तर्ज—करती हूँ तुम्हारी पूजा…………..
करते हैं तीर्थ की आरति, आतम ज्योति जलेगी।
मुनिसुव्रत प्रभु की अर्चा, भव के क्लेश हरेगी।।
जय राजगृही जी-२।।टेक.।।
इस नगरी के गिरिव्रज, वसुमति, कई नाम शास्त्र में हैं।
इतिहास जुड़े हैं कई यहां से, तीर्थ धरोहर हैं।।
पावन भूमी की यशगाथा, यशवृद्धि करेगी।।मुनिसुव्रत.।।१।।
हुए वर्ष करोड़ों जब तीर्थंकर, मुनिसुव्रत जन्में।
माता सोमावति पितु सुमित्र के, महल रतन बरसे।।
स्वर्गों से आए इन्द्र-इन्द्राणी, भक्ति करी थी।।मुनिसुव्रत.।।२।।
प्रभु महावीर की दिव्यध्वनि, थी पहली यहीं खिरी।
हुआ धर्मचक्र का वर्तन, तब से श्रद्धा अधिक बढ़ी।।
विपुलाचल पर्वत की यात्रा, सुख तोष भरेगी।।मुनिसुव्रत.।।३।।
इस नगरी में हैं पंच पहाड़ी, जो मनभावन हैं।
कई महामुनी गए मोक्ष यहां से, तीरथ पावन है।।
हर दृष्टि से महिमाशाली है, हर इच्छा पूरेगी।।मुनिसुव्रत.।।४।।
माँ ज्ञानमती के चरण पड़े, अरु तीर्थ विकास हुआ।
कई-कई रचनाएं बनीं, तीर्थ को सुन्दर रूप मिला।।
‘‘इन्दु’’ भूमि यह परम पूज्य है, पूज्यता देगी।।मुनिसुव्रत.।।५।।