लवण समुद्र के ज्योतिर्वासी देवों के विमान पानी के मध्य में होकर ही घूमते रहते हैं क्योंकि लवण समुद्र के पानी की सतह ज्योतिषी देवों के गमन मार्ग की सतह से बहुत ऊँची है। अर्थात् विमान ७९० से ९०० योजन की ऊँचाई तक ही गमन करते हैं और पानी की सतह ११००० योजन ऊँची है।
जम्बूद्वीप की तटवर्ती वेदी की ऊँचाई ८ योजन (३२००० मील) है तथा चौड़ाई ४ योजन (१६०००) मील है। पानी की सतह ११००० योजन से बढ़ते-बढ़ते १६००० योजन तक हो जाती है।
इस प्रकार समुद्र का जल तट से ऊँचा होने पर भी अपनी मर्यादा में ही रहता है। कभी भी तट का उल्लंघन करके बाहर नहीं आता है। इसलिये मर्यादा का उल्लंघन न करने वालों को समुद्र की उपमा दी जाती है।
आर्यखण्ड में जो समुद्र हैं वे उपसमुद्र हैं यह लवण समुद्र नहीं हैं और आजकल जिसे सिलोन अर्थात् लंका कहते हैं यह रावण की लंका नहीं है। रावण की लंका तो लवण समुद्र में है। इस लवण समुद्र में गौतमद्वीप, हंसद्वीप, वानर- द्वीप, लंकाद्वीप आदि अनेक द्वीप अनादि निधन बने हुये हैं।