रत्नपुर नगर के राजा श्रीषेण अपनी रानी सिंहनंदिता और अनिंदिता के साथ सुखपूर्वक राज्य संचालन कर रहे थे। उनके इन्द्रसेन और उपेन्द्रसेन दो पुत्र थे। किसी एक दिन राजा ने घर पर आये हुए आदित्यगति और अरिज्जय नाम के दो चारण मुनियों का पड़गाहन कर उन्हें भक्ति- पूर्वक आहार दान दिया। पात्र विशेष होने से देवों ने पंचाश्चर्य वृष्टि की। राजा ने उस आहार दान के प्रभाव से उत्तरकुरु के उत्तम भोगभूमि की आयु बांध ली। किसी समय अनन्तमती नाम की एक साधारण महिला के लिये इन्द्रसेन और उपेन्द्रसेन दोनों भाई आपस में युद्ध करने लगे। राजा के रोकने पर भी नहीं माने, तब राजा ने दु:खी होकर विषपुष्प सूंघ कर मरण प्राप्त कर लिया। किन्तु पूर्व के आहारदान के प्रभाव से वे उत्तरकुरु भोगभूमि में चले गये। कालांतर में यही श्रीषेण सोलहवें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ और पाँचवें चक्रवर्ती हुये हैं।