(श्री गौतमस्वामीकृत-निषीधिकादण्डक तथा चैत्यभक्ति से)
उड्ढमहतिरियलोए सिद्धायदणाणि णमंसामि, सिद्धणिसीहियाओ अट्ठावयपव्वए सम्मेदे उज्जंते चंपाए पावाए मज्झिमाए हत्थिवालियसहाए जावो अण्णाओ काओवि णिसीहियाओ जीवलोयम्मि।
ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और मध्यलोक में जितने भी सिद्धायतन जिनमंदिर हैं तथा इस मनुष्यलोक में अष्टापद पर्वत, सम्मेदशिखर, ऊर्जयंत-गिरनार, चंपापुरी, पावापुरी आदि जितने भी तीर्थंकर आदि भगवन्तों के जन्म, निर्वाण आदि क्षेत्र हैं, उन सबको मैं नमस्कार करता हूँ।
चौबीस तीर्थंकर इस अवसर्पिणी में हुए हैं-
१. श्री ऋषभदेव २. श्री अजितनाथ
३. श्री संभवनाथ ४. श्री अभिनंदननाथ
५. श्री सुमतिनाथ ६. श्री पद्मप्रभनाथ
७. श्री सुपार्श्वनाथ ८. श्री चन्द्रप्रभनाथ
९. श्री पुष्पदंतनाथ १०. श्री शीतलनाथ
११. श्री श्रेयांसनाथ १२. श्री वासुपूज्यनाथ
१३. श्री विमलनाथ १४. श्री अनंतनाथ
१५. श्री धर्मनाथ १६. श्री शांतिनाथ
१७. श्री कुंथुनाथ १८. श्री अरनाथ
१९. श्री मल्लिनाथ २०. श्री मुनिसुव्रतनाथ
२१. श्री नमिनाथ २२. श्री नेमिनाथ
२३. श्री पार्श्वनाथ २४. श्री महावीरस्वामी
रत्नपुरी यतीन्द्राणां, मंगलं कुरुताच्च न:।
सद्धर्र्मवृद्धये भूयात्, धर्मनाथस्य जन्मभू:।।
धर्मनाथ तीर्थंकर की जन्मभूमि रत्नपुरी सभी साधुगणों के लिए मंगलकारी होवे और हम सभी के लिए मंगलकारी होवे तथा सद्धर्म की वृद्धि के लिए होवे।
दोहा-
तीर्थंकर को वंदते, जन्मभूमि वंदंत।
तीर्थंकर को तीर्थ को, नमूँ मिले भव अंत।।१।।