एक सियार ने सागरसेन मुनिराज के पास रात्रि भोजन का त्याग कर दिया। एक दिन वह सियार बहुत प्यासा था, बावड़ी में पानी पीने के लिए उतरा। वहाँ अंधेरा दिखने से रात्रि समझकर ऊपर आ गया। ऊपर प्रकाश देखकर फिर नीचे आ गया। नीचे बार-बार अंधेरा देखने से और रात्रि में पानी का त्याग होने से वह मर गया। इस व्रत के प्रभाव से वह सिायर मनुष्य गति में प्रीतिंकर कुमार हो गया। उसी भव में मुनि दीक्षा लेकर कर्मों से छूटकर मुक्त हो गया।
देखो बच्चों! रात्रि में भोजन करना स्वास्थ्य के लिए भी अनेक प्रकार से हानिकारक है। रात्रि भोजन करने से मनुष्य पशु योनि प्राप्त कर लेते हैं और यह पशु मनुष्य क्या भगवान बन गया। इसलिए हम सबको रात्रि भोजन का त्याग कर देना चाहिए।