जिनेन्द्र देव ने कहा है कि (सम्यक्) दर्शन, ज्ञान, चारित्र मोक्ष का मार्ग है। साधुओं को इनका आचरण करना चाहिए। यदि वे स्वाश्रित होते हैं तो इनसे मोक्ष होता है और पराश्रित होने से बंध होता है। धर्मादिश्रद्धानं, सम्यक्त्वं ज्ञानमंगपूर्वगतम्। चेष्टा तपसि चर्या, व्यवहारो मोक्षमार्ग इति।।
धर्म आदि तत्त्वों पर श्रद्धा रखना सम्यक् दर्शन है। अंगों व पूर्वों में निहित जिनवाणी का ज्ञान सम्यक््â ज्ञान है और तपाराधना में प्रयत्नशील रहना सम्यक् चारित्र है। यह व्यवहार अथवा आचरण ही मोक्ष का मार्ग है।