(पंचम_खण्ड)
समाहित विषयवस्तु
१. पूज्य माताजी यश: काय से सदा अजर-अमर रहेंगी।
२. जब तक सूरज-चाँद, धरा-आकाश, नदियाँ-पहाड़ हैं, तब तक माताजी जीवित रहकर हम सबका उपकार करती रहें।
३. पूज्य माताजी स्त्रीलिंग छेद कर, मुनिव्रत धारण कर, केवलज्ञान प्राप्त कर निर्वाण प्राप्त करें-यही अभिलाषा है।
४. लेकिन जब तक माताजी ने निर्वाण नहीं पाया, तब तक उनके चरणों का साथ, उनका गुरुरूप में सान्निध्य हमें प्राप्त होता रहे।
५. माताजी सदा जयवंत रहें।
तन औदारिक, पुद्गल रचना, इसका होता सतत मरण।
लेकिन तन साहित्य अमर है, इसका होता नहीं क्षरण।।
है उत्कृष्ट साहित्य आपश्री, कालजयी हितकारी है।
सार्वभौम-सर्वत्र समादृत-सर्वकाल उपकारी है।।१६८८।।
जरा-मरण आता भौतिक तन, तन साहित्यिक अजर-अमर।
भौतिकतन तो जल बुदबुद है, यश:काय है अविनश्वर।।
वरिष्ठतमा हैं साध्वी माता, बालयोगिनी बीस शती।
यश:काय से अजर-अमर हैं, श्रीमाताजी ज्ञानमती।।१६८९।।
जब तक भूतल पर शोभित गिरि, सरिताएँ हैं प्रवहमान।
जब तक सूरज-चाँद सितारे, नील गगन में ज्योतिर्मान।।
जब तक हैं जिनवर-जिनवाणी, मंगल-उत्तम-शरणाचार।
तब तक माता ज्ञानमती जी, करती रहेें स्व-पर कल्याण।।१६९०।।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती जी, बनें स्वर्ग की अधिकारी।
पुरुषदेह पा मुनिव्रत धारें, हों द्वादश तप आचारी।।
श्रेणी मांड़ै, घात घातिया, पावें अक्षय केवलज्ञान।
भव्यजीव उपदेशन करके, अंतिम पद पावें निर्वाण।।१६९१।।
लेकिन तब तक माताजी के, श्रीचरणों का साथ रहे।
मेरे शिर पर आपश्री के, शुभाशीष का हाथ रहे।।
जनम-जनम हों गुरू आप ही, मैं भी शिष्य का पद पाऊँ।
चंदन-मोती-रवि संग बैठूँ, माताजी के गुण गाऊँ।।१६९२।।