मथुरा के राजा पूतिगंध की दो रानियाँ थीं। उर्विला रानी सम्यग्दृष्टि थी और दूसरी बुद्धदासी रानी बौद्ध धर्मानुयायी थी। हमेशा रानी उर्विला आष्टान्हिक पर्व में रथयात्रा करके धर्म प्रभावना करती थी।
एक बार बुद्धदासी ने कहा-महाराज! पहले मेरा रथ निकलेगा। राजा ने मोहवश यह बात मान ली। तब रानी उर्विला ने चारों प्रकार के आहार का त्याग कर दिया और क्षत्रियगुफा में विराजमान सोमदत्त तथा वज्रकुमार मुनि के पास पहुँचकर प्रार्थना करने लगी-भगवन्! धर्म की रक्षा कीजिये।
मुनिराज ने उसे आश्वासन दिया और उसी समय दर्शन के लिए आए हुए दिवाकर देव आदि विद्याधरों को प्रेरणा दी। तब गुरू की आज्ञा से उन विद्याधरों ने रानी उर्विला के रथ में अरहंत भगवान की प्रतिमा विराजमान करके आकाश मार्ग से खूब प्रभावनापूर्वक विशेष जुलूस के साथ रथ निकाला।
इस अतिशय को देखकर राजा पूर्तिगंध, बुद्धदासी आदि सभी जैन बन गये। सर्वत्र जैनधर्म का जय जयकार हो गया। वज्रकुमार मुनि ने जैनधर्म की प्रभावना कराके अपने यश को अमर कर दिया।