अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशत्व, वशित्व, अप्रतिघात, अन्तर्धान और कामरूप।
१. अणिमा – अणु के बराबर शरीर को करना। इसके द्वारा महर्षि अणुप्रमाण छिद्र में प्रविष्ट होकर चक्रवर्ती के कटक और निवेश की रचना कर लेते हैं।
२. महिमा – मेरु के बराबर शरीर को कर लेना।
३. लघिमा – वायु से भी लघु शरीर को करना।
४. गरिमा – वङ्का से भी अधिक गुरुतायुक्त शरीर को करना।
५. प्राप्ति – भूमि पर स्थित रहकर अंगुलि के अग्रभाग से सूर्य, चन्द्र, मेरुशिखर आदि को प्राप्त करना-छू लेना।
६. प्राकाम्य – इस ऋद्धि से जल के समान पृथ्वी पर उन्मज्जन-निमज्जन करना और पृथ्वी के समान जल में गमन करना।
७. ईशित्व – सब जगत् पर प्रभुता का होना।
८. वशित्व – सभी जीवसमूह का वश में होना।
९. अप्रतिघात – इस ऋद्धि के बल से शैल, शिला और वृक्षादि के मध्य में होकर आकाश के समान गमन करना।
१०. अंतर्धान – जिससे अदृश्यता प्राप्त होती है, वह अंतर्धान नामक ऋद्धि है।
११. कामरूपित्व – जिससे युगपत् बहुत से रूपों को रचता है, वह कामरूप ऋद्धि है।