वर्षायोग समाप्ति के प्रारंभ में कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी के दिन मध्यान्ह में मंगलगोचर मध्यान्ह देववंदना करके, आहार करके आकर सभी साधु मंगलगोचर वृहत्प्रत्याख्यानविधि से बड़ी सिद्धभक्ति, योगभक्ति द्वारा वर्षायोगनिष्ठापन हेतु चतुर्दशी का उपवास ग्रहण करते हैं पुन: आचार्यभक्ति पढ़कर आचार्यवंदना करके शांतिभक्ति का पाठ करते हैं।
अनंतर कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की पिछली रात्रि में पूर्वोक्त विधि से भक्तियों का पाठ करते हुये वर्षायोग समापन कर देते हैं। उसमें अन्तर केवल इतना ही रहता है कि….‘‘वर्षायोग प्रतिष्ठापनक्रियायां” पाठ के स्थान पर ‘‘वर्षायोग निष्ठापनक्रियायां” पाठ बोलते हैं।
वर्षायोग निष्ठापना के बाद सभी साधु मिलकर ही वीर निर्वाण क्रिया करते हैं, उसमें सिद्धभक्ति, निर्वाणभक्ति, पंचगुरूभक्ति और शांतिभक्ति का पाठ पढ़ते हैं अनंतर नित्य देववंदना अर्थात् सामायिक करते हैं।