‘‘बंध के हेतुओं का अभाव और निर्जरा से सब कर्मों का आत्यन्तिक क्षय होना ही मोक्ष है।’’ मिथ्यादर्शनादि बंध हेतुओं का अभाव होने से नूतन कर्मों का अभाव होता है और निर्जरारूप हेतु के मिलने पर अर्जित कर्मों का नाश हो जाता है। समस्त कर्मों का आत्यन्तिक वियोग हो जाना मोक्ष है। अयोगकेवली गुणस्थान के उपान्त्य समय में यह जीव ७२ प्रकृतियों का विनाश करके शेष १३ प्रकृतियों का अन्त समय में नाश कर देता है। मोक्ष में जीवत्व, सम्यक्त्व, केवलज्ञान और केवलदर्शन तथा सिद्धत्व, ये पाँच भाव पाये जाते हैं। शेष भावों का अभाव हो जाता है।