रम्मकविजओ रम्मो हरिवरिसो व वरवण्णणाजुत्तो। णवरि विसेसो एक्को णाभिणगे अण्णणामािण१।।२३३५।।
रम्मकभोगखिदीए बहुमज्झे होदि पउमणामेणं। णाभिगिरी रमणिज्जो णियणामजुदेिह देवेिह।।२३३६।।
केसरिदहस्स उत्तरतोरणदारेण णिग्गदा दिव्वा। णरकंता णाम णदी सा गच्छिय उत्तरमुहेणं।।२३३७।।
णरकुंतकुंडमज्झे णिवडिय णिस्सरदि उत्तरदिसाए। तत्तो णाभिगििरदं कादूण पदाहिणं पि पुव्वं व।।२३३८।।
गंतूणं सा मज्झं रम्मकविजयस्स पच्छिममुहेिह। पविसेदि लवणजलिंह परिवारणदीिह संजुत्ता।।२३३९।।
रमणीय रम्यकविजय भी हरिवर्ष के समान उत्तम वर्णना से युक्त है। विशेषता केवल एक यही है कि यहाँ नाभिपर्वत का नाम दूसरा है।।२३३५।। रम्यकभोगभूमि के बहुमध्यभाग में अपने नाम वाले देवों से युक्त रमणीय पद्म नामक नाभिगिरि स्थित है।।२३३६।। केसरी द्रह के उत्तर तोरणद्वार से निकली हुई दिव्य नरकान्ता नामक प्रसिद्ध नदी उत्तर की ओर गमन करती हुई नरकान्तकुण्ड के मध्य में पड़कर उत्तर की ओर से निकलती है। पश्चात् वह नदी पहिले के ही समान नाभिपर्वत को प्रदक्षिण करके रम्यकक्षेत्र के मध्य से जाती हुई पश्चिममुख होकर परिवारनदियों के साथ लवणसमुद्र में प्रवेश करती है।।२३३७-२३३९।।