बौद्धिक विकास के लिये प्रारम्भ में सरल और धीरे—धीरे जटिल प्रक्रिया अपनानी चाहिये। कोई भी काम सीखें या करें, उसकी शुरुआत हमेशा सरल चीजों से की जानी चाहिये और धीरे—धीरे कठिन चीजों की ओर बढ़ना चाहिये । इससे मस्तिष्क एक निश्चित गति से काम करता है और उस पर एक साथ अतिरिक्त दबाव नहीं पड़ता है। अध्ययन करते समय ध्यान रखें—
१- अध्ययन करते समय पाठ को छोटे—छोटे हिस्सों में विभक्त कर लें । एक हिस्सा याद हो जाये, उसके बाद ही दूसरे हिस्से को याद करने के लिये आगे बढ़ें। आगे का हिस्सा याद करने के पश्चात् पहले याद किया गया हिस्सा भी दोहरायें। एक साथ पूरा पाठ एक बार में याद करना कठिन होता है।
२- जो याद किया है उसका चिंतन अवश्य करें। अक्सर देखा जाता है, हम पूरा पाठ याद कर लेते हैं उसे समझ लेते हैं किन्तु जब प्रश्न पूछा जाता है तो उत्तर नहीं दे पाते। इसका कारण है पढ़े हुये विषय का चिंतन नहीं करना। चिंतन करने से जो बात समझ में नहीं आई वह मालूम पड़ जाती है और फिर उसे समझने का प्रयास किया जाता है।
३- पाठ याद करने के बाद उसे मौखिक दोहराने के पश्चात् लिखकर देखें कि वह कितना याद है। इस बात का भी ध्यान रखें कि याद करने के तुरन्त बाद न लिखकर लगभग १२ घंटे बाद उसे लिखें।
४- जो पाठ याद है उसके बारे में ही सोचें। जो याद नहीं है उसके बारे में सोचेंगें तो तनाव बढ़ेगा। जो पाठ याद नहीं है उसे याद करने का प्रयत्न करें। बार—बार यह न सोचें की पाठ याद नहीं है।
५- नियमित पढ़ाई करें। जो पाठ जिस दिन पढ़ाया जाता है उसी दिन याद करें तो कार्य सरल हो जाता है। परीक्षा के समय इकट्ठा एक समय पढ़ने से अनावश्यक तनाव बढ़ जाता है और पाठ याद भी नहीं होता।
६- पाठ को अच्छी तरह समझने के लिये पाठ्यक्रम की पुस्तक के अतिरिक्त ३—४ पुस्तके और पढ़े जिससे पाठ अच्छी तरह से समझ में आ जाये। विगत वर्षों के प्रश्न— पत्र हल करके देखें। इससे इस बात का पता चलता है कि किस प्रकार के प्रश्न ज्यादा पूछे जाते हैं और एक ही प्रश्न को किस प्रकार से भिन्न—भिन्न तरीकों से पूछा जाता है।
७- अपने सहपाठी मित्रों के साथ पढ़ें तथा प्रश्न—पत्र हल करें। जब कई मित्र साथ में पढ़ते हैं तो आपस में विचारवमर्श होता है और प्रश्न से संबधित किसी प्रकार की शंका या संदेह नहीं रहता।
८- लगातार पढ़ाई न करें। बीच—बीच में मस्तिष्क को आराम देने के लिये कुछ खेलें, मनोरंजन करें। इससे मस्तिष्क में ताजगी बनी रहेगी।
९- देर रात्रि तक न जागें । मस्तिष्क को शरीर की तरह ही आराम की आवश्यकता होती है। मस्तिष्क में ताजगी होगी तो पाठ जल्दी याद होगा। शारीरिक व्यायाम करें। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।
परीक्षा हेतु समय का ध्यान रखें
१- परीक्षा देते समय लिखावट की सुदंरता पर ध्यान दें । सुंदर लेखन से उत्तर पुस्तिका जाँचने वाले का ध्यान एवं रूचि आपकी उत्तर पुस्तिका में बनी रहेगी।
२- वाक्य रचना सरल हो। कम शब्दों और स्पष्ट अक्षरों में उत्तर दें।
३- प्रश्न—पत्र में जो प्रश्न पूछे गयें हैं उन्हीं का उत्तर दें। अपनी ओर से उसमें अनावश्यक वृद्धि न करें।
४- किताबी भाषा को याद करने के बाद उसे यथावत् लिखने का प्रयत्न न करें । उत्तर में अपनी रचनात्मकता का उपयोग करें। इससे यह लाभ भी होगा कि किसी शब्द के भूल जाने पर भी आप पूरा उत्तर नहीं भूलेंगें।
५- परीक्षा में उत्तर लिखने के बाद एक बार अवश्य पढ़ें । यदि कोई गलती की है तो उसे सुधारा जा सकता है।
६- तनाव रहित होकर एकाग्रचित से परीक्षा दें। तनावमुक्त होने पर ही अपनी पूरी क्षमता का उपयोग हो पाता है।
७- पूरें आत्म विश्वास के साथ परीक्षा दें। सभी प्रश्नों को हल करने के लिये समय विभाजन सही करें।
माता—पिता ध्यान रखें
१-बालक की प्रशंसा करें । यदि बालक की प्रशंसा की जाये तो पढ़ने में उसकी रूचि बढ़ जाती है। बालक ने पाठ का जितना हिस्सा याद कर लिया है उसकी प्रशंसा करें। very well, well done, Excellent आदि शब्दों से बच्चों का उत्साहवर्धन होता है। इसके विपरीत जो पाठ याद नहीं किया गया उसके लिये नकारात्मक शब्दों के प्रयोग से बालक हताश एवं निराश हो जाता है । उसका उत्साह कम हो जाता है और वह पढ़ने में रूचि खो देता है।
२- बच्चे की तुलना न करें। प्रत्येक बच्चा अलग होता है और हर बच्चे की अपनी क्षमता एवं विशेषता होती है। कोई बच्चा जल्दी सीखता है तो कोई देर से। अत: अनावश्यक तुलना से बचें।
३- बच्चे पर अधिक दबाव न डालें । बच्चे में जो योग्यता है उसे उतना ही करने दें । अधिक दबाव डालने से बच्चे में अनावश्यक तनाव बढ़ेगा।
४- बच्चे के प्रति सहानुभूति रखें । बच्चे के प्रति सख्ती से पेश न आयें । मारपीट न करें।
५- प्रेरणा के लिये समय—समय पर उपहार , इनाम, मनपसंद वस्तु का प्रलोभन दें।
६- पौष्टिक आहार, मनोरंजन, आराम, आदि का ध्यान रखें। अंत में, परिश्रम, लगन, त्याग, आत्मबल, अनुशासन तथा आत्मविश्वास के साथ छात्रजीवन में ज्ञानार्जन तो करें परन्तु साथ में भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों को आत्मसात् कर शिक्षा के परमउद्देश्य को सार्थक करें।