१.कच्ची हर्र बहुत ही उपयोगी है। इसका एक चम्मच चूर्ण गर्म जल के साथ लेने से पाखाना (शौच) साफ होता है।
२. भुनी हुई हर्र के एक चम्मच चूर्ण में थोड़ा सेंधानमक और अजवान मिलाकर लेने से पाचन शक्ति बढ़ती है।पेट के कीटाणु नष्ट होते हैं।
३. हर्र को साफ पत्थर पर धिसकर आँख में लगाने से आँख में कीचड़ का आना, आँख से आँसू निकलना ठीक हो जाता है
१. इसका छिलका खाँसी पर लाभकारी है एवं यह त्रिफला का एक अँग है।
२. नाभि के टलने पर बहेड़ा का प्रयोग—इसे (घन्न—चली—जाना) अथवा पेट टरना आदि कहते हैं। इसमें आँत की गुठली थोड़ी सी खिसक जाती है। पेट में पीड़ादायी दर्द होता है। इस रोग में बहेड़े फल की ५० ग्राम मात्रा लेकर उसे पीस कर एक किलो पानी में डालकर मिट्टी के बर्तन में धीमी आँच में पकाकर काड़ा बनायें। १०० ग्राम शेष रहने पर इसकी लगभग २५—२५ ग्राम मात्रा दिन में तीन—चार बार पिलाने से नाभि स्वयं अपने स्थान पर आ जाती है।
३. कुष्ठ रोग पर बहेड़े की गिरी का तेल एवं बकुची का तेल मिलाकर लगाने से कुष्ठ रोग ठीक होता है।
१. पिपरमेन्ट गर्म
२. कपूर तरगरम
३. अजवायन का फूल गरम नोट — पिपरमेन्ट, कपूर, अजवायन का फूल तीनों को बराबर—बराबर मात्रा में लेकर उनके मिश्रण से अमृतधारा बन जाती है। यह वै, दस्त उल्टी, जी मिचलाना, कफ खाँसी में गुणकारी है।
सौंठ, मिर्च, पीपल को त्रिकुटी कहते हैं।
नोट — इसका समभाग में लेकर आधा चम्मच सीरा के साथ लेने पर श् वांस, खांसी त्वचा के रोग, जुल्म दूर होता है। अश्वगँध—यह दो प्रकार का होता है।
१.सादा अश्वगँधा
२. नागौरी अश्वगँधा १.यह बादी नाशक है। वदन के दर्द होने पर इसके चूर्ण को दूध में उबालकर पीने से बदन का दर्द ठीक हो जाता है। २.यह एक पौष्टिक, वाजीकरण, बलवर्धक औषधि हैं। इसका चूर्ण एक चम्मच लेकर उसमें बूरा और दूध के साथ लगातार लेने से नुपंसकता दूर होकर वीर्यक्षमता बढ़ती है।
३. इसके चूर्ण को बदन में सूख अथवा तेल में उबालकर मलिश करने से बदन दर्द दूर होता है।
नोट— इसकी तासरी गर्म हैै। अत: दूध चीनाी के साथ लेना श्रेष्ठ है। विधार : यह विशेष रूप से कमर के दर्द में लाभकारी है। अन्य दर्द भी ठीक होते हैं। इसका एक चम्मच चूर्ण पानी अथवा दूध के साथ लेना चाहिए।
१. इसकी कौपल के २५—३० पत्ते प्रतिदिन खाने वाले को कभी ज्वर नहीं आता और स्वास्थ्य हमेशा ठीक रहता है। पेट के कृमि नष्ट हो जाते हैं ब्लड में सुगर (मधुमेह) की रोकथाम करती है।
२. इसकी जड़ के नीचे का काला हिस्सा लेकर महीन पीसकर किसी प्रकार के घाव पर लगाते रहने से सभी प्रकार के घाव पर लगाते रहने से सभी प्रकार के घाव भर जाते हैं। क्योेंकि यह एण्टीबायोटिक और एण्टीसेप्टिक गुण वाला होता है।
३. इसकी छाल को पीसकर नमक मिलाकर मंजन करने से दांत के कीड़े दूर हो जाते हैं। मुँह की बदबू दूर हो जाती है। इसकी दातौन भी लाभकारी है।
४. इसके पत्तों को गर्म पानी में साफ करके, उबालकर उस पानी से नहाने से चर्म रोग ठीक हो जाता है।प्रसूत के पश्चात् महिलाओं को अमृत के समान गुणकारी है। ग्रामों में इसी के गर्म पानी से प्रथम स्नान कराते हैं।
५. इसका तेल भी चर्म रोग नाशक है। इसका साबुन भी बनता है। ६. इसका अर्क भी बुखार आदि में लाभकारी है।
१. पलास की जड़ का ढोलायँत्र से अर्व निकालकर उसे काँच की शीशी में रखें अर्क को आँख में ५—५ बूँद डालने से आँखों की समस्त बीमारियों दूर होती हैं। नेत्र ज्योति बढ़ जाती है। आँखों की जलन खुजलाहट, आँसू, कीचढ़ आना आदि सभी रोगों में लाभकारी है।
नोट— ढोलायँत्र विधी के अभाव में इसकी ५०० ग्राम जड़ को धो—पीसकर दो किसलो जल में धीमी में इसका काढ़ा बनाएँ। १०० ग्राम शेष रहने पर काँच की शीशी में रखकर उक्तानुसार उपयोग में लें। अधिक दिन नहीं ठहराता ।
२. तेज दोपहरी में, लू लपट गर्मी में पलास के पत्ते माथे नेत्रों के ऊपर बाँध कर बाहर निकलने पर लू नहीं लगती।(वैंप के नीचे अथवा अँगोछे से बाँध लें।
३. ५० ग्राम पलास के फूलों को ५०० ग्राम ठण्डे जल में दो घण्टे भिगोकर रखने के पश्चात् उसके छने जल को बदन में लेप करने से भयंकर लू भी हो जाती है।
४.पलास के फल १० ग्राम, अजवान १० ग्राम ढाई ग्राम सेंधा नमक (स्वादानुसार) मिलाकर, छानपीसकर १० पुड़िया प्रतिदिन पानी के साथ लेने से पेट से कृमि नष्ट हो जाती है। आगे कृमि उत्पन्न नहीं होते । खाज खुजली आदि रोग दूर रहते हैं।
यह दो प्रकार का होता है— १.श्वेत पुष्प वाला २.लाल पुष्प काला प्राय: सभी जगह पाया जाता है। १. आँक की जड़— इसकी जड़ वात व्याधि नाशक है। इसकी जड़ को विष गर्भ बात तेल में डाला जाता है। तेल में उबाल कर कान में दो बूंद तेल डालने से कान दर्द में लाभ होता है। २. आँक के पत्ते — इसके पत्ते को हल्का गर्म करके अण्डकोष की सूजन बढ़ जाने पर सरसों के तेल के साथ लगाने से सूजन घट जाती है। फूलापन ठीक हो जाता है। ३. आँक के पत्ते का दूध— आँक का दूध बहुत उपयोगी है। किन्तु इसको सावधानी से निकालना चाहिए।इसका दूध आँख में नहीं लगाना चाहिए।
१. बवासीर के मस्से— आँक का दूध बवासीर के मस्सों पर १०—१२ बूँदे रात्रि में मस्सों में लगाने पर समस्त मस्से कट जाते हैं। एक बार ही लगने के बाद पुन: लगाने की आवश्यकता नहीं रहती है अचूक औषधि है। २. घटसर्प (हिफ्थीरिया)— जस रोगी का कफ बहुत चिकना हो जाए एवं गले में अटका रहें, ऐसे रोगी को घट सफ (हिपथीरिया) कहते हैं। आँक के दूध की ४—६ बूँदे दूध में मिलाकर रोगी को पिलाने को बमन होती है। जिससे सारा कफ बाहर निकल आता हैं। रोगी को तुरंत राहत मिल जाती है। इसकी मात्रा ज्यादा नही चाहिए।
३. आँक के फूल— आँक के फूलों को सुखाकर रख लें। इसकी दो तीन फूलों को पीस सीरा के साथ खाने से खाँसी, श्वाँस रोग में लाभ हो जाता है।
४. काँटा गहरा लग जाने पर— इसके दूध की ५—७ बूँदे काँटे लगे स्थान पर थोड़ा कुरेदकर भर दो। काँटा अपने ऊपर आ जाएगा। फिर बाहर निकाल लें।
नोट— मट्ठे का सेवन करने वाला व्यक्ति कभी व्यथित नहीं होता। मट्ठे के सेवन से नष्ट रोग पुन: उत्पन्न नहीं होते। जैसे देवताओं को अमृत सुखदायी है। उसी प्रकार पृथ्वी पर मनुष्यों को मट्ठा सुखदायी है। गाय मट्ठा बहुत अच्छा होता है। ==
१. ईसबगोल यह पाचक है। बच्चों के दस्त आने पर घोलकर देने से लाभ होता है।
२. ईसबगोल की भूसी : यह ताकतबर होती है। एक चम्मच भूसी को दूध में घोलकर लेने से अमाशय ठीक होता है। शौच साफ होता है।
१. मेंथी के ५ ग्राम दानों को एक गिलास पानी में रात्रि को भिगोकर सुबह पानी पीने से सुगर में आराम होता है।
२. मेंथी २० ग्राम लेकर १०० ग्राम सरसों के तेल में उबालकर छानकर शरीर में मालिश करने से बदन का दर्द ठीक हो जाता है।
३. मेथी की सब्जी (पत्तों की भी) बादी नाशक है। पाचन शक्ति वर्धक है।
४. मेथी में जीरा, नमक मिलाकर खाने से भोजन पचता है। रूचि बढ़ती है।
५. मेथी में जीरा, नमक मिलाकर खाने से भोजन पचता है। रुचि बढ़ती है।
तुलसी श्यामाा एवं रामा दो प्रकार की होती है।
१. श्यामा तुलसी के पत्ते श्यामले रंग के होते हैं, इसके २५—३० पत्तों का रस सर्प काटै पर लाभ करता है।
२. श्यामा तुलसी के बीजों का आधा चम्मच चूर्ण प्रतिदिन सीरे के साथ देने पर वैंसर रोग में लाभकारी है।
३. दोनों ही प्रकार की तुलसी बहुत उपयोगी है। इसको चाय में ८—१० पत्ते डालकर पीने से सर्दी, जुकाम ठीक होता है। बल्गम साफ हो जाता है।
१. आँवला का अचार कभी नुकसान नहीं करता एवं अनेक रोगों में लाभकारी है।यह खटाई की श्रेणी में नहीं माना जाता।
२. चमन ऋषि ने आँवला के रस को मुख्य लेकर उसमें अष्टवर्गादि औषधियों के मिश्रण से च्यवनप्रास अवलेह निर्माण किया था। जिससे ६० वर्ष के बुढ़ापे में ऋषि में २० वर्ष जैसी ताकत आ गई थी।
३. इसके हरा फल के रस का सेवन करने से हार्ट अटैक की बीमारी नहीं होती।
४. इसके अकेले चूर्ण के एक चम्मच प्रतिदिन खाने से सुगर/बी.पी. की शिकायत शान्त होती है। हार्ट के दौरा की सम्भावना नहीं रहती।
५. इसको लोहे के एक गिलास में २० ग्राम रात्रि में भिगोकर सुबह शिर में आधा घण्टा तक लगाए रखें।इससे सिर के बाल सपेद नहीं पड़ते। सिर दर्द दूर रहता है।
६. आँवले की चटनी में जीरा, मेथी, धनिया, नमक (मिर्च नहीं) खाने से अजीर्ण दूर होता है। भोजन शीघ्र पचता है।
७. आँवला के दो चम्मच जूस को लगातार पीते रहने से हकलाने का रोग दूर होता है। गला खुल जाता है।आवाज साफ होती है। खाद्य पदार्थों में पाये जाने वाले विटामिनों की मात्रा
नोट— यह बहुत कड़वी और दस्तावर होती है। अत: सावधानी से शीघ्र निगल लेना चाहिए। और एक या दो खुराक से अधिक नहीं लेना चाहिए। ३. चार नग छोटी इलायची को छिलका सहित ६०० ग्राम पानी में धीरे—धीरे उबालें। एक तिहाई शेष रहने पर छान लेवें। यह दवा रोगी को हल्का गर्म (गुनेगुनें) पिलावें। इससे उल्टी बन्द हो जाती है। ४.हिचकी आने पर दानों में अँगुलियाँ डाल कर बन्द रखें। हिचकी आना बन्द हो जायेगी। (इसमें एक विशेष नस पर दबाब पड़ने से लाभ होता है।)
(लू लगने और अति गर्मी से ऐसा होता है।)
१. एक डौड़ा (बड़ी इलायची) भूनकर उसके दाने २० ग्राम एवं सौंप २० ग्राम, आँवला का चूर्ण २० ग्राम तीनों पीसकर रखें। आधा—एक चम्मच दवा सीरा या पानी के साथ लेना चाहिए। जी मिचलाना बन्द होता है, भी बन्द होता है, तृषा शान्त होती है।
२. २० ग्राम सौंफ और १० ग्राम बड़ी इलायची लेकर ५ किलो पानी में उबालें। १/४ किलो शेष रहने पर छान लें एवं ठण्डा करके पानी पीएँ साधु को आहार में दें। पीसकर रखें। आधी चम्मच दवा सीरा या पानी के साथ लेना चाहिए। जी मिचलाना बन्द होता है, भी बन्द होता है, तृषा शान्त होती है। पीसकर रखें। आधी चम्मच दवा सीरा या पानी के साथ लेना चाहिए। जी मिचलाना बन्द होता है, भी बन्द होता है, तृषा शान्त होती है।
३. २० ग्राम सौंफ और १० ग्राम बड़ी इलायची लेकर ५ किलो पानी में उबालें। १/४ किलो शेष रहने पर छान लें एवं ठण्डा करके पानी पीएँ साधु को आहार में दें।
पेय— १. लवंग की जड़ चिड़चिड़ी की जड़, दोनों को २०—२० ग्राम लेकर एक गिलास जल में उबालें। आधा शेष रहने पर पिलाने से लाभ होगा।
२. बेरी की गुठली की मिगी (बिजी) एवं लवंग दोनों को बराबर पीसकर सीरा के साथ खिलाने पर बुखार की बार—बार लगने वाली प्यास शान्त होती है।
३. कपूर ५ ग्राम, केला की जड़ का रस १० ग्राम, पुदीना के पत्ते का रस १० ग्राम, सौंफ १० ग्राम। सभी को पीसकर ५०० ग्राम पानी में उबालें। चौथाई शेष रहने पर छानकर पिलावें। इससे उल्टी में भी आराम होता है।
उपचार— नाौसादर को पानी में घोलकर वदन में लगायें बाद में पौंछ ले। पसीना आना कम हो जाएगा
(वह स्थान जहाँ—जहाँ छाती में दोनो तरफ की पसलियाँ आपस में मिलती हैं।)
औषधि : १. थोड़ी हींग (हिंगड़ा) को मुनक्का के भीतर लपेटकर पानी से पीले। इससे इस दर्द में शीघ्र आराम हो जाता है। तीन घण्टे पश्चात् दूसरी खुराक भी लें सकते हैं। इससे वायु विकास—गैस ठीक होता है एवं हिचकी भी बन्द हो जाती है।
परहेज— मट्ठा, दही खट्टी चाँवल न लें।
पथ्य— छिलका वाली मूँग की दाल, गेहूँ की रोटी, दलिया। शिशु रोग —धनवन्तरि विशेषाज्र्क (रोगाज्र्क) १९६२ पत्रिका शिशु रोग परीक्षा हेतु :
१. चिकित्सक : बालक को घूरकर नहीं देंखे।
२. तुरन्त नग्न न करें इससे डर जाता है।
३.बड़े प्रेस प्यार से मित्र की तरह जाँच करना चाहिए। पूर्व (इतिवृत्त) चूँकि शिशु बोलता नहीं अत: माता से निम्न प्रश्न पूँछे—
१. आपके कितने और बच्चे हैं।
२. किसी की मृत्यु तो नहीं हुई—हुई तो किस कारण से हुई?
३. यह रोग परिवार में कैसे आया?
४. शिशु के माता/पिता को उपदेश उष्णवात रोग तो नहीं है।
५. कभी कोई गर्भपात तो नहीं हुआ या कराया है?
६. गर्भावस्था में माता का स्वास्थ्य कैसा था। विदेश के प्रसद्धि डा. बालरोग विशेषज्ञ (हघिंसन वार्ट)
७. क्या बालक पूरे माह में उत्पन्न हुआ या कम माह में?
८. प्रसन में कोई परेशानी अथवा ऑपरेशन से हुआ।
९. क्या बालक का रोना उत्साह जनक था या श्वांस में परेशानी थी?
१०. दूध ठीक तरह चूसता था या नहीं?
११.कोई मृत बालक उत्पन्न तो नहीं हुआ? बालक सिर का माप आयु विस्तार इन्च में जन्म के समय १३’’ ६ माह में १६’’ १ वर्ष में १८’’ ३ वर्ष में १९’’ ७ वर्ष में २०’’ १२ वर्ष में २१’’ बालकों में विकास एवं भार (वेट) प्रसव के बाद से आयु भार पौन्ड में ऊँचाई इन्चों में प्रसव पश्चात् ७ २०’’ ९ वर्ष में २१ २९’’ २ वर्ष में २८ ३३’’ ३ वर्ष में ३३ ३७’’ ४ वर्ष में ३६ ४०’‘ ५ वर्ष में ४९ ४२’’ ६ वर्ष ४६ ४४’’ ७ वर्ष में ४९ ४६’’ ८.वर्ष में ५५ ४८’’ ९.वर्ष में ६९ ५०’’ १०.वर्ष में ६७ ५२’’११.वर्ष में ७३ ५४ १२.वर्ष में ७९ ५६ नोट— स्वभाविक माप है इससे कम होने पर बालक रोग की स्थिति समझी जाती है। विकास क्रम यह है। वास्तविक नाड़ी तालिका १.जन्म के समय नाड़ी सदन १३० २.द्वितीय वर्ष में ११० ३.पाँच वर्ष में १०० ४.आठ वर्ष में ९० ५.बारह वर्ष में ८० तापमान बालकों का तापमान थर्मामीटर से गुदा, कक्षा, वक्षण लेते हैं बड़े बालकों का मुख में से लेना चाहिए। यदि बालक अधिक रोता है तो क्या करें— नम्न जाँच करें— कहीं बालक जो वस्त्र चड्डी, स्वेटर, मोजे आदि पहिने है वह इतने ज्यादा चुस्त तो नहीं है जिससे बालक को तकलीफ होती है। इससे रोता रहता है तो दवा क्या काम करेगी अत: बालकों को लूज (ढ़ीले) वस्त्रादि पहिनाएँ। ==
१. इस यंत्र को वृह्मवर्ण भोज पत्र पर लिखना (अष्ट गन्ध से) बालक के गले में बाँधने से लाभ होता है।
२. उपरोक्त विधि ही है।
१. नीम की पत्ती, दुर्वा कुटकी को जल में पीसकर उबटन लगाएँ। हल्का गर्म कर स्नान भी कराएँ।
२. बाँस का वक्कल, लहसुन, अगर, नीम के पत्ते गौघृत/ शिव पर चढ़े हुए फूल, मनुष्य के शिर के बाल, राई, अगर, लाख गौघृत से इनको मिलाकर उपले की अग्नि से धूप देवें।
३. अपस्मार—बैहोसी में निम्न उपचार करें— (१) घुड़बच का चूर्ण कपडछन कर ३ से ६ रत्ती शीरा के साथ के साथ देने के लाभ होता है। (२) भूना शुद्ध सुहागा २—२ रत्ती ३—३ घण्टे में सीरा से देने पर लाभ होता है। (३) धूप—आँक के फल, राई, खस मनुष्य के बाल और बिल्ली के बाल और नीम के पत्ते अन्दाज से मिला गाय घीं में मिलाकर धूनी देने से बालग्रह दूर होते हैं।
नोट—आगे शिव के पुत्र कार्तिकेय का पौराणिक उदाहरण इसलिए दिया गया है कि जैनागम के सिद्धान्तों के अनुसार सभी धर्मों में धर्म सिद्धान्तों को मान्यता एवं धर्म आचरण न करने से सभी रोग संकट आते हैं। अत: धर्माचरण करना माता/पिता/गुरूओं की सेवा करने से सर्व संकटों से मुक्त होता है पूर्व पाप कर्म झड़ जाते है।
(वैद्य नवनीत दास वैष्णव) प्राचीन समय में शिव ने अपने पुत्र कार्तिकेय की रक्षा के लिए बालग्रहों को उत्पन्न किया था। इनकी समस्या सम्बन्ध में शास्त्रगारों मे मत भेद है। भाव प्रकाश में बागभट्ट ने १२ नाम— स्कंद, स्कंदपरमार, शकुनी, रेवती, पूतना (अन्धपूतना शीत पूतना) मुख मण्डिका, नैम्मेय आदि। लक्षण— इससे (१) बच्चा डर जाता है। (२) रोता ही रहता है (३) मुख से झाग आ जाता है। (४) ऊपर की ओर दृष्टि रखता है। (५) दाँतों से ओठों को चबाता है। (६) दूध नहीं पीता है। (७) आवाज बैठ जाती है। (८) नखों से चारों तरफ जमीन कुरेदता है।
बालग्रहों की उत्पत्ति के बाद ही उनकी भोजन व्यवस्था की समस्या सामने आई तो इन ग्रहों से शिव ने कहा कि—
१. जिस घर में भगवान की पूजन अर्चन वंदन न होता हो, भगवान का कीर्तन न होता हो।
२. देवता, माता, पिता, गुरू, अतिथि का अनादर होता है।
३. जिस घर में प्राणियों की हिंसा होती हो।
४. जहाँ प्राणियों को मनसा, वाचा, कर्मणा, से दु:ख दिया जाता हो।
५. घर में बूड़े माता—पिता, सास, ससुर, से बोलचाल भोजन में भेदभाव किया जाता हो, दुव्र्यवहार किया जाता हो।
६. जिस घर में अपवित्रता रहती हो। उसके घर के बच्चों का भक्षण किया करो, यही तुम्हारी भोजन व्यवस्था है।
विज्ञान बताता है कि प्राणियों में एक विद्यतशक्ति विद्यमान है जो अपना प्रभाव दूसरों पर डालकर आश्चर्य जनक चमत्कार दिखाने में समर्थ है यह विद्युत एक प्रकार का आत्म तेज है। -‘‘जिसका आधार स्थूल शरीर और मन है।’’ यह विद्युत प्रभाव जब नेत्रों के माध्यम से प्रयुक्त होता है तो अनेक आश्चर्यजनक प्रभाव दृष्टिगत होते हैं। (१) भेड़ियों की दृष्टि से भेड़ का निचेष्ट हो जाना हैं— (२) भाग सकने में असमर्थ हो जाना। (३) बिल्ली की दृष्टि से कबूतर का भागना उड़ने की शक्ति भूल जाना। बिल्ली बाल भी आया है देख उड़ने की शक्ति भूल जाता है। (४) अजगर की दृष्टि से शिकार का उसके समीप आ जाना। (५) ‘‘यही मनोविद्युत जब बच्चों पर दूषित मनोभावों के साथ पड़ जाती है एवं अपना प्रभाव दिखाती है तो कहा जाता है है कि नजर लग गई। (६) नजर का लग जाना दूषित मनोविचारों के साथ मानसिक विद्युत का अहितकर प्रभाव पड़ना ही है।
मनुष्य जब एकाग्र होकर अधिक ध्यानपूर्वक किसी की ओर दृष्टिपात करता है तो उसको विद्युत का एक भी कारण होकर उसमें प्रभावोत्पादक शक्ति का प्रर्दुभाव हो जाता है उस समय द्रष्टा के शुभा—शुभ भाव दृश्य वस्तु पर गम्भीरता के साथ पड़कर अपना प्रभाव दिखाते हैं। रीठा के छिलकों को अग्नि पर (जलाकर) धूनी देने से नजर एवं भूत बाधा दूर होगी। हँसते खेलते बच्चे पर अब कोई व्यक्ति अधिक मुग्ध होकर या लालायित होकर हसरत भरी निगाह से देखता है तो उस बच्चे पर दूषित प्रभाव पड़ता है बच्चे बीमार पड़ जाते हैं।
१. नजर लगे बच्चे का तापमान घट जाता है।
२. एक विशेष प्रकार की सुस्ती घेर लेती है।
३. बच्चे आँख बन्द कर निद्रा सी हालत मेें पड़े रहते हैं।
४. दुग्ध पान से अरूचि हो वमन होने लगती है।
१. महात्माओं की जो बच्चों की चाह नहीं रखते उनकी दृष्टि का हितकर प्रभाव बच्चों के लिए होता है।
२. नजर उनकी लगती है जो बच्चों के लिए तरसते हैं उनकी दृष्टि (कुदृष्टि मय) होती है। उससे नजर लगती है।
नाोट— यह अन्ध विश्वास नहीं इसमें वैज्ञानिक रहस्य भरा है।
१. बच्चे के मस्तक पर काजल की बिन्दी लगाना।
२. गले में बाँह में काला धागा बाँधना (काला कड़ा)
३. यह दृष्टि दोष से बचने का सरल उपाय है।
१. काली वस्तु में विद्युत को ग्रहण करने की शक्ति सर्व विदित है।
२. आकाशीय विद्युत भी काले आदमी, काले साँप, काले जानवर, काला लोहा (जंग) पर अपना प्रहार करती है।
३. महलों, ऊँची इमारतों, मन्दिर में ऊपर लगी हुई विशेष प्रकार की छड़ (तड़ित चालक) आकाशीय विद्युत से रक्षा करती है।
१. गाय पुच्छ से बच्चे के शरीर का मार्जन करना एवं काली बकरी का दूर पिलाना।
(महामंत्र—णमोकार ९ बार पढ़ते हुए गाय की पूँछ से बालक झाड़ते जाओ।)
मंत्र— णमों अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आईरियाणं, णमों उत्तझायाणं, णमो लोऐ सव्व साहूणं।। (गाय खड़ी रहे इससे कुछ खाने को डाल दें)
२. रीठा को काले धागे में बाँध गले में बाँधने से नजर नहीं लगती।