विद्युत्प्रभ पर्वत के ऊपर सिद्ध, विद्युत्प्रभ नामक, देवकुरु, पद्म, तपन, स्वस्तिक, शत उज्ज्वल (शतज्वाल), सीतोदा और हरि, इन नामों से भुवन में विख्यात और अनुपम आकार वाले नौ कूट हैं। इन कूटों की उँचाई अपने पर्वत की उँचाई के चतुर्थ भागप्रमाण है।।२०४५-२०४६।। उन कूटों की लम्बाई और विस्तारविषयक उपदेश इस समय नष्ट हो चुका है। इनमें से प्रथम कूट की उँचाई एक सौ पच्चीस योजन और अन्तिम कूट की उँचाई का प्रमाण एक सौ योजन है। प्रथम कूट की उँचाई में से अन्तिम कूट की उँचाई को घटाकर शेष पाँच के वर्ग में आठ का भाग देने से हानि-वृद्धि का प्रमाण निकलता है।।२०४७-२०४८।। इच्छा से गुणित हानि-वृद्धि के प्रमाण को भूमि में से कम करने अथवा मुख में जोड़ देने पर क्रम से कूटों की उँचाई होती है।।२०४९।। प्रथम कूट की उँचाई एक सौ पच्चीस योजनप्रमाण जानना चाहिये तथा शेष कूटों की उँचाई जानने के लिये उत्तरोत्तर उत्पन्न प्रमाण में से आठ से भाजित पच्चीस योजन कम करते जाना चाहिये।।२०५०।। विद्युत्प्रभ नामक पर्वत की लम्बाई में नौ का भाग देने पर जो लब्ध आवे उतना प्रत्येक कूटों का अन्तराल प्रमाण होता है।।२०५१।। यह अन्तराल प्रमाण तीन हजार तीन सौ छप्पन योजन और एक सौ इकहत्तर से भाजित एक सौ एक कलामात्र है।।२०५२।। ३३५६-१०१/१७१। इस पर्वत पर जिनभवनादिक सौमनस पर्वत के ही समान हैं। विशेष केवल यह है कि यहाँ देवियों के नाम अन्य है।।।२०५३।। स्वस्तिक कूट पर बला नामक व्यन्तरदेवी और कनककूट पर वारिषेणा नामक उत्तम देवी रहती है।।२०५४।। मन्दरपर्वत से आधा योजन जाकर विद्युत्प्रभ पर्वत में पर्वत के विस्तार समान लम्बी रमणीय गुफा स्थित है।।२०५५।। इसके दोनों पाश्र्वभागों में अपने योग्य उँचाई व विस्तार से सहित तथा नाना उत्तम रत्नों से रमणीय अकृत्रिमरूप द्वार हैं१।।२०५६।।