वर्षायोग प्रतिष्ठापना में जो-जो भक्तियाँ पढ़ी जाती हैं वे ही सारी भक्तियाँ यहाँ भी पढ़ी जाती हैं अन्तर इतना ही है कि ‘प्रतिष्ठापन’ के स्थान पर ‘निष्ठापन’ बोलें। यथा-
नमोऽस्तु वर्षायोगनिष्ठापनक्रियायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थं भावपूजावंदनास्तवसमेतं सिद्धभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं।
ऐसे ही वर्षायोगप्रतिष्ठापन की पूरी क्रिया करनी चाहिए।
वर्षायोग कितने दिनों का है?
आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी के दिन वर्षायोग प्रतिष्ठापना करके यद्यपि कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की पिछली रात्रि में समापन कर देते हैं फिर भी साधुओं को ‘‘शुक्लोर्जपंचमीं यावत्’’ कार्तिक शुक्ला पंचमी के पहले विहार नहीं करना चाहिए। यदि कदाचित् किसी विशेष कारणवश-दुर्निवार उपसर्गादि के निमित्त से वर्षायोग-चातुर्मास के मध्य उस गाँव से विहार करना पड़ जावे तो गुरु से प्रायश्वित लेना चाहिए।ऐसे ही आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी की पूर्वरात्रि में कदाचित् वर्षायोग स्थापना न कर सकें तो ‘‘नभश्चतुर्थीं न लंघयेत् ’’ श्रावण कृष्णा चतुर्थी को भी कर सकते हैं इसके बाद नहीं। अथवा चतुर्थी के स्थान पर पहुँचकर पंचमी को भी वर्षायोग स्थापना कर सकते हैं।
चातुर्मास के पहले और अनन्तर भी एक-एक माह अधिक उस चातुर्मास स्थान पर रह सकते हैं, ऐसा कथन है।