== आशीविष, दृष्टिविष, क्षीरस्रवी (क्षीरस्रावी), मधुस्रवी (मधुस्रावी), अमृतस्रवी (अमृतस्रावी), सर्पिस्रवी (सर्पिस्रावी)। १. आशीविष – जिस शक्ति से दुष्कर तप से युक्त मुनि के द्वारा ‘मर जावो’ इस प्रकार कहने पर जीव सहसा मर जावे। २. दृष्टिविष – जिससे रोष युक्त मुनि द्वारा देखने मात्र से जीव सहसा मर जावे। ३. क्षीरस्रवी – मुनि के हस्ततल पर रखे हुए रूखे आहारादि तत्काल ही दुग्ध परिणाम को प्राप्त हो जाये अथवा जिनके वचन दुग्धवत् पुष्टिकारक होवें। ४. मधुस्रवी – मुनि के हाथ का आहार मधुरस युक्त हो जावे या उनके वचन मनुष्य, तिर्यंचों के दु:खनाशक होवें। ५. अमृतस्रवी – मुनियों के हाथ का रुक्ष आहार अमृतवत् हो जावे या उनके वचन अमृतवत् तुष्टि- प्रद होवें। ६. सर्पिस्रवी – मुनियों के हाथ का रुक्ष आहार क्षणमात्र में घृतरूप को प्राप्त कर ले या जिनके वचन दु:खादि को शांत कर देते हैं।