ततश्चतुर्दशीपूर्वरात्रे सिद्धमुनिस्तुती,
चतुर्दिक्षु परीत्याल्पाश्चैत्यभक्तिगुरुस्तुती।।६६।।
शांतिभक्तिं च कुर्वाणैर्वर्षायोगस्तु गृह्यतां,
ऊर्जकृष्णचतुर्दश्यां पश्चाद्रात्रौ च मुच्यताम्।।६७।।
ततः अर्थात् मंगलगोचर प्रत्याख्यान ग्रहण करने के बाद ‘‘आषाढ़ शुक्ला चतुर्दश्या रात्रेः प्रथमप्रहरोद्देशे’’आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी के दिन पूर्वरात्रि में साधुवर्ग वर्षायोग ग्रहण करें-वर्षायोग ग्रहण की भक्तियाँ पढ़कर वर्षायोग-चातुर्मास की स्थापना कर लेवें। इसमें पहले सिद्धभक्ति और योगिभक्ति करें पुनः प्रदक्षिणारूप से चारों दिशाओं में अंचलिका सहित चैत्यभक्ति पढ़ें। इस भक्ति में ‘‘यावंति जिनचैत्यानि’’ इत्यादि श्लोक बोलकर ‘‘स्वयंभुवा भूतहितेन’’ इत्यादि स्वयंभूस्तोत्र की दो स्तुतियाँ पढ़कर चैत्यभक्ति पढ़कर पूर्वदिशा के चैत्यालयों की वंदना करें। ऐसे ही स्वयंभू स्तोत्र की आगे-आगे की दो-दो स्तुतियाँ पढ़कर चैत्यभक्ति पढ़ते हुए दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा के चैत्यालयों की भावों से ही वंदना करें। इस चतुर्दिक् वंदना में वहाँ पर स्थित जनों को ‘‘योगतंदुल’’-पीले चावल का प्रक्षेपण करना चाहिए, ऐसा वृद्धव्यवहार-पुरानी परंपरा है।
इसके बाद पंचमहागुरुभक्ति और शांतिभक्ति करके वर्षायोग ग्रहण की क्रिया पूर्ण करें।