रूस में जैन पाण्डुलिपियाँ
– ललित जैन ,दुर्ग (छ.ग.)
ईसा के पट्ट शिष्य संत थामस जब ईसाई धर्म के प्रचार के सिलसिन में हिन्दुस्तान आये थे तो उन्हें हिन्दुस्तान में व्याप्त मंत्र-तंत्र एवं धर्म व्यवस्था से सिवाधिक प्रभावित किया, उन्होंने भारतीय ब्राह्मण एवं श्रमणों पर ढेर सारी से सकारी तथा पाण्डुलिपियाँ एकत्र कर विशेष अध्ययन किया और एकर विषय सामग्री के आधार पर भारत विषय पर अनेक पुस्तकें लिखीं।
प्राचीनतम् रूसी इतिवृत्त “पोवेस्त ब्रमेन्नीखलेत (काल क्रमिक गाथा’ में पृथ्वी में ज्ञात विभिन्न जातियों (धर्म) का विवरण देते हुए बताया गया है कि ‘बास्तीय’ जिन्हें ‘राह्मन’ (दिगम्बर) कहा जाता है इस जाति के लोग, अपनी कट्टर धर्म परायणता के कारण मांस-मदिरा का प्रयोग नहीं करते, व्यभिचार नहीं करते, किसी को भी दुःख पहुँचाने को पाप मानते हैं और सदैव नग्न रहते हैं, इसी तरह का विस्तृत विवरण ‘पल्लाडियस व मीडियोलेनम मठ’ के संत ‘अम्ब्रोस; का ‘भारत की नस्लें एवं ब्राह्मण’ शीर्षक से लिखा ग्रंथ व रूसी लेखक येफ्रोसिन ने गेओर्गी आमार्तोल के इतिवृत तथा अन्य स्रोतों के आधार पर ‘राह्मन और उनके आश्चर्य जनक जीवन’ नाम से ग्रंथ लिखा जिसमें राह्मन (दिगम्बर साधुओं) के बारे में लिखा है कि- इन लोगों ने स्वर्ग के निकट रहते हुए अपनी इच्छाओं को परिसीमित कर लिया है, जिनके पास न तो लोहा है और न सोना, न मंदिर है- न मदिरा, वे मांस नहीं खाते, केवल कुछ सब्जी खा कर मीठा पानी पी कर, निरंतर नग्न रहकर ईश्वर की आराधना में लीन रहते हैं, इनका एक सरदार (गुरु) होता है जिसके मार्गदर्शन में वे अपना दैनिक जीवन जीते हैं।
प्राचीन रूसी साहित्य में ‘अलेक्सान्द्रिया’ कथा का विशेष महत्वपूर्ण स्थान है जिसका स्रोत अरस्तु के भतीजे कलेस्थनीज के नाम से लिखी गयी ‘सिकन्दर गाथा है’ जो पहली सदी में समसामायिकों के वृतांतों के आधार पर लिखी गयी है, इस कृति में सिकन्दर के भारत विजय अभियान का विशेष प्रसंग है, जिसमें भारतीय राजा पुरू के साथ सिकन्दर का युद्ध, भारतीय ब्राह्मण तथा अन्य धर्म साधुओं से सिकन्दर की वार्ता का विस्तार पूर्वक वर्णन, इसी कथा में राह्मनों के जीवन वृतांत- जो किसी भी पाप का बोझा नहीं ढोते, शांतिपूर्वक नग्न रहकर देवदूतों के समीप रहते हैं, उन्होंने अपनी इच्छाओं से मुक्ति पाकर प्रभु से स्वर्गसुख का आशीर्वाद पा लिया है, आदि विषयों पर गंभीर विवेचना दी गयी है।
प्रसिद्ध इतिहास विद्वान- अबुरेहान मुहम्मद अल बरूनी जिसका जन्म रूस में हुआ था, की प्रसिद्ध कृति ‘किताबुल हिंद’ जिसे अलहिंद के नाम से जाना जाता है, सन् १०३० में लिखी गयी इस पुस्तक में मध्यकालीन भारतीय धर्म दर्शनों के प्रश्नों पर विवाद (विचार विमर्श) किया गया, इसे इतिहासकारों ने मध्ययुग की भारतीय धर्मदर्शन, विज्ञान-साहित्य-रीतियों- प्रथाओं-अनुष्ठानों एवं रस्मों का विश्वकोश माना है।
भारतीय इतिहास वेत्ता एवं जैन इतिहास के रूसी विद्वान- ईवान मिनायेव ने अनेक बार जैन धर्म के ऐतिहासिक तथ्यों को एकत्र करने के लिए भारत की यात्राएं की। यहाँ वे जैन विद्वानों से मिले तथा मठों व मंदिरों का भ्रमण किया। एक संदर्भ में उन्होंने लिखा है कि पूना के दक्षिण कालेज के ग्रंथागार से एक जैन पांडुलिपि को प्रतिलिपि मांगी तो उन्हें घोर निराशा ही हाथ लगी।
रूस के सोवियत विज्ञान अकादमी के प्राच्य विद्या संस्थान की लेनिग्राद शाखा में रूसी विद्वान ईवान मिनायेव द्वारा तिब्बत, नेपाल, भारत एवं श्रीलंका से लायीं गयी ९०४ हस्तलिखित पाण्डुलिपियां संरक्षित हैं, जिसमें वैदिक पाठ, पुराण, जैन तथा बौद्ध ग्रंथों की प्राचीन पाण्डुलिपियां सम्मिलित हैं जिनकी भाषा या लिपियाँ- संस्कृत, पाली, प्राकृत व ब्राह्मी आदि हैं, इनमें ३४० पाण्डुलिपियां जैनधर्म से संबन्धित हैं इनमें कुछ तो दुर्लभ हैं, श्रेष्ठ एवं प्रमुख महत्वपूर्ण पाण्डुलिपियों में ‘सुभाषितावर्ण’- संस्कृत ग्रंथ जिसमें १००० से अधिक श्लोक हैं जिनका वैज्ञानिक दृष्टि से काफी महत्व है, इसमें लेखका का नाम नहीं है किन्तु किसी जैन द्वारा लिखा गया है, इसे दुर्लभ की श्रेणी में रखा गया है। नयविजय द्वारा प्रणीत चित्रसेन पद्मावती चरित्र (५३६ श्लोक), विभिन्न शारीरिक लक्षणों के अनुसार स्वभाव एवं भाग्य बताने वाली ‘समुद्रिका’, आचारंग, कल्पसूत्र, सूत्रकृतांगसूत्र, शीलंक कृत आचार टीका, लक्ष्मीवल्लभ कृत-कल्पद्रुम कलिका, हरिभद्र कृत-दशवैकल्पिका वृहतवृति, दिगम्बर जैनों की संस्कृत एवं प्राकृत में प्रार्थना तथा सामायिक पाठों का संग्रह, हेमचन्द्र की प्रसिद्ध रचना ‘परिशिष्ट पर्व’ और प्राकृत गाथाओं के प्रसिद्ध जैन पाठ संग्रह, प्रवसंसारोद्वार की प्रति (इस प्रति में १६०९ गाथाएं हैं), दिगम्बर जैन धर्म सिद्धांत पर श्रीवकोटि की हात ‘आराधना’, शहजकुशल की रचना भूतिविचार, एक अति महत्वपूर्ण संचन विद्वान ब्राह्मणों को जैन धर्म में लाने के लिए- उनसे शास्त्रार्थ को संदेश देने वाली- मुनिसुंदर की रचना ‘नैवेद्यगोष्ठी’, जैन नैतिकता फा विदेशेखर की कृति ‘आचार प्रदीप’, जैन गृहस्थों के दायित्व के बारे में पूज्यपाद कृत उपासकाचार, देवेन्द्र कृत- प्रश्नोत्तरमाला, सोमसेन रचित जैन रामायण ‘पद्मपुराण’, कथा-संग्रह-सम्यकत्व कौमुदी कथा, एक महत्वपूर्ण कृति-भावी जिनेन्द्रों की स्तुति, अनेक पूजा विधियों, महावीर की स्तुति गाथा आदि प्राचीन पाण्डुलिपियाँ महत्वपूर्ण हैं।
आधुनिक नगर तेर्मेज के समीप कारातेपे में उत्खनन से प्राप्त वस्तुओं में प्रथम सदी की गुफा समुच्चय, भग्न मंदिर का गर्भागृह, कलश, छत्र, कमल, चंवर के दण्ड तथा अनेक मूर्तियों के भग्नावशेष महत्वपूर्ण हैं।
इतिहासकारों ने कुषाण को जैन व ब्राह्मण धर्म के पोषक के रूप में भी स्वीकार किया है, चूंकि कुषाण को बैक्ट्रिया राज्य (रूस का उज्जवेक एवं ताजिक) उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ था अतः उसके प्रभाव क्षेत्र में जिन जातियों का निवास था उसके आधार पर पूजा, आराधना गृह बनवाये गये या बन गये थे। इसी क्षेत्र में एर्ताम नामक स्थान पर उत्खनन के दौरान पहली-दूसरी सदी के मंदिर, बौद्ध बिहार व मूर्तियों के खण्ड प्राप्त हो रहे हैं जिसमें मथुरा कला का प्रभाव झलकता है। १९७९ में एर्ताम के उत्खनन में एक बड़ा मूर्ति खण्ड पाया गया है जिसके पादपीठ पर छः पंक्तियों का एक ब्राह्मी (बाख्त्रीय) अभिलेख है जिसमें २६० अक्षर पढ़े जाने योग्य हैं इसके आधार पर कुषाण की तिथि काल का पोषण होता है।
संदर्भ : १. व.व. वेतोंगादोवा- प्राकृत भाषाएं (मास्को १९७८, हिन्दी अनु.)
२. ग.म. बोगार्द लेविन-प्राचीन भारतीय सभ्यता दर्शन, विज्ञान धर्म (मास्को १९८०)
३. न.र. गूसेवा- जैनधर्म (शोधग्रंथ-मास्को १९६८)
४. भारत विषयक ग्रंथ सूची (अंग्रेजी, मास्को १९८२)
५. ग.म. बोगार्द लेविन, अ. विगासिन-भारत की छवि (हिन्दी अनु. मास्को १९८४)
अनेकांत पत्रिका जनवरी -मार्च, २०१५
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