रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज-मैं तो आरती उतारूँ रे……
मैं तो आरती उतारूँ रे, रत्नपुरी तीरथ की।
जय जय जय रत्नपुरी जय जय जय-२…।।०।।
तीर्थंकर प्रभु धर्मनाथ, जनमे थे जहाँ पर।..जनमे थे जहां पर।
भानुराज पिता सुप्रभा, माता के घर पर।।…माता के घर पर।।
देव इन्द्र आ गए, प्रभु के दर्श पा गए, मुखड़ा निहारूँ रे,
हो प्यारा प्यारा मुखड़ा निहारूँ रे।।
मैं तो आरती उतारूँ रे…।।१।।
चार कल्याण से पावन, है रत्नपुरी नगरी।…रत्नपुरी नगरी।
रौनाही के नाम से प्रसिद्ध, रत्नपुरी नगरी।।…रत्नपुरी नगरी।।
झूम झूम नृत्य करूँ, घूम घूम दर्श करूँ, प्रभु को निहारूँ मैं,
प्यारे प्यारे प्रभु को निहारूँ मैं।।
मैं तो आरती उतारूँ रे…।।२।।
जिनमंदिर व मानस्तम्भ, की मंगल आरती करूँ।…मंगल आरती करूँ ।
‘चन्दनामती’ सुख सद्म, पा गुण प्राप्ती करूँ।।…पा गुण प्राप्ती करूँ ।।
तीर्थनाथ को भजूं, तीर्थराज को जजूँ, आरति उतारूँ रे,
तीर्थ की आरती उतारूँ मैं।।
मैं तो आरती उतारूँ रे…।।३।।