बन्ध हेतुओं के अभाव और निर्जरा से सब कर्मो का आत्यन्तिक क्षय होना ही मोक्ष है। जब आत्मा कर्ममल (अष्टकर्म) कलंक (राग,द्वेष, मोह) और शरीर का अपने से सर्वथा जुदा कर देता है तब उसके जो अचिन्तय स्वभाविक ज्ञानादि गुणरूप और अव्याबाध सुखरूप सर्वथा विलक्षणस अवस्था उत्पन्न होती है उसे मोक्ष कहते है।