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हमारे देश में पैरों में विकृतियों की बीमारी क्लब फुट के कारण हजारों बच्चे विकलांगता की जिंदगी जीने को अभिशप्त हैं। प्राय: जन्मजात तौर पर होने वाली इन विकृति के उपचार के लिए प्लास्टर अथवा आपरेशन का सहारा लिया जाता है। कल्ब फुट की नई चिकित्सा पद्धति का विकास करने वाले सरिता विहार, नई दिल्ली स्थित बोन एंड ज्वाइंटस फाउंडेशन आफ इंडिया के निदेशक और वरिष्ठ अस्थि शल्य चिकित्सक डा. सुभाष शाल्य का कहना है कि कई बच्चों को आपरेशन के बाद पैर के छोटे और कठोर होने तथा पैर की मांस पेशियों के कमजोर होने जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं लेकिन इस चिकित्सा पद्धति की मदद से आपरेशन के बाद उत्पन्न विकृतियों एवं असामान्यताओं को भी दूर किया जा सकता है। बच्चों की हड्डियों और जोड़ों के जन्मजात विकार क्लब फुट अथवा टेलीपेजद के बारे में हमारे देश में भयानक स्तर पर अज्ञानता होने के कारण इस विकृति से ग्रस्त बच्चों का समय पर समुचित उपचार नहीं हो पाता। कई मां—बाप क्लब फुट को लाइलाज समझ कर अपने बच्चे का इलाज या तो नहीं करवाते हैं या देर से इलाज करवाते हैं जिसके कारण उनके बच्चे ताउम्र विकलांगता के शिकार हो जाते हैं। नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के पूर्व वरिष्ठ अस्थि शल्य चिकित्सक डा. सुभाष शल्या बताते हैं कि पैर के जन्मजात तौर पर मुड़े होने को क्लब फुट कहा जाता है। इसके अतिरिक्त कई बच्चों में जन्म के बाद किसी बीमारी अथवा किसी तरह की कमी या असामान्यता के कारण टखने अथवा पैरों में टेढ़ापन आ जाता है। क्लब फुट होने पर पैर नीचे की तरफ अंदर की और मुड़ा प्रतीत होता है तथा एड़ी जमीन से ऊपर उठी होती है। इस वजह से चलने में कठिनाई होती है तथा चाल बेढंगी हो जाती है। डा. शल्या के अनुसार इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों में से ५० फीसदी बच्चों के दोनों पैरों में विकृतियां होती हैं। एक पैर में विकृति होने पर प्रभावित पंजे और एड़ी दूसरे पैर से छोटे हो जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार हर १००० हजार बच्चों में एक बच्चा क्लब फुट से ग्रस्त होता है। लड़कों को लड़कियों की तुलना में यह समस्या दोगुनी होती है। माता पिता से किसी एक के क्लब फुट से ग्रस्त होने पर जन्म लेने वाले बच्चे को क्लब फुट होने की आशंका ३ व ४ प्रतिशत होती है। माता पिता दोनों के क्लब फुट से ग्रस्त होने पर होने वाले बच्चों को क्लब फुट की आशंका १५ प्रतिशत हो जाती है। डा. शल्या बताते हैं कि क्लबफुट के अनेक कारण हो सकते हैं ।
जन्मजात कारणों के अलावा में बच्चे की असामान्य स्थिति, पैर की मांसपेशियों में खून की कमी अथवा कोई संक्रमण तथा पोलियों अथवा स्पाइना बाइफिडा नामक रीढ़ की जन्मजात बीमारी क्लब फुट के प्रमुख कारण हैं। चिकित्सकों के अनुसार में गड़बड़ी आती है। क्लब फुट में बच्चों में दर्द का कारण नहीं बनता लेकिन अगर इसका उपचार नहीं किया जाये तो विकलांगता का उपचार अत्यंत मुश्किल है। क्लब फुट के उपचार की नई विधि का विकास करने वाले डा़ शल्या बताते हैं कि क्लबफुट का जन्म के पहले सप्ताह में उपचार आवश्यक होता है। उपचार आवश्यक होता है। उपचार की आरंभिक अवस्था में पैर को खींचकर और मोड़कर विपरीत स्थिति में (बाहर और ऊपर की तरफ) कर दिया जाता है। इसके बाद पैर की उंगलियों से लेकर जांघ के ऊपरी हिस्से तक प्लास्टर चढ़ा दिया जाता है। प्लास्टर एक दो सप्ताह में बदल दिया जाता है। प्लास्टर एक दो सप्ताह में बदल दिया जाता है। छह से आठ प्लास्टर के बाद मरीज के पैर के स्वरूप में सुधार आने की संभावना रहती है। करीब ५० से ९० प्रतिशत मरीजों में प्लास्टर से लाभ नहीं मिलने पर आपरेशन का सहारा लेना पड़ता है। आपरेशन बच्चे के आठ माह के होने से पूर्व ही किया जाना चाहिए। प्रचलित आपरेशन के तरह मांसपेशियों को काटकर उनकी स्थिति इस प्रकार बदल दी जाती है ताकि पैर सही स्वरूप में आ जाएं। आपरेशन का नुकसान यह है कि इससे पैर की मांसपेशियों की ताकत कम हो जाती है तथा अक्सर पैर की लंबाई भी कम हो जाती है। ज्यादातर मरीजों में आपरेशन के बाद पैर भी कठोर हो जाता है। इन कारणों से मरीज को चलते समय दर्द होता है। डा़ शल्या का कहना है कि उनके द्वारा विकसित इस विधि की मदद से उपरोक्त नुकसान नहीं होते हैं। साथ ही साथ आपरेशन के बाद छोटे हुए पैर की लंबाई बढ़ाई जा सकती है तथा प्रचलित आपरेशन के बाद आई विकृतियों एवं असामान्यताओं को दूर किया जा सकता है। इस पद्धति द्वारा की मदद से न तो पैर में जकड़न आती है और न ही पैर के बाद में छोटे होने की आंशका रहती है। नयी पद्धति से करीब १००० रोगियों का इलाज कर चुके डा. शल्या बताते हैं कि उनकी नयी पद्धति की मदद से पोलियो, सेरीब्रल पाल्सी तथा दुर्घटनाओं एवं कारणों से टेढ़े व छोटे हुए पैरों को भी सामान्य आकृति प्रदान की जा सकती है तथा उनकी लंबाई सही की जा सकती है।