नाशिक नामक नगर में कनकरथ राजा की रानी का नाम कनकमाला था। कोतवाल का नाम यमदण्ड था। उसकी माता व्यभिचारिणी थी। एक बार यह माता यमदण्ड की पत्नी अर्थात् अपनी पुत्र बहू के वस्त्राभूषण लेकर, कहीं एकांत स्थान में किसी संकेतित जार के लिये पहुँची। दैवयोग से यह यमदण्ड रात्रि में वहां पहुँचा। उस माता ने रात्रि में उसे न पहचान कर उसके साथ व्यभिचार किया और अपने पास के वस्त्राभूषण उसे दे दिये। उसने दिवस में घर आकर वे वस्त्राभूषण अपनी स्त्री को दे दिये। तब स्त्री ने उससे कहा कि मैंने यह सब सासु को दिये थे। यमदण्ड ने समझ लिया कि जिसके साथ मैंने व्यभिचार किया है वह मेरी माँ है। फिर भी वह विरक्त न होकर प्रतिदिन रात्रि में वहीं जाकर उसके साथ कुकृत्य करता रहा। यमदण्ड की पत्नी के द्वारा यह समाचार धोबन को मिला, उसने मालिन को कहा और मालिन ने रानी से बताया। रानी ने राजा से कहकर गुप्तचर से इसका पता लगाकर उसे दण्डित किया। जिससे वह मरकर दुर्गति में चला गया।