृत्वकर्ता कर्मयोगी पीठाधीश स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी। इन त्रिरत्नों का सम्मान सप्तम पट्टाचार्य श्री अनेकांतसागर जी महाराज द्वारा समायोजित किया गया, जिसमें सर्वप्रथम पूज्य पीठाधीश स्वामीजी के कर्तृत्व की शब्दातीत प्रशंसा करते हुए आचार्य श्री अनेकांतसागर जी महाराज, आचार्य श्री पद्मनंदि जी महाराज तथा आचार्यश्री देवनंदी जी महाराज सहित सभी आचार्यों ने दोनों वरदहस्त उठाकर पूज्य स्वामीजी का आशीर्वादस्वरूप सम्मान किया। पुन: सभी आचार्यों ने स्वयं अपने करकमलों से पूज्य स्वामीजी के गले में गुलाब की माला से, पुन: लौंग की शुद्ध मंत्रित माला से तथा ड्रायफूट की माला से उनका अति भव्य सम्मान किया।
आचार्यों ने कहा कि आज इस सृष्टि पर लाखों वर्षों के लिए दिगम्बर जैन धर्म का एक स्थाई कीर्तिमान स्थापित हुआ है, जिसके माध्यम से जैनधर्म तथा अहिंसामयी सिद्धान्तों की व्याख्या सारे जगत में सदैव गूंजती रहेगी। अत: ऐसे महान कार्य की अतिशयकारी सफलता पर हम इस कार्य के सूत्रधार स्वामीजी को अनंतगुणा मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
इसी अवसर पर चांदी के १०८ सिक्कों से बनी विशाल माला पहनाकर पूज्य स्वामीजी को आचार्यश्री अनेकांतसागर जी महाराज ने सम्मानित किया और वस्त्र व साहित्य भेंट करके आशीर्वाद प्रदान किया।
इसी क्रम में प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी का भी आचार्यों के समक्ष आगमन हुआ और सभी आचार्यों ने मंगल आर्शीवाद स्वरूप उनका भी पुष्पवृष्टि व पिच्छी-कमण्डलु-साहित्य भेंट के साथ सम्मान किया।
पश्चात् पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी के प्रति सभी आचार्यों ने अपना गरिमामयी आशीर्वाद देते हुए पूज्य माताजी को इस सृष्टि पर साक्षात् सरस्वती का अवतार बताया।
पूज्य माताजी द्वारा सोचा गया प्रत्येक कार्य इस सृष्टि पर सदैव पूरा हुआ है अत: उनके कंठ में सिद्धिस्वरूप सरस्वती विराजमान हैं, जिसके कारण २० वर्ष पूर्व सन् १९९६ में सोचा गया अकल्पनीय कार्य भी विशाल पर्वत में १०८ फुट भगवान ऋषभदेव प्रतिमा के रूप में आज १७ मार्च २०१६ को पूर्ण हुआ है, यह पूज्य माताजी के सारस्वत्य का प्रत्यक्ष उदाहरण है। इस प्रकार पूज्य माताजी के प्रति गुणानुराग करते हुए आचार्यों ने अपनी विनयांजलि अर्पित की और पूज्य माताजी को पिच्छी-कमण्डलु के साथ शास़्त्र भी भेंट किया।