इस सरोवर के दक्षिण तोरण द्वार से प्रचुर जल से संयुक्त रोहित् नदी निकलती है और पर्वत पर एक हजार छ: सौ पाँच योजन अर्थात् १६०५-५/१९ योजन प्रमाण दक्षिण की ओर आती है। यह नदी भी गंगा नदी के समान कुंड पर स्थित ‘रोहित देवी’ के भवन पर जिन प्रतिमा का अभिषेक कराते हुए के समान गिरती है एवं कुंड के दक्षिण तोरण द्वार से निकल कर हैमवत क्षेत्र में ‘नाभिगिरि’ की प्रदक्षिणा करती हुई पूर्वाभिमुख होकर आगे जाती है। इस प्रकार यह रोहित् नदी उस हैमवत क्षेत्र के बहुमध्य भाग से जम्बूद्वीप की वेदी की बिल-गुफा में जाकर अट्ठाईस हजार परिवार नदियों से सहित समुद्र में प्रवेश करती है।
इस हैमवत क्षेत्र में जघन्य भोग भूमि की व्यवस्था है जो कि शाश्वत है। आगे षट्काल के परिवर्तन में भोग भूमियों का वर्णन किया जायेगा।