प्रत्येक वस्तु के निर्णय करने में अनेक दृष्टियों से विचार करना चाहिये। लोक जीवन में यही बात लागू होती है। जैसे कि एक मैला वस्त्र है, वर्तमान में उसकी सफेदी एवं स्वच्छता मैल के कारण से तिरोभूत है। इस समय वह मैला कहा जाता है। यह एक पर्याय दृष्टि है जो तात्कालिक है। किन्तु वह वस्त्र सदा काल मैला नहीं है। वह स्वच्छ हो सकता है। स्वभाव की दृष्टि से शक्ति रूप में उसमें स्वच्छता एवं सफेदी मौजूद है। जब साबुन पानी से धुलेगा, उसकी सफेदी प्रकट हो जायेगी। यह द्रव्य दृष्टि की अपेक्षा से है। यदि दूसरी दृष्टि न हो तो मैल दूर करने का उपाय नहीं होगा। सापेक्षता एक सकारात्मक, अहिंसात्मक विचारधारा है। लोक जीवन में यह अधिक महत्व रखती है। इससे पुरुषार्थ समता यह अस्तित्व समन्वय सम्भावना मानसिक शान्ति, गम्भीरता आदि अनेक गुणों का विकास होता है। इसी कारण अनेकान्त द्योतक यह सिद्धान्त है। यह अनेकान्त लोक जीवन का गुरु माना गया है। अपेक्षाओं को समझे बिना लोक में भी शान्ति सद्भाव समाधान आदि की प्राप्ति नहीं हो सकती। सत्य की खोज आत्म विज्ञान के साथ—साथ लोक व्यवहार एवं समाज परिवार घर—घर के सम्बन्धों को मधुर बनाने के लिये एक दूसरे के अभिप्रायों को लेन—देन वार्तालाप न्याय आदि में भी इसकी उपयोगिता है। विपक्षी प्रतिकूलताओं में भी इससे समाधान होता है। जैसे नदी के दो कूल प्रतिकूल होते हुये भी नदी को उसके सम्यक प्रवाह से अनुकूल ही हैं। एक तट नष्ट हो जाये तो नदी की गति में बाधा आ जाती है। वह अपने गन्तव्य तक नहीं पहुंच पाती इसी तरह पक्ष के साथ विपक्ष के रहने पर गति में विकास होता है । विरोधी के बिना अस्तित्व नहीं रहता। विरोधी के अस्तित्व की स्वीकृति अनेकान्त की स्वीकृति है। विरोधों को मिटाने वाला यह सापेक्ष विज्ञान है। उक्त विषय के पांच उदाहरण इस प्रकार है—
१. लोक में देखा जाता है कि जो व्यक्ति मरण के सम्मुख है। उसे कहते है कि तुम दुखी मत हो, आत्मा अजर अमर है। वह कभी भी मरती नहीं है, न जलती है, न गलती है। न सूखती है। ‘नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:। (गीता)’ तथा घर वालों से कहते हैं कि जो जन्मा है, जिस शरीर का संयोग हुआ है। उसकी आयु समाप्त होते ही उसका वियोग नियम से होगा। क्योंकि पर्याय नाशवान है।
२. स्यादवाद मंज्जरी में लिखा है। एक राजा की कन्या को सोने का घड़ा प्रिय था। वह उससे खेलती थी । किंतु राजपुत्र उसका गले का हार बनाना चाहता था। राजा ने पुत्र की जिद पर वह घड़ा सुनार को हार बनाने के लिये दे दिया। सुनार के द्वारा घड़ा तोड़ने पर पुत्री दुखी हुयी। हार बनते देख पुत्र खुश हुआ। किन्तु राजा न दुखी हुआ और न सुखी हुआ। राजा की इस समता का कारण सापेक्ष दृष्टि है।
३. एक रेखा है। उसे स्पर्श किये बिना छोटी या बड़ी कैसे की जाय। इसका उपाय ये है कि उसके आगे दूसरी बड़ी रेखा खींचने पर वह छोटी हो जायेगी और छोटी रेखा खींचने पर वह बड़ी हो जायेगी। अत: वह बड़ी भी है छोटी भी है और न बड़ी है न छोटी है । यह स्याद्वाद का प्रयोग लोक जीवन में चम्तकार पैदा करता है।
४. एक व्यक्ति पर्वत पर चढ़ा है। उसे नीचे वाला व्यक्ति छोटा दिखता है तथा नीचे वाले को ऊपर वाला छोटा दिखता है। जब ऊपर का व्यक्ति नीचे आकर मिलता है। तब न कोई छोटा है न कोई बड़ा है । दोनों बराबर हैं। अपेक्षा से छोटे भी हैं, बड़े भी हैं, कोई विरोध नहीं है। इसी तरह दूर पास, एक, अनेक, भला—बुरा, कर्ता—अकर्ता, पिता—पुत्र आदि सम्बन्ध संसारी पापी, क्रोधी, रंक—राजा, काला—गोरा, गरम—नरम, सारे वचन व्यवहार लोक में सापेक्ष है।
५. किसी शिष्य ने कोई गलती की गुरु ने उसे मूर्ख कह दिया वह वाक्य वर्तमानकाल की अपेक्षा है। वह सर्वथा नहीं है। क्योंकि वही शिष्य आगे विद्वान, मनीषी बन जाता है। ऐसी अनेक घटनायें वर्तमान पर्याय की अपेक्षा से घटित होती हैं। उन्हें सर्वथा मानने से झगड़ा हो सकता है। एक कवि ने लिखा है—
निर्धनत्वं धनं एषां , मृत्युरेव हि जीवनम् । किं करोति विधिस्तेषां, ग्रेषा आशा निराशता।।
अर्थ— जिन साधुओं को निर्धनता ही धन हो, मृत्यु ही जीवन हो, उनके लिये तथा आशा ही जिनको निराशता का कारण हो उन्हें कर्म क्या कर सकता है। यह अपनी दृष्टि एवं अभिप्राय की बात है। सह सिद्धान्त लोक में संघर्ष मिटाने के लिये और सत्य तक ले जाने के लिये सर्व समाधान कर्ता शान्तिप्रद है। सद अभिप्राय से बोला गया झूठ भी सच हो जाता है। जैसे वन में शिकारी ने साधु से पूछा कि आपने यहां से मृग झुण्ड निकलता देखा है क्या ? साधु ने मृग झुण्ड निकलने पर भी उसकी रक्षा के लिये कह दिया, नही निकला । यह झूठ भी सत्य है । लोक व्यवहार में शान्ति के लिये व्यवहार में दो सूत्र दिये। जो इस प्रकार हैं— १.जीओ और जीने दो। २. परस्परोपग्रहो जीवानाम् । ये दोनों सूत्र एक दूसरे की भलाई प्रेम भाईचारा की शिक्षा देकर ईष्र्या , घृणा आदि को छोड़ विकास प्राप्त करने में कारण है। सर्वोदयी हैं और विश्व शान्ति के कारण हैं। हमारे देश और विदेश में जो समस्यायें होती हैं। उन सब में पक्ष—विपक्ष रहता है और वे परस्पर न्याय पाने को सच्चाई तक जानने को होती है। भारत का संविधान नीतियां नियम, कानून, विभिन्न प्रकार के निर्णय जो न्यायाधीश देते हैं। वकील तर्क वितर्क करते हैं। यदि वे सापेक्ष होते हैं। सत्याग्रही होते हैं। तो सफल होते हैं । किंतु जो हठाग्रही, दुराग्रही, स्वार्थी , एकान्ती होते हैं वे असफल सिद्ध होते हैं। अत: लोक व्यवहार में भी यह अनेकान्त सिद्धान्त असंदिग्ध है।