जैसे सिंह के पैर के नीचे पड़े हुए हिरण की कोई भी रक्षा करने वाला नहीं होता, वैसे ही मृत्यु के द्वारा ग्रहण किए हुए जीव की कोई भी रक्षा नहीं कर सकता।