रुचकवर पर्वत की देवियाँ तीर्थंकर के जन्मकल्याणक में आती हैं
एदेसु दिसाकण्णा णिवसंति णिरुवमेहिं रूवेहिं।
विजया य वइजयंता जयंतणामा वराजिदया१।।१४८।।
णंदाणंदवदीओ णंदुत्तरणंदिसेण त्ति।
भिंगारधारिणीओ ताओ जिणजम्मकल्लाणे।।१४९।।
दक्खिणदिसाए फलियं रजदं कुमुदं च णलिणपउमाणिं।
चंदक्खं वेसमणं वेरुलियं अट्ठ कूडाणिं।।१५०।।
उच्छेहप्पहुदीहिं ते कूडा होंति पुव्वकूड व्व।
एदेसु दिसाकण्णा वसंति इच्छासमाहारा।।१५१।।
सुपइण्णा जसधरया लच्छीणामा य सेसवदिणामा।
तह चित्तगुत्तदेवी वसुंधरा दप्पणधराओ।।१५२।।
होंति यमोघं सत्थियमंदरहेमवदरज्जणामाणिं।
रज्जुत्तमचंदसुदंसणाणिं पच्छिमदिसाए कूडाणिं।।१५३।।
पुव्वोदिदकूडाणं वासप्पहुदीहिं होंति सारिच्छा।
एदेसुं कूडेसुं कुणंति वासं दिसाकण्णा।।१५४।।
इलणामा सुरदेवी पुढविपउमाओ एक्कणासा य।
णवमी सीदा भद्दा जिणजणणीए छत्तधारीओ।।१५५।।
विजयं च वइजयंतं जयंतमपराजिदं च कूडलयं।
रुजगक्खरयणकूडाणि सव्वरयण त्ति उत्तरदिसाए।।१५६।।
एदे वि अट्ठ कूडा सारिच्छा होंति पुव्वकूडाणं।
तेसुं पि दिसाकण्णा अलंबुसामिस्सकेसीओ।।१५७।।
तह पुंडरीकिणी वारुणि त्ति आसा य सच्चणामा य।
हिरिया सिरिया देवी एदाओ चमरधारीओ।।१५८।।
एदाणं वेदीणं अब्भंतरचउदिसासु चत्तारि।
महकूडा चेट्ठंते पुव्वोदिदकूडसारिच्छा।।१५९।।
णिच्चुज्जोवं विमलं णिच्चालोयं सयंपहं कूडं।
उत्तरपुव्वदिसासुं दक्खिणपच्छिमदिसासु कमा।।१६०।।
सोदाविणि त्ति कणया सदपददेवी य कणयचेत्त त्ति।
उज्जोवकारिणीओ दिसासु जिणजम्मकल्लाणे।।१६१।।
तक्वूकूडब्भंतरए कूडा पुव्वुत्तकूडसारिच्छा।
वेरुलियरुचकमणिरज्जउत्तमा पुव्वपहुदीसुं।।१६२।।
तेसुं पि दिसाकण्णा वसंति रुचका तहा रुचककित्ती।
रुचकादीकंतपहा जाणंति जिणजातकम्माणिं।।१६३।।
पल्लपमाणाउठिदी पत्तेक्वंकं होदि सयलदेवीणं।
सिरिदेवीए सरिच्छा परिवारा ताण णादव्वा।।१६४।।
रुचकवर पर्वत की देवियाँ तीर्थंकर के जन्मकल्याणक में आती हैं
इन भवनों में अनुपम रूप से संयुक्त विजया, वैजयन्ता, जयन्ता, अपराजिता, नन्दा, नन्दवती, नन्दोत्तरा और नन्दिषेणा नामक दिक्कन्यायें निवास करती हैं। ये जिनभगवान् के जन्मकल्याणक में झारी को धारण किया करती हैं।।१४८-१४९।। स्फटिक, रजत, कुमुद, नलिन, पद्म, चन्द्र, वैश्रवण और वैडूर्य, ये आठ कूट दक्षिणदिशा में स्थित हैं।।१५०।। ये सब कूट ऊँचाई आदिक में पूर्व कूट के ही समान हैं। इनके ऊपर इच्छा, समाहारा, सुप्रकीर्णा, यशोधरा, लक्ष्मी, शेषवती, चित्रगुप्ता और वसुंधरा नाम की आठ दिक्कन्यायें निवास करती हैं। ये सब जिनजन्मकल्याणक में दर्पण को धारण किया करती हैं।।१५१-१५२।। अमोघ, स्वस्तिक, मन्दर, हैमवत, राज्य, राज्योत्तम, चन्द्र और सुदर्शन, ये आठ वूकूटश्चिमदिशा में स्थित हैं।।१५३।। ये वूकूटस्तारादिक में पूर्वोक्त कूकूटके ही समान हैं। इनके ऊपर इला, सुरादेवी, पृथिवी, पद्मा, एकनासा, नवमी, सीता और भद्रा नामक दिक्कन्यायें निवास करती हैं। ये दिक्कन्यायें जिनजन्मकल्याणक में जिनमाता के ऊपर छत्र को धारण किया करती हैं।।१५४-१५५।। विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित, कुण्डलक, रुचक, रत्नकूट सर्वरत्न, ये आठ कूकूटरदिशा में स्थित हैं।।१५६।। ये भी आठ कूट कूटवूकूटोंकूटही सदृश हैं। इनके ऊपर भी अलंभूषा, मिश्रकेशी, पुण्डरीकिणी, वारुणी, आशा, सत्या, ह्री और श्री नाम की आठ दिक्कन्यायें निवास करती हैं। जिनजन्मकल्याणक में ये सब चँवरों को धारण किया करती हैं।।१५७-१५८।। इन कूटोंकूटवेदियों के अभ्यन्तर चार दिशाओं में पूर्वोक्त कूटोंकूटसदृश चार महाकूट स्थिकूट हैं।।१५९।। नित्योद्योत, विमल, नित्यालोक और स्वयंप्रभ ये चार कूकूटम से उत्तर, पूर्व, दक्षिण और पश्चिम दिशा में स्थित हैं।।१६०।। सौदामिनी, कनका, शतपदा (शतह्रदा) और कनकचित्रा, ये चार देवियाँ इन कूटोंकूटर स्थित होती हुई जिनजन्मकल्याणक में दिशाओं को निर्मल किया करती हैं।।१६१।। इन वूकूट के अभ्यन्तर भाग में पूर्वोक्त वूकूट के सदृश वैडूर्य, रुचक, मणि और राज्योत्तम नामक चार वूकूटर्वादिक दिशाओं में स्थित हैं।।१६२।। उन कूकूटपर भी रुचका, रुचककीर्ति, रुचककांता और रुचकप्रभा, ये चार दिक्कन्यायें निवास करती हैं। ये कन्यायें जिनभगवान् के जातकर्मों को जानती हैं।।१६३।। इन सब देवियों में से प्रत्येक की आयु एक पल्यप्रमाण होती है। उनके परिवार श्रीदेवी के समान जानना चाहिये।।१६४।।