मनुष्य ईश्वर की अनुपम कृति है। ईश्वर ने मनुष्य शरीर के प्रत्येक अंग—प्रत्यंग को बड़े करीब से सजा रखा है और प्रत्येक अंग—प्रत्यंग को अलग—अलग कार्य दिया है। शरीर का महत्वपूर्ण प्रत्यंग मस्तिष्क है जिसे हम रिमोट कंट्रोल कह सकते हैं। यदि मस्तिष्क न होता तो शरीर की सभी क्रियाएं प्रतिक्रियाएं संपन्न नहीं होती। मनुष्य ने आज तरक्की की सभी सीमाओं को लांघ दिया है, वह सब मस्तिष्क के कारण ही है। मस्तिष्क में जीवन के लिए आवश्यक सभी क्रियाओं के केद्र उपस्थित रहते हैं जैसे नींद नहीं आना, भूख लगना, प्यास लगना, सुनना, हाथ पैर हिलना, बोलना, सूंघना, देखना, विचारशक्ति, स्मरणशक्ति इत्यादि, अत: शरीरगत सभी क्रियाएं मस्तिष्क द्वारा ही संचालित होती हैं। हमारे जीवन का संचालक या रिमोट कंटोल मस्तिष्क ही है, इसमें कोई दो राय नहीं है। इस मस्तिष्क को भरपूर रक्तप्रवाह अबोध गति से होता रहता है। यदि इसमें कोई स्थान पर रूकावट आई तो उस संबंधित केन्द्र के अवयवों पर प्रभाव पड़ता है और उससे कई रोग होते हैं, जिसमें से एक पक्षाघात है। सामान्य भाषा में इसे लकवा कहते हैं। इसमें विकृति मस्तिष्क में होती है और लक्षण हमें हाथ—पैर में दिखते हैं। पक्षाघात के कारणों में महत्वपूर्ण कारण मस्तिष्क संबंधी हैं। मानव मस्तिष्क का प्राकृत कार्य पूर्ण रूप से मस्तिष्क को निरन्तर रक्तप्रवाह के द्वारा आक्सीजन आपूर्ति पर निर्भर रहता है। यदि किसी कारणवश मस्तिष्क का रक्तप्रवाह बंद हो गया तो मृत्यु या लकवा हो सकता है। लकवे के कारणों में ब्लड प्रेशर का बढ़ना, शुगर का बढ़ना, मस्तिष्क गत रक्तप्रवाह किसी कारण से बाधित होना जैसे मस्तिष्क में थ्रोम्बोसीस रक्त का थक्का जमना या एम्बोलिसम की स्थिति, मस्तिष्कगत शुद्ध रक्तवाहिनियों का फटना ब्रेन हेमरेज रक्त में कोलेस्ट्राल की मात्रा बढ़ना एथेरोस्कलेरासिस, व्यायामादि का पुर्णत: प्रभाव, रक्तगतविकार जैसे सिकल सेल, पालीसाइथेमिया, आहार—विहार का पालन ठीक से न करना, ज्यादा चिंतन, मादक द्रव्यों का अति सेवन, आघात इत्यादि कारण है जिनसे पक्षघात होने की संभावना है। पक्षाघात के लक्षणों में एक ओर के हाथ—पैर ढीले हो जाते हैं, उस और का भाग संवेदनाहीन हो जाते हैं, कोई हलचल नहीं होती, किसी चीज को पकड़ने में असमर्थता, उठने—बैठने में असमर्थता, चलने—फिरने में असहाय, इस तरह रोगी का पूर्ण जीवन ही अपाहिज सा होता है। यदि मस्तिष्क के बांयी ओर इस पक्षवध का कारण उपस्थित होता है तो वहीं वाणी का केद्र उपस्थित होता है। ऐसी स्थिति में दोनों हाथ पैर ढीले पड़ने के साथ जिव्हा व वाणी पर भी प्रभाव पड़ता है जिसे अर्दित फैशियल पैरलिसिस कहते हैं। इसमें रोगी का मुख एक ओर टेढ़ा हो जाता है, लार टपकती है, बोलने में असमर्थता, वाणी में अस्पटता इत्यादि लक्षण होते हैं। कभी—कभी शरीर का दाहिना या बायां पूर्ण हाथ ढीला न होकर सिर्फ हाथ या पैर शिथिल, संवेदनाहीन हो जाते हैं। आयुर्वेदानुसार इसे एकांगघात कहते हैं।
चिकित्सा
आजकल कुछ नीम—हकीम पक्षाघात के लिए बिना कारण जाने सभी को एक समान चिकित्सा देते हैं जो सर्वथा गलत है। अत: रोगी को पूर्ण परीक्षण कर कारणानुसार चिकित्सा करनी चाहिए। औषधि में ऊंझा बृहत वात चिंतामणि १ वटी सुबह शाम, अश्वगंधारिष्ट २ चम्मच के साथ नियमपूर्वक ३ माह तक लीजिए। हाई ब्लडप्रेशर के कारण पक्षघात होने पर उपरोक्त औषधि के साथ ऊझा ब्राह्मीवटी सुबह शाम, सारस्वतारिष्ट २—२ चम्मच के साथ लें। सामान्यत: पक्षाघातद के रूगणों को ऊझा एकांगवीर रस १० ग्राम, महायोगराज गुग्गल १० ग्राम महावाताबिध्वंस रस ५ ग्राम, समीर पन्नग रस सुवर्ण युक्त १ ग्राम व ब्राम्ही वटी १० ग्राम की ४० पुड़ियां बनाकर सुबह—शाम ऊंझा बलारिष्ट २ चम्मच के साथ नियमित ३ माह तक जारी रखें। कब्ज की शिकायत होने पर निरोगी पूर्ण व एरण्ड तेल २-२ चम्मच रात को सोते समय लें। चिकित्सा योग्य चिकित्सक के परामर्शानुसार लेना चाहिए। औषधि चिकित्सा के अलावा अन्य महत्वपूर्ण क्रियाएं हैं जिन्हें करने से पक्षाघात का मरीज स्वयं अपने दैनिक कार्य भली भांति कर सकता है। ये क्रियाएं शिरोधारा, नस्य, स्नेहन, स्वेदन, पिंड स्वेद पिषीचल धारा वस्ति व मृदुविरेचन है। इन सभी क्रियाओं को करने से शरीर की नसों व मांसपेशियों को पुष्टि व ताकत मिलती है जिससे रोगी चलने फिरने में कुछ प्रतिशत समर्थ हो जाता है। पक्षाघात के रूग्णों में औषधियुक्त तेलों से मालिश स्नेहन योग्य चिकित्सक के मार्गदर्शन में करना चाहिए क्योंकि मांसपेशियों व नसों का उदगम व निवेश चिकित्सक को ही ज्ञात रहता है अत: योग्य चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही वैज्ञानिक पद्धति से मालिश करना चाहिए। पक्षाघात का अंतभांव वातव्याधि में होता है। वात व्याधि के लिए बस्ति आधी चिकित्सा कही है इसलिए पक्षाघात के रूग्णों में बस्ति कर्म महत्वपूर्ण स्थान है। लकवाग्रस्त रोगी में विरेचन कर्म का भी महत्वपूर्ण स्थान है। इससे मस्तिष्कगत धमनियों में रूकावट दूर होती है। पक्षाघात के रोगी में सबसे अहम् होता है आत्मविश्वास का अभाव। अत: मानसिक सांत्वना देकर व्यायाम फिजयोथेरेपी कर्म के लिए प्रेरित करना चाहिए, अत: औषधि व उक्त विशिष्ट क्रियाओं से पक्षाघात के रूग्ण कुछ प्रतिशत में पुन: अपनी दैनिक चर्या कष्टरहित व्यतीत कर सकते हैं। ये विश्ष्टि क्रियाएं सेरीवल पाल्सी व पोलियों में भी लाभदायी पायह व उक्त विशिष्ट क्रियाओं में गयी है।