-गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी
सन् १९७२ की बात है-भारतगौरव आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज ने दिल्ली से प्रमुख श्रावकों को भेजा-जिसमें परसादीलाल जैन पाटनी, श्रीपालदास जैन, लाला श्यामलाल जैन आदि थे। इन श्रेष्ठियों ने आकर व्यावर (राज.) में मुझसे निवेदन किया-
माताजी! आचार्य श्री दिल्ली में विराजमान हैं-उन्होंने भगवान महावीर स्वामी के ‘पच्चीस सौंवें’ निर्वाण महोत्सव को राष्ट्रीयस्तर पर मनाने का निर्णय लिया है। जिससे दिगम्बर-श्वेताम्बर मिलकर मनायेंगे ऐसा निर्णय हुआ है। आचार्यश्री ने आपको बुलाया है आप चलकर आचार्यश्री के आदेशानुसार इस कार्यक्रम में सहयोगी बनें-
मैंने तभी आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज से आज्ञा मंगाई, जो कि ‘कालू नगर’ (राज.) में विराजमान थे। तभी आचार्यश्री ने कहलवाया कि-ये मुनि संभवसागर व मुनि वर्धमानसागर तुम्हारे पुत्रवत् हैं। अम्मा-अम्मा करते रहते हैं इन्हें अपने संघ में लेते जाओ दो मुनि हैं,कोई बात नहीं है। मेरे साथ में आर्यिका आदिमती, श्रेष्ठमती व आर्यिका रत्नमती आर्यिकायें थीं।
मैं गर्मी में ब्यावर से संघ सहित दिल्ली आ गई पुन: प्रथम चातुर्मास वीर सं. २४९८ सन् १९७२ का पहाड़ी धीरज दिल्ली में हुआ। दशलक्षण पर्व में २-२ घंटे तत्त्वार्थसूत्र पर मेरे वहाँ प्रवचन आदि हुये हैं। यहीं पर दीपावली के मंगल दिवस मैने ‘‘दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान’’ नाम से एक संस्था की स्थापना की है। वीर सं. २४९९ सन् १९७३ का वर्षायोग नजफगढ़ दिल्ली में हुआ।
इसके मध्य में आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज को ससंघ दिल्ली पदार्पण के लिए मैंने अथक प्रयास करके दिल्ली में वैâलाशनगर, गांधीनगर जाकर मीटिंग कराकर श्रावकों को आगे करके भेजा, फलस्वरूप आचार्यश्री का पदार्पण दिल्ली में अतिशायी प्रभावना के साथ हुआ।सन् १९७२ व १९७३ के मध्य चातुर्मास से अतिरिक्त समयों में मेरे साथ आर्यिका रत्नमती जी (मेरी माता मोहिनी जी) को शहर के शोरगुल से हटकर, उनके आग्रह से मेरा रहना यहाँ कनॉटप्लेस-अग्रवाल दिगम्बर जैन मंदिर में अधिकतम रहा है। उन दिनों यहाँ धर्मशाला नहीं थी। दिन में मंदिर में हम आर्यिकायें रहती थीं व रात्रि में बाहर के बारादरी में शयन करती थीं। दोनों मुनि मंदिर में ऊपर के कमरे में रहते थे।
वीर सं. २५००, सन् १९७४ में आचार्यश्री धर्मसागर जी मुनिराज संघ के आगमन के बाद दोनों मुनि संघ में रहे हैं। आचार्यश्री का सन् १९७४ का चातुर्मास लालमंदिर दिल्ली में स्थापित हुआ, तब हम सभी साथ रहे हैं। मैं कूचासेठ में आचार्य नमिसागर औषधालय के ऊपर निर्मित त्यागीभवन में रहती थी।पुनश्च आचार्यश्री को यहाँ लालमंदिर के कोलाहल से अशांति हुई, तब मैंने दरियागंज जाकर वहां के श्रावकों को आगे किया। आचार्य श्री ससंघ दरियागंज में आकर बालाश्रम में रहे। आहार हेतु चौके दरियागंज, कूचासेठ, वैदवाड़ा आदि तक रहते थे। मैं भी आर्यिकासंघ सहित दरियागंज रही हूँ। सभी संघ के साधु-साध्वी दूर-दूर तक आहार को जाते थे।दिल्ली में मेरे १० चातुर्मास हुए हैं। उनमें से अधिकतम मेरा अग्रवाल दि. जैन मंदिर, राजाबाजार, कनॉट प्लेस में रहने का हुआ है।सन् १९९९ के चातुर्मास में क्षमावाणी का कार्यक्रम विशाल पाण्डाल में ‘जैन हैप्पी स्कूल’ में हुआ है। पुनश्च-२४ अक्टूबर १९९९ की शरदपूर्णिमा की मेरे जन्मदिवस की सभा ‘जैन हैप्पी स्कूल’ में ही हुई है। उस समय श्री वी. धनंजय कुमार जैन वित्तराज्यमंत्री आये हैं। उस समय जैन सभा के कार्यकर्ता एवं जिनेन्द्र प्रसाद जैन ठेकेदार के सामने मेरे मुख से सहज निकला था कि-यहाँ एक विशाल प्रतिमा विराजमान होना चाहिए। तभी उन लोगों ने कहा था कि-‘‘माताजी! आप जब चाहेंगी हो जावेंगी’’ जिसका योग अब ईस्वी सन् २०२१ में आया और भगवान ऋषभदेव के प्रथमपुत्र भरत चक्रवर्ती सिद्ध भगवान की प्रतिमा ३१ फुट की विराजमान हुई हैं। ‘ह्रीं’ में चौबीस भगवान एवं भगवान ऋषभदेव भी विराजमान हुए हैं। इससे पूर्व सन् १९९९ में ही मैंने यहां महावीर स्वामी के चरण विराजमान किये थे।
यह २०२१ का वर्षायोग भी यहाँ ‘‘श्री चक्रवर्ती भगवान भरत ज्ञानस्थली तीर्थ’’ पर मेरा हो रहा है। चारित्र चक्रवर्ती प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज की परम्परा के सप्तम पट्टाचार्य श्री अनेकांतसागर जी महाराज ससंघ यहाँ ‘अग्रवाल दिगम्बर जैन मंदिर’ में विराजमान हैं। उनका भी यहीं वर्षायोग हो रहा है।
दिल्ली राजधानी में पूर्व के चातुर्मासों में मेरी प्रेरणा से मेरे ससंघ सान्निध्य में ‘‘जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति रथ प्रवर्तन’’, ‘‘चौबीस कल्पद्रुम महामंडल विधान’’, श्री ऋषभदेव समवसरण रथ प्रवर्तन, छब्बीस विश्वशांति महावीर विधान, श्री ऋषभदेव अंतर्राष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव, वैâलाश पर्वत मानसरोवर यात्रा, श्री समयसार प्रशिक्षण शिविर, जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति सेमिनार आदि विशाल-विशाल शैक्षणिक एवं प्रभावनात्मक आयोजन सम्पन्न हुए हैं। इन कार्यक्रमों में अनेक राजनेताओं के आगमन भी समय-समय पर होते रहे हैं। सन् १९८२ में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी का आगमन, सन् १९९७ में मुख्यमंत्री साहिबसिंह वर्मा व पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल जी शर्मा का आगमन, सन् १९९८ व २००० में ‘‘तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल विहारी बाजपेयी’’ का आगमन, वैâलाश मानसरोवर यात्रा के समय ‘‘मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित’’ का आगमन आदि हुए हैं।अभी सन् २०२१ में १० जुलाई को यहाँ पर ‘‘रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह’’ आये हैं और अपने जन्मदिवस का आशीर्वाद लेकर श्री भरत भगवान के दर्शन करके प्रसन्न हुए हैं।कार्यक्रमों की इसी शृंखला में राजधानी दिल्ली के लगभग २०० दिगम्बर जैन मंदिरों का एक पूजन विधान मेरी संघस्थ शिष्या प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ने मई २०२१ में लिखकर तैयार किया। जो ३१ मई से १० जून २०२१ तक कनॉट प्लेस के अग्रवाल दिगम्बर जैन मंदिर में सम्पन्न हुआ एवं प्रतिदिन समाज के लोगों ने कोरोना के लॉकडाउन में भी अपने-अपने मंदिर खोलकर अर्घ्य चढ़ाए तथा अति प्रसन्नता का अनुभव किया। यह पूरा विधान भगवान ऋषभदेव जूम चैनल एवं पारस टी.वी. चैनल पर प्रसारित हुआ, अत: पूरे देश के लोगों ने भी दिल्ली के विशाल जिनमंदिरों के दर्शन का पुण्यलाभ प्राप्त किया।
वीर नि. सं. २५२७, सन् २००१ में २ नवम्बर को कनॉट प्लेस, राजाबाजार में स्थित श्री अग्रवाल दिगम्बर जैन मंदिर के प्रांगण में भगवान महावीर के २६००वें जन्मकल्याणक महोत्सव वर्ष के अन्तर्गत मेरी प्रेरणा से भगवान ऋषभदेव कीर्तिस्तंभ की वेदी प्रतिष्ठा एवं जिनबिम्ब स्थापना समारोह सानंद सम्पन्न हुआ। जिसका विशेष विवरण आगे पृष्ठ ५२ पर दिया जा रहा है।वीर नि. सं. २५२७, सन् २००१ में राजधानी दिल्ली के कनॉट प्लेस-राजाबाजार में स्थित श्री अग्रवाल दिगम्बर जैन मंदिर के प्रांगण में मेरी प्रेरणा से पावापुरी सिद्धक्षेत्र की स्थाई एवं विशाल रचना बनाकर भगवान महावीर के चरण विराजमान करके दीपावली के शुभ दिन १५ नवम्बर को प्रात: २६०० निर्वाणलाडू चढ़ाने का भव्य आयोजन हुआ।अग्रवाल दिगम्बर जैन मंदिर में विराजमान भगवान चंद्रप्रभ तीर्थंकर, भगवान पार्श्वनाथ आदि सभी जिनप्रतिमाओं को कोटि-कोटि वंदन करते हुए, ‘खंडेलवाल दिगम्बर जैन मंदिर’ में विराजमान सभी जिनप्रतिमाओें को वंदन करते हुए एवं नवीन तीर्थ ‘श्री चक्रवर्ती भगवान भरत ज्ञानस्थली’ पर विराजमान श्री ऋषभदेव, ‘ह्रीं’ में विराजमान चौबीसों भगवान एवं श्री चक्रवर्ती-भगवान भरतस्वामी के चरणों में कोटि-कोटि वदंन करती हूँ।
जब तक भारत में ‘अहिंसा परमो धर्म:’ जयशील रहे। जैन शासन जयशील रहे, तब तक यह तीर्थ भव्यों के लिए मोक्षमार्ग को दिखाता रहे, इसी भावना के साथ पुन: श्री भरत भगवान के चरणों में कोटि-कोटि नमन।