मुनिसुव्रतेश जन्मभूमि को प्रणाम है।
श्री राजगृही तीर्थ की महिमा महान है।।टेक.।।
यूँ तो जगत में जन्मते हैं प्राणि अनन्ते।
मरते हैं प्रतिक्षण भी यहाँ प्राणि अनन्ते।।
मुनिसुव्रतेश जन्मभूमि को प्रणाम है।
राजगृही तीर्थ की महिमा महान है।।१।।
एकेन्द्रि से पंचेन्द्रि तक जो जीव आतमा।
उन सबमें छिपा शक्ति से भगवान आतमा।। मुनिसुव्रतेश..।।२।।
भगवान आतमा प्रगट पुरुषार्थ से होता।
पुरुषार्थ बिना मात्र जग में खाना है गोता।। मुनिसुव्रतेश..।।३।।
तीर्थंकरों का सिद्धपद निश्चित है यद्यपी।
फिर भी तपस्या करके वे पाते हैं शिवगती।। मुनिसुव्रतेश..।।४।।
मैंने भी मनुष जन्म जो पाया अमोल है।
वह मोक्षमार्ग के लिए सचमुच ही मूल है।। मुनिसुव्रतेश..।।५।।
इस काल में निर्वाणपद की प्राप्ति नहीं है।
पर जन्म सार्थ करने की युक्ति यहीं है।। मुनिसुव्रतेश..।।६।।
पुरुषार्थ के द्वारा प्रथम तो कार्य शुभ करें।
जीवन में सदाचार से सारे अशुभ टलें।। मुनिसुव्रतेश..।।७।।
प्रभु जन्मभूमि वंदना का अर्थ है यही।
आत्मा में रागद्वेष अल्प होवें शीघ्र ही।। मुनिसुव्रतेश..।।८।।
इस राजगृही में जनम मुनिसुव्रतेश का।
प्रभु वीर की खिरी यहीं पे प्रथम देशना।। मुनिसुव्रतेश..।।९।।
है पंच पहाड़ी में एक विपुलाचल गिरी।
जिस पर बनी रचना है प्रभू गंधकुटी की।। मुनिसुव्रतेश..।।१०।।
गणधर सुधर्मा ने यहीं से सिद्धपद लिया।
कुछ मुनि के सिद्धपद से सिद्धक्षेत्र यह हुआ।। मुनिसुव्रतेश..।।११।।
जिननाथ मुनिसुव्रतेश की बड़ी प्रतिमा।
श्री ज्ञानमती मात प्रेरणा की है महिमा।। मुनिसुव्रतेश..।।१२।।
भगवान श्री जिनेन्द्र से विनती यही मेरी।
मिट जावे ‘‘चन्दनामती’’ संसार की फैरी।। मुनिसुव्रतेश..।।१३।।