साधक दूसरों को संतोष देने वाला हितकारी और मित—संक्षिप्त वचन बोलता है। मा कडुयं भणह जणे महुरं, पडिमणह कडुयभणिया वि। जइ गेण्हिऊण इच्छह लोए सुहयत्तण—पडायं।।
यदि संसार में अच्छेपन की ध्वजा लेकर चलना चाहते हो तो लोगों को कडुवा मत बोलो और उनके द्वारा कडुवा बोले जाने पर भी मधुर वचन बोलो। हासेण वि मा भण्णउ, णयरं जं मम्मवेहणं वयणं।
हँसी—मजाक के द्वारा भी मर्मवेधक और व्यर्थ के वचन मत बोलो। जल—चंदण—ससि—मुत्ता—चंदमणी तह णरस्स णिव्वाणं। ण करंति कुणइ ज अत्थज्जुयं हिय—मधुर—मिद—वयणं।।
जल, चंदन, चंद्रमा, मुक्ताफल, चन्द्रमणि आदि मनुष्य को उस प्रकार सुखी नहीं करते, जिस प्रकार अर्थयुक्त, हितकारी मधुर और संयत वचन सुखी करते हैं।