पाँचवें ब्रह्म स्वर्ग के अंत में लौकांतिक देव रहते हैं। ईशान आदि आठ दिशाओं में गोलाकार प्रकीर्णक विमानों में ये यथाक्रम से रहते हैं। लौकांतिक देवों के ८ भेद होते हैं-सारस्वत, आदित्य, वन्हि, अरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध और अरिष्ट।
ईशान दिशा में सारस्वत, पूर्व दिशा में आदित्य, आग्नेय दिशा में वन्हि देव, दक्षिण दिशा में वरुण, नैऋत्य भाग में गर्दतोय, पश्चिम दिशा में तुषित, वायव्य में अव्याबाध और उत्तर दिशा में अरिष्ट ये आठ प्रकार के देव निवास करते हैं। इनके अंतराल में दो-दो अन्य देव हैं उनके नाम-सारस्वत-आदित्य के अंतराल में नियम से अनलाभ और सूर्याभ देव, आदित्य-वन्हि के अंतराल में चंद्राभ, सत्याभ। वन्हि अरुण के मध्य में श्रेयस्कर, क्षेमंकर, अरुण गर्दतोय के अंतराल में वृषभेष्ट, कामधर, गर्दतोयतुषित के अंतराल में निर्माणराज, दिगंतरक्षित। तुषित और अव्याबाध के मध्य में आत्मरक्ष, सर्वरक्ष। अव्याबाध और अरिष्ट के मध्य में मरुतदेव, वसुदेव। अरिष्ट और सारस्वत के अंतराल में अश्व और विश्व नामक देव रहते हैं। इनकी संख्या-
देवों के नाम संख्या अंतराल के देव संख्या अन्त:देव संख्या
सारस्वत ७०० अनलाभ ७००७ निर्माणराज २३०२३
आदित्य ७०० सूर्याभ ९००९ दिगंतरक्ष २५०२५
वन्हि देव ७००७ चंद्राभ ११०११ आत्मरक्ष २७०२७ अरुण ७००७ सत्याभ १३०११ सर्वरक्ष २९०२९
गर्दतोय ९००९ श्रेयस्कर १५०१५ मरुदेव ३१०३१
तुषित ९००९ क्षेमंकर १७०१७ वसुदेव ३३०३३
अव्याबाध ११०११ वृषभेष्ट १९०१९ अश्वदेव ३५०३५
अरिष्ट ११०११ कामधर २१०२१ विश्वदेव ३७०३७
इन सभी लौकतांत्रिक देवों का प्रमाण-४०७८०६ है।