लवणसमुद्राभ्यन्तरद्वीपान् तद्व्यासादिकं च गाथाचतुष्टयेनाह—
तडदो गत्ता तेत्तियमेत्तियवासा हु विदिस अंतरगा।
अडसोलस ते दीवा वट्टा सूरक्खचंदक्खा१।।९०९।।
तडत: गत्वा तावन्मात्रव्यासा हि विदिक्षु अन्तरका:।
अष्टषोडश ते द्वीपा वृत्ता: सूर्याख्यचन्द्राख्या:।।९०९।।
तडदो। उभयतटात्तावन्मात्राणि योजनानि ४२००० गत्वा तावन्मात्रव्यासा ४२०००। विदिक्ष्वन्तरदिक्षु च यथासंख्यं अष्ट षोडशसंख्या सूर्याख्यचन्द्रा-ख्यास्ते द्वीपा: वृत्ता: स्यु:।।९०९।।
लवण समुद्र के अभ्यन्तर द्वीपों और उनके व्यासादिक को चार गाथाओं द्वारा कहते हैं—
गाथार्थ :—जितने योजन व्यास वाले द्वीप हैं दोनों तटों से उतने ही योजन दूर जाकर विदिशा और अन्तर दिशाओं में सूर्य नामक आठ और चन्द्र नामक सोलह वृत्ताकार द्वीप हैं।।९०९।।
विशेषार्थ :—अभ्यन्तर तट से बाहर की ओर और बाह्य तट से भीतर की ओर बयालीस-बयालीस हजार योजन दूर जाकर विदिशाओं और अन्तर दिशाओं में ४२००० योजन व्यास वाले द्वीप हैं। वहाँ चारों विदिशाओं के दोनों पार्श्वभागों में आठ सूर्य नाम के द्वीप हैं तथा अन्तर दिशाओं के दोनों पार्श्व भागों में सोलह चन्द्र नाम के द्वीप हैं। ये सर्व द्वीप गोल आकार वाले हैं।