जह ण वि लहदि हु लक्खं रहिओ वंडस्स वेज्जयविहीणो।
तह ण वि लक्खदि लक्खं अण्णाणी मोक्खमग्गस्स।।
जिस प्रकार निशाना लगाने के अभ्यास से रहित पुरुष लक्ष्य का वेध नहीं कर सकता है, उसी प्रकार श्रुतज्ञान से रहित अज्ञानी पुरुष मोक्षमार्ग में लक्ष्यभूत अपनी आत्मा के स्वरूप को नहीं प्राप्त कर सकता है।