नदी के प्रवाह में से लकड़ियाँ इकट्ठी करके लाते हुए एक आदमी को रानी ने देखकर राजा से उसको धन देने के लिए कहा। राजा ने उसे बुलाया तब उसने अपने बैल की जोड़ी के लिए एक बैल मांगा। राजा उसका एक बैल देखने के लिए उसके घर गया तो देखा कि उसे यहाँ रत्न सुवर्ण से बने हुए पशु-पक्षियों की सैकड़ों जोड़ियाँ थीं। उसकी स्त्री ने राजा को भेंट करने के लिए रत्नथाल भर कर सेठ को दिया, अति लोभ से रत्नथाल हाथ में लेते ही सेठ की अंगुलियाँ सर्प के फण सदृश हो गई। यह सब देखकर राजा ने उसकी निंदा करके ‘फणहस्त’ नाम रख दिया वह लोभ से मरकर अपने भण्डार में सर्प हो गया वहाँ पर भी अपने ही पुत्रों के द्वारा मारा गया और लोभ से मरकर चौथे नरक चला गया।