यूँ तो प्रत्येक नगर एवं ग्राम में प्रतिदिन शासनपति भगवान महावीर के नाम की अनुगूँज रहती ही है और कुण्डलपुर के महावीर के अतिशय से विख्यात ‘‘चांदनपुर महावीर जी’’ तीर्थ पर भक्तजन अपनी मनोकामना सिद्धि के लक्ष्य से हजारों दीपक जलाते हैं, सोने-चांदी के छत्र लगाते हैं तथा खूब चढ़ावा चढ़ाते हैं किन्तु किसी का ध्यान भगवान महावीर की वास्तविक जन्मभूमि की ओर नहीं गया कि वहाँ एक दीपक भी रोज जलता है या नहीं? एवं कुण्डलपुर की पवित्र धूलि जगत के लिए कितनी कल्याणकारी है? मात्र २६०० वर्षों के अन्तराल में ही तीर्थ इस तरह से वीरानियत को प्राप्त हो चुका था कि यदा-कदा दिन में आने वाले यात्री भगवान को नमन कर तुरंत वापस हो लेते थे और सायंकाल श्रीजी की आरती करने वाला भी कोई नहीं होता था और तो और यहाँ की परिस्थितियों का वर्णन तो मानो मन में एक टीस सी उत्पन्न करता है कि जिन वीरप्रभू की मंगल आरती ‘‘कुण्डलपुर अवतारी त्रिशलानंद विभो’’ गा-गाकर लोग भक्तिभाव से उनकी आराधना करते रहे हैं, जिनके निर्वाणकल्याणक पर देवों ने भी असंख्य दीपक जलाकर सम्पूर्ण धरती को और अमावस्या की रात्रि को प्रकाशमान कर दिया हो तथा तभी से दीपावली पर्व मनाने की परम्परा प्रारंभ हुई हो, जहाँ २६०० वर्षों पूर्व सदैव रत्नमय दिव्य आभा जन-जन के जीवन को प्रकाशमान करती रही हो और जिन वीरप्रभू के शासन में हम अपनी आत्मा में ज्ञानज्योति को प्रगट कर उसे प्रकाशमान करने के लिए निरन्तर अग्रसर हो रहे हों, उस पावन भू पर व्याप्त अंधकार! यह जैन समाज की सुप्तता नहीं तो और क्या है? किन्तु आखिर तो कभी न कभी, कोई न कोई महापुरुष जिनशासन की रक्षा हेतु अग्रसर होता ही है। इसी क्रम मेें भगवान महावीर के २६००वें जन्मकल्याणक महोत्सव का प्रसंग आया और प्रेरणा मिली जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी की, फिर तो मानो कुण्डलपुर के विकास की स्वर्णिम घड़ियाँ ही आ गर्इं और सन् २००२ से प्राचीन मंदिर परिसर में ३६ फुट उत्तुंंग कीर्तिस्तंभ के शिलान्यास के साथ ही विकास के लक्ष्य का प्रारंभीकरण हुआ। पूज्य माताजी के संघ सहित तीर्थ पर मंगल पदार्पण करने के साथ-साथ मानो देवोपुनीत रचना के समान ही यह तीर्थ पुन: अपनी वही आभा, वही दिव्य प्रकाश के साथ प्रकाशमान हो उठा। अब तो शायद ही कोई ऐसा दिन शेष रहता है जब इस तीर्थ पर यात्री न आते हों और भगवान महावीर की मनोज्ञ प्रतिमा के समक्ष दीपक जलाकर मनोकामना सिद्धि की प्रार्थना न करते हों। पूज्य ज्ञानमती माताजी ने इस ऐतिहासिक निर्माण को कराकर समस्त समाज के ऊपर महान उपकार किया है, जिसके लिए हम सभी उनके प्रति अतिशय कृतज्ञ हैं। तीर्थंकर प्रभु की चरणरज से पावन यह तीर्थ सर्वदा इस भूतल पर प्रकाशमान होता हुआ सभी के जीवन में ज्ञानज्योति को प्रकाशित करता रहे, यही मंगलकामना है।
ब्र. विद्युल्लता जी, सोलापुर