अनगार१ धर्मामृत में कहा है-एतेन वृहत्प्रतिक्रमणा: सप्त भवन्तीत्युक्तं भवति। ताश्च यथा-व्रतारोपणी, पाक्षिकी कार्तिकान्तचातुर्मासी फाल्गुनान्तचातुर्मासी, आषाढान्त- सांवत्सरी सार्वातिचारी उत्तमार्थी चेति।
अर्थात् आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी या पूर्णिमा को साधु वार्षिक प्रतिक्रमण करते हैं तथा प्रत्येक पक्ष में चतुर्दशी, अमावस्या या पूर्णिमा को पाक्षिक प्रतिक्रमण करते हैं। कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी या अमावस्या को भी पाक्षिक प्रतिक्रमण होता है पुन: कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी या पूर्णिमा को चातुर्मासिक प्रतिक्रमण होता है। ऐसे ही फाल्गुन के अंत में चतुर्दशी या पूर्णिमा को चातुर्मासिक प्रतिक्रमण किया जाता है। अर्थात् पन्द्रह दिन के दोषों के शोधन हेतु पाक्षिक, चार महीने के दोष विशोधन हेतु चातुर्मासिक और वर्ष भर के दोषों की शुद्धि हेतु वार्षिक प्रतिक्रमण किये जाते हैं।
वर्षायोग निष्ठापना कब और वैâसे करें?
‘‘ऊर्जकृष्णचतुर्दश्यां पश्चाद् रात्रौ च मुच्यताम्।।’’
‘‘कार्तिकस्य कृष्ण चतुर्दशीतिथौ’’
अर्थात् कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की पिछली रात्रि में वर्षायोग को निष्ठापित कर देवें।