इतिहास अतीत का प्रामाणिक भौतिक दस्तावेज होता है जो अनेक लिखित-अलिखित साक्ष्यों के दृश्य अदृश्य सूत्रों से गुंथा होता है “जिन साक्ष्यों का भौतिक और दृश्य अस्तित्व होता है ,यत्र-तत्र बिखरा होने के कारण उनका संकलन करना भी एक दुष्कर कार्य है लेकिन अदृश्य सूत्रों को अत्यंत सतर्कतापूर्वक और पारस्परिक संगति का निर्वाह करते हुए यत्नपूर्वक खोजना पड़ता है जो खाक छानने से कम श्रमसाध्य कार्य नहीं है ” जैन समाज में 84 उपजातियों की मान्यता लोकविश्रुत है “विगत 2500 वर्षों में जैन संतों के धर्म-प्रचार से प्रभावित होकर लाखों की संख्या में लोगों ने जैन धर्म अंगीकार किया और जैन अभिधान अपनाकर अपने-अपने ग्राम-स्थान के नाम से प्रख्यात हुए हैं ,जैसे-अग्रोहा से अग्रवाल ,खंडेला गाँव से खंडेलवाल ,जैसलमेर से जैसवाल ,पद्मावती पुर या पवाया गाँव के नाम से पद्मावती पुरवाल ,वघेरा गाँव के नाम से वघेरवाल प्रसिद्ध हुए हैं “वरहिया जाति का जहाँ तक प्रश्न है ,यह एक स्वतन्त्र जाति है जो क्षत्रिय वर्ण कदाचित नरवर के राजा नल की वंश परंपरा से सम्बंधित है और अहिंसा वृत्ति के कारण क्षात्रत्व से विमुख होने व आजीविका के रूप में वाणिज्य को अपनाने के कारण कालांतर में उसकी गणना वैश्यों में की जाने लगी “वरहिया संज्ञा स्थानवाची न होकर गुणवाची है “वरहिया समाज मूलसंघ, कुन्द्कुंदान्वय को मानने वाली समाज है जो अपनी प्राचीनता और मूलता को संजोये है और प्रतिकूल स्थितियों में भी परंपरा से विमुख नहीं हुई “यह श्रेष्ठ और मूल दिगंबर जैन धर्मानुयायिओं का संगठन ही वरहिया नाम से विश्रुत हुआ “
वर माने जो श्रेष्ठ है ,हिया ह्रदय में मान”
जाति वरहिया जानिए ,शीलवंत गुणवान “”
बोलचाल में इसका वरैया पाठ भी व्यवहृत हुआ है ,जो मुखसुख या प्रयत्न-लाघव के कारण हुआ है लेकिन मूल पाठ वरहिया ही है और वरैया उसका अपभ्रंश है “‘वरहियान्वय ‘ के विद्वान् लेखक श्री रामजीत जैन ने निर्विवाद रूप से इस तथ्य को स्थापित किया है “वरहिया समाज के प्रकांड विद्वान् पं.गोपालदास वरैया की ख्याति और उन्हें मिले बहुमान को भुनाने का लोभ संवरण न कर पाने के कारण कुछ लोग अभी भी ‘वरैया’ शब्द को अपनाने का आग्रह रखे हुए है ” वरहिया-विलास के लेखक श्री प्यारेलाल ‘लाल’ने वरहिया शब्द का व्युत्पत्यर्थ इस प्रकार किया है —
वर माने जो श्रेष्ठ है, हिया ह्रदय निर्दोष “
करे रमण निज रूप में,सो विलास सुखकोष””
सो विलास मग मोक्ष ,रमण निज में नित करना ”
करम कालिमा धोय ,जाय शिवपुर सुख भरना “”
कहें लाल कवि जैन,यही सुख का है सरवर “
बनो ‘वरहिया’आप लेउ तुम शिव सुंदरी वर “”
वि.संवत १८२५ में भेलसी (टीकमगढ़ )के श्री नवलशाह ने वर्धमान पुराण की प्रशस्ति में गोलापूर्व जाति का इतिहास लिखते हुए वरहिया जाति को ‘नेत वरहिया ‘ लिखा है “नेत वरहिया का अर्थ प्राचीन एवं श्रेष्ठ है ” वि.संवत १६५१ में कविवर परिमल ने श्रीपाल चरित में अपने व अपने पूर्वजों का परिचय इस प्रकार दिया है —
गोवरि गिरिबहु उत्तम जान ,शूरवीर वहां राजा मान “
ता आगे चन्दन चौधरी ,कीरति सब जग में विस्तरी ”
जाति वरहिया गुन गंभीर ,अति प्रताप कुल राजे धीर “
ता सुत रामदास परवीन ,नंदन आशकरण शुभदीन “
ता सुत कुल मंडल परिमल्ल,बसे आगरे में तजि सल्ल”
एक किम्वदंती के अनुसार नरवर के प्रतापी नरेश राजा नल के प्रपौत्र वीरमचन्द को वरहिया लोगों का पूर्वपुरूष बताया गया है “कालांतर में यही वरहिया वंश आठ गौत्रों में विभाजित हुआ “ये आठ गौत्र हैं -1 चौधरी ,2 कुम्हरिया,3 पलैया,4 भंडारी ,5 ऐछिया या ऐरछिया ,6 सेंथरिया या सिंहपुरिया ,7 पहाड़िया ,8 नोने या नोनेरिया “इन मूल आठ गौत्रों के पश्चात् 28 और गौत्र अस्तित्व में आये ,जिनकी सूची इस प्रकार है — 1 चौरिया ,2 वगेरिया ,3 पुनिहा ,4 निकोरिया ,5 भागी ,6 तरपटले या तरपटिया ,7 सिनरुखिया,8 सोनिया या सोनी ,9 अकलनया या इकलोने ,10 साहू ,11 कमोखरिया या केमोरिखिया ,12 उदयपुरिया ,13 अलापुरिया ,14 मेहरोटिया या मोरसिन्धु,15 गुलिया ,16 वेदिया,17 रोंसरिया ,18 इन्दुरिखिया ,19 किरोड़ या कारोडिया,20 धनोरिया ,21 वदरेठिया ,22 भटसंतानी ,23 वरैया ,24 पदमपेंथिया,25 सिंघई ,26 सेठिया ,27 तिलोरिया ,28 दाऊ ” वरहिया जाति का निवास क्षेत्र सामान्यतः ग्वालियर जिले के -अमरोल ,ईटमा,करई,ऐसा ,करहिया,कैरुआ,कुलैथ ,घाटीगांव ,चराई,चीनौर ,छीमक ,जौरासी ,डबरा,देवरी,दुबहा ,दुबही,पाटई ,वनबार,बरौआ ,बागबई ,वाजना ,भितरवार ,भेंगना ,मोहना ,रेंहट ,लश्कर ,सभराई ,स्याउ ,सिमरिया ,सिरसा ,बिलौआ ,मस्तुरा ,खिरिया , रिठोंदन ” शिवपुरी जिले के अमोला ,आमोल ,इंदार ,करैरा ,गोपालपुर,चुरेलखेरा,चोरपुरा,धौलागढ़ ,नरवर,पारागढ़,मगरौनी ,ममौनी ,बनियानी ,राजगढ़ ,सलैया,सतनवाडा,कौलारस ,गधौटा,शिवपुरी ” मुरैना जिले के –अलापुर,जौरा,टिकटोली ,धमकन,बानमोर,मुरैना,सुमावली ,नरहेला ” आगरा जिले के आगरा ,कुर्रचित्तरपुर,गढ़ी महासिंह ,बड़ा नगला ,वदे का वास,शमसाबाद ,ढोकी ” रतलाम जिले के जावरा ,सैलाना ,रावटी में रहा है ” इसके अतिरिक्त अपनी आजीविका कमाने के लिए भारत के विभिन्न प्रान्तों में इस जाति के लोग निवासरत हैं “गांवों में निवास करने वाले अधिकांश लोग बेहतर आजीविका की तलाश में अब प्रायः नगरों की ओर रुख कर रहे हैं और वाणिज्य के अलावा विभिन्न क्षेत्रों में क्रियाशील हैं “”