वीर निर्वाण के लगभग सौ वर्ष बाद मगध नरेश नंदिवर्धन ने अयोध्या में मणिपर्वत नामक उत्तुंग जैन स्तूप बनवाया था जो आज मणि पर्वत ढीला के नाम से प्रसिद्ध है। मौर्य सम्राट संप्रति और वीर विक्रमादित्य ने इस क्षेत्र के पुराने जिनमंदिरों का जीर्णोद्धार एवं नवीन मंदिरों का निर्माण कराया था। गुजरात नरेश कुमारपाल चौलुक्य (सोलंकी) ने भी यहाँ जिनमंदिर बनवाये थे। दशवीं-ग्यारहवीं शती ई. में यहाँ जैन धर्मावलंबी श्री वास्तव्य कायस्थ राजाओं का शासन चल रहा है।सन् ११९४ ई. के लगभग दिल्ली विजेता मुहम्मगोदी के भाई मखदूमशाह जूरन गोरी ने अयोध्या पर आक्रमण किया और ऋषभदेव-जन्मस्थान के विशाल जिनमंदिर को ध्वस्त करके उसके स्थान पर मस्जिद बनवाई शाहजूरन टीले पर मस्जिद के पीछे की ओर आदिनाथ का छोटा सा जिनमंदिर थोड़े दिनों बाद ही बन गया था।
किंवदन्ती ऐसी है-जैनों ने जब आग्रह किया कि यह हमारा प्राचीन पवित्र स्थल है-भगवान ऋषभदेव का जन्मस्थान है। अत: यहाँ मंदिर अवश्य बनना चाहिए। इसके समर्थन में प्रमाण मांगे जाने पर जैनों ने कहा कि स्थान की खुदाई करके देख लिया जाये, एक स्वास्तिक, नारियल तथा जलता हुआ घृत दीप मिलेगा। अस्तु, खुदाई होने पर यथावत् वस्तुएं मिलीं। इस पर जैनों को यहाँ मंदिर बनाने की इजाजत मिल गई।