एक मनुष्य के ३२ दाँत होते हैं इनके दो विभाग हैं—
१. सकृज्जात— यह केवल एक निकलते हैं तथा अपने स्वरूप में वृद्धि पाते है। इनकी संख्या ८ काश्यप संहिता मेें बताई गई है इसमें ४ बुद्धिदन्तों का समावेश कर लेना चाहिए।
२. द्विज— शेष २० दाँतों को द्विज कहा जाता है क्योंकि ये पुन: (दुबारा) उत्पन्न होते हैं। प्रथम बार बाल्यावस्था में जिन्हें दूध के दाँत कहते हैं। ये दाँत बालक जन्म लेने के कई मास पूर्व गर्भावस्था में ही दन्तमांस में बीज रूप में उपस्थित होते हैं शनैं—शनैं उनमें अस्थि निर्माण का कार्य आरम्भ होता है और वृद्धि होती है इस प्रकार दाँतो का पूर्ण स्वरूप लेकर मसूड़ों का भेदन करके वे बाहर आ जाते हैं। इस प्रक्रिया दन्तोद्भेद भी कहा जाता है। दाँतों की निकालने की आयु पूर्णत: निश्चित नहीं है, पर कई बालकों के २ से ६ एवं कई के वर्ष भर के बाद निकलते हैं। इनका क्रम इस प्रकार से है— ७ वें माह में १ वर्ष में १ से १ १/२ वर्ष के बीच १ १/२ से २ वर्ष के बीच २ वर्ष से २ १/२ के बीच दाँत निकलते समय चूना प्रस्तफूरक जीव तिक्ति डी.सी. एवं भी आवश्यक होती है।
१. बालकोें के गले में ‘सम्हालू’ की जड़ को रविवार के दिन बाँध देने से दाँत जल्दी निकल जाते है।
२. बालकों के गले में काले धागे में शीप (छिपनी) के छिद्र कर बाँधने से दाँत आसानी से निकलते हैं।
३. शुद्ध सुहागे की खील को सीरा में मिलाकर मूसड़ों पर मलने से दाँत आसानी से निकलते हैं।
४. बिजली का लाकेट गले में लटकाने से लाभ होता है।
५. काली तुलसी (श्यामा तुलसी ) के पत्तों का चूर्ण २—३ रत्ती अनार के रस में देने से दाँत बिना कष्ट के जल्दी निकल जाते हैं।
६. सम्हालू के बीज ताबीज में भरकर काले धागे में गले मेें बाँधने से दाँत आसानी से निकल जाते हैं।
७. आँवले के महीन चूर्ण को सीरा में मिलाकर मसूड़ों पर घिसने से दाँत आसानी से निकल आते हैं।
८. मूलैठी की एक रस सुन्दर गाँठ को छीलकर बालक के गले में ऐसा लटकाएँ जिससे बालक चूँसता रहे दाँत आसानी से निकल आते हैं।
९. धाय के फूल, पीपल, आमले के चूर्ण का स्वरस शिशु के मसूड़ों पर घिसने पर दाँत आराम से निकलते हैं। बच्चों का हाजमा—अफरा (अजीर्ण) वमन
१. चूने के स्वच्छ पानी को १/२ या १ चम्मच दूध पिलाने के पूर्व देने से बालकों की उल्टी, दस्त बन्द हो जाते है। वैल्सीयम कमी की पूर्ति होती है। बालक स्वथ्य रहता है।
२. अफारा (पेट) फूलने पर पानी में थोड़ा सा पापरी सोड़ा/ अथवा नीबू का रस डालकर पिलाने या तुलसी का रस डालकर पिलाने या तुलसी का रस देने से शीघ्र लाभ होता है।
३. पेट पर थोड़ी धीमी—धीमी थपकी लगाने से छोटी आँत की क्षमता बढ़ती है। वायु पास हो जाती है।
४. यह रोग विटामिन सी और विटामिन बी की कमी से होता है। अत: खट्ठे फलों का जूस नियमित देना चाहिए।
१. हरी गिलोय (गुरुचि) के रस में बाल का कुर्ता रंगकर सुखा लें यही पहनाए रखें शीघ्र लाभ होगा।
२. खूबकला— ३० गर्म बकरी के दूध औंटाकर छाया में सुखाये दूध फैक दें इस प्रकार ३ बार दूध में औटाए दूध फैकते जाएँ सुखाकर चूर्ण बना लें फिर २—४ ग्राम की खुराक गाय के दूध से पिलाएँ।
३. भैंस का ताजा गोबर प्रात: बच्चे की कमर और जाँघों पर ५ मिनट तक अच्छी तरह मलें। फिर हल्के गर्म -जल से धोए, धोने पर कमर पर काले काले रंग के छोटे—छोटे काँटे दिखाई देंगे इन काँटों को जल्दी—जल्दी चुन लें। कुछ दिन में काँटे निकलना बन्द हो जाएँगे बच्चा स्वस्थ हो जाएगा।
१. तेल सामान— मकोय के पत्ते / बाँस / करेला/ नागरबेल (पान) भाँगरा, छोटी दूधी का पंचाङ्ग का २०—२५ तोला रस एवं हल्दी, अगर, कूठ, सुगन्ध वाला, असगन्ध जटामासी, लालचन्दन, लौंग, जायफल इनका सम्भाग चूर्ण १० तोले का कल्क कर ५०० ग्राम तिल्ली तेल अथवा नारियल तेल में धीमी अग्नि से पकाकर तेल बनाकर छान ले। इसकी मालिश से हर प्रकार के बाल रोगों में लाभ होता है।
२. बच्चों को सूर्य किरण धूप में थोड़ी समय अवश्य बैठाएँ।
३. बालक की नाभि पक जावे तो दीपक का तेल लगाएँ। अथवा जली लौग, नीम के फूल पीसकर लगाने से ठीक हो जाती है।
१.फक्क (सूखा रोगोफ्वार) पृ.क्र. १९३ भैषज्य रत्नावली में लिखा है—लाल कमल के फूल खस, केशर,गम्भीरा— फल, नीलकमल, मजीठ, इलायची खरेटी, जटामासी, मोथा, अनन्तमूल, त्रिफला वच कचूर, परबल का पत्ता, नील कमल पँचाड़, पित्त पापड़ा, अर्जुन की छाल, मुलेठी महुये के फूल, मुनक्का १० ग्राम चाय के फूल, ६४ तोला इन सबका चूर्ण बना लें।(सभी सम भाग) फिर चिकनी मिट्टी के घड़े में २५ किलो जल में उसी में ५ सेर चीनी डालकर मुँह बन्द कर १ माह रखा रहने दें। पुन: १—१ चम्मच दवा दिन में तीन बार प्रयोग में लें। बालक का सूखा रोग दूर हो जाता है।
२. लाल तेल (सूखाहारी लाल तेल) की मालिश करें। ३. शरीर में खून की कमी पूरी हेतु मुक्तिशुक्ति जहरमोहरा खताई का प्रयोग करना चाहिए।
विशेष : १. बालकों का भूखा रहना महान खतरनाक है। बालकों के भूख की परवाह न कर माता का गृह काम में लगे रहना उन्हें दुबले, मरियल, और कमजोर करने के सिवाय कुछ नहीं।
२. बालक जागने पर रोने लग जाए एवं मुँह में मुट्ठी देना, यह अपनी भूख का ऐलान करता है। अत: माता को दूध पिलाना चाहिए।
३. माता को क्रोध में बालक को दूध नहीं पिलाना चाहिए।
४. दूध पिलाने के पूर्व माता एक गिलास पानी पीकर दूध पिलाती है तो श्रेष्ठ होता है ऐसा करने से माता की थकान आदि दूर होकर दूध शुद्ध पहुँचता है।
५. माँ के दूध के समान गुणकारी अन्य दूध नहीं अत: बच्चे को माँ का दूध ही पिलायें।
६. माँ का दूध कम निकलता है तो पका पपीता एवं दलिया दूध के साथ खिलाने से माता के दूध में वृद्धि होती है।
७. यदि किसी की माँ बहुत बीमार हो जाती है तो बीमारी में बालक को दूध ही पिलायें। ऐसी स्थिति में— (१) बकरी का दूध सर्वोत्तम है। (२) गाय का दूध मध्यम है। (३) भैंसे का दूध सुपाध्य नहीं होता एवं बालक को आलसी बनायेगा और उदर विकार हो सकते हैं। इसकी मलाई निकाल ले आधा जल मिलायें। (४) बच्चों को पेट भर दूध पिलाना जरूरी हैं। (५) किसी भी रोगी पशु का दूध ना पिलाएँ। (६) जिस पशु का बछड़ा मर गया है और इन्जेक्शन लगाकर दूध निकाला जाता है वह दूध बहुत हानिका—कारक है बच्चों को क्या किसी को नही लेना चाहिये। (७) दूध पाउडर सत्व रहित होता है। (८) बच्चों को भोजन (अन्य आहार) की मात्रा कम देकर फल, नीबू रस, नारंगी, सन्तरा, मौसम्मी, अंगूर,नाशपाती , सेव आदि का जूस उम्र अनुसार देना अधिक लाभकारी है। (९) शक्कर की जगह भीगी किसमिस पीसकर दूध को मीठा करना अधिक लाभकारी है। (१०) हिचकी— बच्चो को हिचकी आती हो तो उसे १—१ चम्मच गरम जल पिलाने से तत्काल आराम होता है। (११) प्राण वायु और जल के अभाव में यह रोग होता है। (१२) २—३ माह के बाद बालक को पपीता, सेव, पालक का थोड़ा—थोड़ा जूस देना लाभकारी है इससे पाचन सही होता है। (१३) ५०० ग्राम चूने को ५ किलो पानी में बुझा दें उसे लगातार ५—६ बार हिलाते रहे १ बार दिन में हिलाने के बाद ७वें दिन सब चूना नीचे जम जाता है तथा शुद्ध छना पानी रहता है इसके ऊपर की पपड़ी धीरे से अलग कर लें। पश्चात् शुद्ध पानी (घड़े के बिना हिलाएँ) एक शीशी में भर लें। इस पानी को दिन में ३—४ बार बालक को १—१ चम्मच पिलाने से बालक का अजीर्ण , हरे पीले दस्त, अफरा, आदि ठीक हो जाता है, यह केल्सीयम की पूर्ति कर बालक को स्वस्थ बनाता है। गर्मी में पानी डालते रहें। (१४) ओस्टो वैल्सियम टेबलेट भी बहुत गुणकारी है। यह केल्सीयम फास्फोरस एवं विटामिन डी की पूर्ति करती है। बालक मिट्टी खाता है तो वह भी खाना छोड़ देता है।
१. अरण्डी के तेल में बड़ी हरड़ की छाल भून लें फिर चूर्ण बना लेें। ३ ग्राम चूर्ण पानी से लेते रहें। १ माह का परहेज रखें। १० ग्राम इलायची दाने, ५ ग्राम वंशलोचन का चूर्ण बना २—२ ग्राम चूर्ण दूध से लें।
१. मालकागनी के बीज खाकर ऊपर से गाय का दूध कम से कम १—१ बीज बढ़ाते २१ दिन तक फिर १—१ घटाते २१ दिन पीने से बुद्धि बढ़ जाती है।
२. शंखहूली बूटी ७ नग, कालीमिर्च ७ नग की ठन्डाई बना (दूध मिला सकते हैं) पीने से बुद्धि बढ़ती है।
३. पीपल के कोमल पत्ते छाया में सुखाकर चूर्ण कर बराबर मिलाकर ३—३ ग्राम दवा सुबह शाम दूध के लेना।
१. सूर्य उदय होते हुए सूर्य के सामने खड़े होकर १००—१५० ग्राम पानी ६० ग्राम शक्कर मिला धीरे—धीरे पीएँ तुरन्त आराम होगा।
१. सौंठ, धाय के फूल, पीपल सब १०—१० ग्राम का चूर्ण बना सीरा से देने से आराम होता है।
२. थोड़ा सा पिपरमैंट पानी में घोलकर घोलकर पिलाने से हिचकी में तुरन्त आराम होता है।
३. पीपल आँवला, सूखा, सौंठ बूरा (मिश्री) समभाग पूर्ण १/२ चम्मच छोटी उम्र को कम दें। हिचकी ठीक होती है।
४. पीपल के काढ़े में थोड़ी हींग मिलाकर पीने से हिचकी ठीक होती है।
५. अदरक के छोटे—छोटे पीस करके चूसने से हिचकियाँ आनी बन्द हो जाती हैं।
६. ४ छोटी इलायची ५०० ग्राम पानी में धीमी अग्नि में उबालें १०० ग्राम शेष रहने पर ५०—५० ग्राम २ बार पिलाने से आराम होता है।
७. सन्निपात रोग की हिचकी को दशमूल के काढ़े में जवारवार सेंधा नमक मिलाकर देना चाहिए।
८. मयूर पंख भस्म ३—३ रत्ती सीरा से देना चाहिए।
९. बिना धुयें के अंगारे पर हल्दी और उड़द का चूर्ण डालकर धुआँ पीने से अति भयंकर हिचकी बन्द होती है।
१०. हींग की धूनी देने से हिचकी बन्द होती है।
१. कालीमिर्च, कुलंजन, वावची, मीठी वच, कूट/ अश्वगन्ध, पीपल, मुलहटी समभाग चूर्ण बनाकर भर चूर्ण खिलाएँ। काढ़ा भी दे सकते हैं।
२. कच्चा सुहागा १ ग्राम मुँह में रखकर चूसने से स्वर खोलने की अचूक दवाई है।
३. हरी धनिया और अमल तास का दल पानी में पीसकर घोलकर ५०० ग्राम पानी में उबालकर गरम २ कुल्ला करें १ माह तक तुरन्त बाद ठण्डा पानी नहीं पीना चाहिये।
१. स्वप्न दोष— दो चने बराबर कपूर मिलाकर खाने से आराम होगा।
२. बड़ा आँवला चबाकर खाएँ या जूस पीएँ।
३. सूर्योदय के पूर्व बड़ के पत्तों को तोड़कर दूध एक बतासे में भरते जाएँ और २०—२५ बूँद भर लेें फिर पीवें तो पहले दिन ही लाभ होगा।
१. काक जंघा बूटी का रस १० ग्राम, काली मिर्च, ६ ग्राम/मिर्च को पीसकर रस में मिला दें। दिन में २ बार पिलाएँ, हड्डी जुड़ जाती है। यह सर्प काटे की दवा हैं।
२. बबूल (कीकर) के पंचाङ्ग का चूर्ण ६ ग्राम की मात्रा लेकर चासनी सीरा लेने से बकरी के दूध में मिलाकर पीने से हड्डी जुड़ जाती है।
३. कीकर के बीजों का चूर्ण ६ ग्राम चासनी में खाने से हड्डी जुड़ जाती है।
फिटकरी को पीसकर पानी में घोलकर हाथ की हथैली एवं पाँव के तलवे पर लगाएँ।
विशेष— जिस बालक का मांस सूख गया है। शरीर की खाल सिकुड गई हो हड्डियाँ ढाँचा रह गया हो ज्वर/ अतिसार/ तृषा अधिक सिर इधर उधर पटकता हो तो ऐसी स्थिति में चिकित्सा—
१. खूबकला स्वरस १ तोला, गाँजवाँ स्वरस, घीकुमारी (खार पाठा स्वरस) २—२ तोला लेकर उसमें प्रवालभस्म मुक्ताशुक्ति भस्म, गेरू, गिलोय सत्व शंख भस्म इनको मिश्रित कर पत्थर खरल में घोटें। पश्चात् २ से ४ रत्ती दवा दिन में २—३ बार सीरा के साथ दें। (इसे काँच के बर्तन में रखें ) अतिलाभदायक है।
२. हरड़ जायफल, सैंधा नमक, लौंग, सौंठ, कालीमिर्च, पीपल, बेलगिरी, नागर मौथा, सौचर नमक, शुद्ध सुहागा, अतीस, प्रत्येक समभाग १—१ तोला या २—२ तोला लेकर कूट पीसकर कपड़छन कर रखें फिर खरल में जल डालकर मात्रानुसार दवा घोंटे जब चिकनी हो जाए तो २—२ रत्ती की गोलियाँ बनाकर रखें बालक की उम्र एवं बलाबल देखकर १ से २ गोली गाय के दूध/ माँ के दूध/या जल में घोलकर दें।
दंती प्रयोग— बीज दंती अशोधित लेकर पानी में साफ पत्थर पर धिसकर चाकू से पौंछकर (हाथ न लगाएँ) माथे पर आड़ा तिलक कू से धीरे से सावधानी से कर दें। २ घड़ी तक बच्चा मेटने न पाए। भाल में दानों की लकड़ी होने से डरना नहीं। ३—४ दिन में सब रोग ठीक हो जाएँगे। यह रविवार या मंगल को करें। यधानुवाद में— शशु रोगांक—१९६२ पृष्ठ २२६
‘‘बीज दंती अशोधित को घिस लीजिए।’’ पौद्य चाकू से आड़ा तिलक कीजिए।।
मैट न पए बच्चा इसे दो घड़ी। भाल में होय दानो की पैदा लड़ी।।
तीन ही चार दिन में सभी रोग मिटे। कष्ट सब शेष के शीघ्र शिशु के कटें।।
एक ही बार इसकी क्रिया की जाए। वार रविवार मंगल को चुन लीजिए।।
बबूल की कोंपल पत्ती छाया में सुखाकर चूर्ण बना लीजिए विधि— गर्भ रहने के बाद प्रतिमाह १५ दिन २—२ ग्राम दवा चूर्ण जल से सेवन करें।
पीपल के जटा के महीन अंकुर कच्चे दूध में पीसकर रजोदर्शन के ४ दिन बाद से १५ दिन तक सेवन कराएँ। इस प्रकार २—३ माह सेवन कराएँ जिस स्त्री के बिना विकृति के गर्भ धारण न होता है, उसे अवश्य धारण कराएँ।
मुलहटी पिसाचूर्ण ३ तोला, नागकेशर चूर्ण ४ तोला, राल सपेद ३ तोला, मिसरी १० तोला सबको पीस छानकर ४—४ ग्राम दवा घी गाय का मिलाकर सेवन कराएँ।
गिलोय, अपामार्ग पंचाग, वायविङ्गिग, शंखाहूली पंचाग, वच, छोटी हरड़ कूटमीठा, शतावर समभाग चूर्ण (चूरन) बनाकर रखें। प्रतिदिन तीन ग्राम चूर्ण घी अथवा चासनी से मिलाकर चाँटे। स्मरण शक्ति के लिए अद्भुत योग है।
करीर (कोंपले ले) और एरण्ड के पत्ते को पीस गर्म गुदा में बाँधने से भगन्धर ठीक हो जाता है।
लाहौरी (सेंधानमक) पीसकर कपड़छन कर लें जिसे बिच्छू ने काटा है दंश स्थान पर नमक भर दो यही नमक पानी में घोलकर उसके दूसरे भाग के कान, नाक और आँख में २—३ बूँद टपका दो। रोता आया रोगी हँसता जाएगा। गुण धर्म—
१. काजू— (केश्यूनट) रक्त शोधक, मूत्रल, अग्निमत्द्य रक्त विकार, वातविकार में लाभकारी स्मृति हृदय एवं नाड़ी दौवल्र्य नाशक विटामिन बी की प्रचुर मात्रा होने से पौष्टिक एवं प्रोटीन प्रधान खाद्य द्रव्यों में सर्वश्रेष्ठ खाद्य द्रव्य है।
२. कपूर— लघु तीक्षण, रस में तिक्त, कफ वात शामक—तृषा शामक, दीपन, ज्वरघन, कासहर, स्वेद जनक नेत्रों का हितकर। कपूर पसीना आदि के मल की दुर्गन्ध को नष्ट करता है। शव को सड़ने से बचाता है। शव के ऊपर कपूर डालते हैं। पुराना कपूर शोध नाशक है।
३. जायफल : १. तीक्ष्ण, कटु तिक्त कषाय, विपाक में कटु उष्म वीर्य, उत्तेजक शोथहर बाल कफ नाशक कफ निस्सारक, श्वासहर, शुक्रशोधन वाजीकर।
२. मूर्छा, प्रतिश्याय एवं सिर शूर में इसकी शिरो विचेरक हेतु इसका नस्य देते हैं।
३. इसके चूर्ण को भुरकने से व्रण का शीध्र शोधन एवं भरण होता है। ४. हैजा सन्निपात की अवस्था में इसके चूर्ण की मालिश करने से लाभ होता है। इसमें सौंठ चूर्ण भी मिला देते हैं।
४. काला जीरा : १. कृमि नाशक— ३ से ६ रत्ती खुराक की चूर्ण बना पानी से लेने से कृमि नष्ट होते हैं जीर्ण ज्वर भी ठीक होता है।
२. कंठमाला— कर्ण मलशोध कर इसके साथ धूतरे के बीज तथा अफीम घोंटकर जल में गरम कर लेप करने से (गाढ़ा लेप करने) से कंठ माला की पीड़ा दूर होती तथा बैठ जाती है
५. कुचला : १. शुद्ध कुचला— बाजीकरण, कटुपौष्टिक, शोथहर कास श्वास पक्षाघात (लकवा) गठिया, कृमि, उदर विकार, नाड़ी शूल में लाभदायक है। पाचन नालिका पर इसकी उत्तम क्रिया होती है। धुनर्वात (टिटनेस) में लाभकारी है। उष्मा होता है। अधिक दिन नहीं लेना चाहिए।
२. वत्सनाम— (शुद्ध सिग्गिया) का महीन चूर्ण सम भाग मिलाकर अदरक के रस में ४ दिन तक सरल करों। २—२ ग्रेन की गोली बना लें। सूखी गोली १ से २ गरम धृत के साथ प्रात: सायं सेवन करने से लकवा शीघ्र ठीक हो जाता है।
३. नहरूआ— पर अशुद्ध कुचला को जल के साथ पत्थर पर घिसकर खूब गाढ़ा लेप कर तथा ऊपर से थोड़ा सुहागा और सिन्दूर कर रेड्डी के पत्र ऊपर से बाँध दें। इस प्रकार २—३ बार प्रयोग से नहरूआ रोग ठीक हो जाता है यदि नारू टूट भी गया हो तो इससे लाभ होता है।
४. कुत्ते काटने पर— शुद्ध कुचला + कालीमिर्च सम मात्रा पीस पानी में गोली ३—३ रत्ती की बनाएँ।१—१ गोली सुबह शाम देने से कुत्ते का विष असर नहीं करता। पागल कुत्ते का विष दूर होता है।
गुण— कफ वात शामक, पसीना को रोकने वाली, अश्मरी भेदक क्षुधावर्धक। पथरी— २ तोला बीज दलकर रात्रि में भिगोकर प्रात:काल उबालकर इसके काढ़े में भुनी हींग १ रत्ती तथा सौंठ का चूर्ण काला नमक (थोड़ा सा मिलाकर ४—४ घण्टे बाद देने से शीघ्र लाभ होता है) काढ़ा ५०० ग्राम पानी का १/४ चौथाई रखें। पथरी गलकर निकल जाती है। जो हिंगडा नहीं लेते हो सो नहीं लें। ७. ककोड़ा (पड़ोरा) कटुफला— कटूरस, अग्नि दीपक मल को हरने वाला, तथा कुष्ट, जी मिचलाना अरूचि श्वास काँस ज्वर, प्रमेह, हृदय की पीड़ा नाशक है। इसकी साग बहुत स्वादिष्ट होती है।
यद्यपि शीतल चीनी में अन्तर है। वह ठन्डी होती है। शीतल चीनी में मुँह में चबाने पर ठन्डक होती है। कंकोल या कवावचीनी में दीपन पाचन एवं क्षुधावर्धक आदि गुण है। कफ, वात नाशक, मुख दुर्गन्ध नाशक, श्लेम निस्सारक है।
१. सुजाक— सुजाक जन्य वेदना निवारणार्थ ’’प्रथम सूत्र विरेचन हेतु’’ कवावचीनी का मोटा चूर्ण कर ५ ग्राम चूर्ण को १ पाव पनी में धीमी अग्नि पर उबालें १/२ ग्राम शेष रहने पर छानकर रखें ठन्डा हो जाने पर उसमें ५ बूँदे चन्दन का तेल मिलाकर पिलाए इस प्रकार दिन में २ बार पिलाने पर मूत्र साफ होकर वेदना दूर हो जाती है।
२. स्वप्न दोष— (N.इ.) आदि वीर्य सम्बन्धी विकारों में तथा पुराने प्रमेह पर कवावचीनी के चूर्ण के साथ इलायची छोटी, और बंशलोचन का चूर्ण समभाग लेकर इसके चूर्ण का आधा भाग छोटी पीपल का चूर्ण और सब चूर्ण का सम भाग मिश्री (बूरा) मिलाकर एकत्र कर खरल कर कपड़े से छानकर प्रात: सायं दूध (ठंडे दूध) के साथ लेने से स्वप्न दोष दूर होकर वीर्य की उष्णता निवृत्ता हो वह गाढ़ा हो जाता है।
३. प्रतिशयाय (जुकाम)— कवाव चीनी के चूर्ण को सूघंने (नस्य) देने से कीटाणु नष्ट होते हैं। प्रदाह की शान्ति होकर लाभ होता है। ४. कफ निस्सारण हेतु— ३ ग्राम कवावचीनी का चूर्ण २० ग्राम गोंद, १ तोला दालचीनी ५० ग्राम पानी में उबालें १/४ भाग शेष रहने पर पीने से कफ आसानी से निकल जाता है।
५. काँस—श्वास हेतु— मुलैठी, कवावचीनी , हरड़ पीपल, कुलंजन (कुरूदान) समभाग जौं कूटकर १५ गुना जल मिला काड़ा बनावें। १/४ भाग शेष रहने पर ३—४ बार पिलाएँ। लाभ होगा।
मधुर और शीत वीर्य है। तृषा निग्रह, भ्रान्ति दाह नाशक, ज्वरहन, मूत्रण, किंचित विषध्न गुण भी पाये जाते हैं। १. हृदय रोग— हृदय रोग तथा अन्य तीव्र व्याधियों से हृदय पर आघात न पहँुचे इसका प्रयोग उत्तम है। तीव्र ज्वर के इसके प्रयोग से ज्वर शान्त होकर दाह उपद्रव दूर होते हैं। २. गर्भावस्था— इस अवस्था में गर्भाशय के स्रावों को बन्द करता है। तथा गर्भाशय को बलवान बनाता है। एवं गर्भ का भी पोषण करता है। एतदर्थ इसकी केशर को मक्खन के साथ देना चाहिए। अथवा बीजों को (कमलगट्ठा) की पेय बनाकर सेवन कराएँ।
१. पुष्प— (१) शीतल दाह नाशक, हृदय बलवर्धक रक्त वाहनी पर कार्य करता है। हृदय की तेज धड़कन कम होती है।
२. गर्भपात— यह गर्भाशय से रक्त श्राव में पुष्प का फाँट या केशर ± मुलैठी सम भाग के क्वांथ से अधिक लाभकारी है। फाँट—चाय जैसी विधि से बनाया जाता है। अथवा केशर सहित कमल पुष्प को ४ तोले कूटकर १६ तोला १ गिलास जल में थोड़ी देर रखा रहने दें फिर मथानी से मथ देवें खूब झाग उठने पर छानकर ८—८ तोला की मात्रा दिन में दो बार पिलाने से लाभ होता है। सिर दर्द में— कमल पुष्प के साथ, श्वेतवन्दन आमला पीसकर लेप से लाभ होता है। नोट — ये गुण धर्म श्वेत कमल के हैं। लाल में कम होते हैं।
१. स्वादु, पाचक शीतवीर्य, रूचिकर, गर्भ संस्थापक।
२. कमल के भीतर की हरी जीभी, शीतल और तर होती है। हैजे पर बहुत लाभकारी होती है। ज्वर उतारने हेतु— कमल बीज का क्वांच पसीना लाकर ज्वर को उतारता है। इसके क्वांथ में बूरा (शक्कर) मिलाकर पिलाने से खूब पसीना आता है। लू लगने पर भी लाभकारी है तथा बीजों को पानी में भिगोकर पिलाने से तृषा शान्त होती है। मृगी रोग— श्वेत कमल की जड़ सफेद आँक (मदार) की जड़ दोनों समभाग पीस कल्क बना अदरक के रस में घृत की नस्य से—मृगी रोग शान्त होता है। श्वेत प्रदर—कमलगट्टे का चूर्ण भी सुबह शाम देने से या कांजी बनाकर देने से शीध्र लाभ होता है।
नोट — (मखाना—कमलगट्ठे से बनता है।) गर्भपात/ गर्मश्राव— पर इसके बीजों के चूण्र को १/२ ग्राम से ५ ग्राम चूर्ण को दूध के साथ पिलाने से गर्भश्राव व गर्भपात ठीक होता है। मांसपेशियाँ दृढ़ बनती है। मखाना दूध के साथ सेवन करते रहने से कामेच्छा (स्त्री संभोग की इच्छा कम होती है।
१. शुद्ध तिल तेल २५० ग्राम, कपूर, चन्दन का तेल और दालचीनी का तेल, १०—१० ग्राम सबको मिश्र करें।इस तेल को माथे पर मालिश करने से सिर दर्द दूर होता है।
२. नींबू की पत्तियों को कूटकर उनके रस का नाक में नस्य लेने से, हमेशा रहने वाला सिर दर्द ठीक होता है एवं हमेशा के लिए ठीक हो जाएगा।
३. पीपल और वच का नस्य से शीघ्र लाभ होता है। ४. अनार की जड़ को पानी में पीसकर मस्तक पर लगाने से लाभ होगा।
१. लौंग एवं हल्दी चूर्ण पीसकर लगाएँ। २. बैर और नीम के पत्ते समान भाग पीसकर लगाएँ। ३. मोम और मीठा तेल बराबर मात्रा में गरम कर उसमें अखरोट की गिरी मिलाकर लगाएँ। १. पिस्ता— गुण—उष्ण स्निध, मधुर कफपित्त वर्धक इसके गुण बादाम की विजी जैसे हैं—
(१) चबाने से मसूड़े सुदृढ़ होते हैं।
(२) हैजा/प्लेग के दिनों में शक्कर के साथ गुण कारी है।
(३) पके नारियल की गरी + पिस्ता + शक्कर (बूरा मिलाकर सेवन करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
(४) बल वृद्धि कारक है। अधिक सेवन न करें उष्ण है।
२. पित्तपापड़ा— गुण—दीपन, अनुलोमन, मृदु रेचक, बातनाशक कृमिघ्न, विषम ज्वर हर, आत्तर्व, जनन ऋतुश्राव नियामक। नोट— प्रसूता स्त्री को इसकी साग बनाकर खिलाने से इससे प्रसव कालीन स्राव बहुत ही साफ हो जाता है। अनियिमित मासिक धर्म भी ठीक हो जाता है
(१) सिर की खुजली कृमि जू आदि पानी में थोड़ा घोलकर लगाने से पुन: नहीं होते ठीक हो जाता है। (२) हिवका (भयंकर हिचकी) पर पिपरमैंट, कपूर १—१ रत्ती पानी में घोलकर दे हिचकी ठीक हो जाती है। (३) रोहणी तथा कंठ रोगों में लेप से लाभ होता है। (४) हैजा/अतिसार/वमन/पर पिपरमैन्ट, कपूर अजवान का सत्व तीनों मिक्स बराबर लेकर काँच की शीशी में डालकर हिलाने पर घुल जाते हैं। इसे अमृत धारा कहते हैं। बिच्छू— के दंश स्थान पर लगाने से लाभ होता है। ==
पीपल काली रंग की लेड़ी पीपल भी कहते है। अन्दर फोड़ने पर श्वेत रंग जैसी इसकी जड़ को पीपलामूर कहते है। गुण– उष्म, कफ वात, शामक, दीपन लीवर को ठीक करती है। जिसका लीवर खराब हो उसे उम्रानुसार १/ ४ भाग पीपल का चूर्ण दूध में उबालकर पिलाएँ। धीरे—धीरे १/२ पीपल कर दें। फिर ३/४ भाग फिर १ पीपल पीसकर मिलाएँ। पुन: घटाते हुए क्रम में ३/४ भाग, फिर १/२ भाग। लीवर सम्बन्धी समस्त खराबी ठीक होकर लीवर मजबूत हो जाता है। नोट— (१) यदि दूध के साथ लेने से गर्म करें तो मट्ठा (छाछ) से लेना चाहिए। (२) विशेष कर शीत ऋतु में सेवन करना ठीक है। ==
(१) इसमें मूत्रल धर्म उच्च कोटि का उत्तम होने से इसके प्रयोग से मूत्र पिण्डों पर उत्तेजक क्रिया होती है। तथा रक्त का दबाब बढ कर सहज ही मूत्र का प्रवाह दुगना हो जाता है। इसके पेट की सूजन। अश्मरी आदि विकार सहज ठीक हो जाते हैं। एवं सुजाक को घाव खुल जाता है। इससे मूत्र नलिका ठीक हो जाती है।
(२) पाण्डू रोग में लौह भस्म के साथ प्रयोग करने से लाभ होता है।
(३) पेफैफड़ों झिल्ली, सर्वाङ्गशोध, पैरों की सूजन में बहुत लाभ दायक है।
(४) जलोदर में इसके सेवन से हृदय को बल मिलता है
६. ज्यादा सूजन पर— पुननर्वा, दारूहल्दी, हल्दी सौंठ, छोटी हरड़ गिलोय, चित्रकमूल, भारंगी, देवदारू सब समभाग का जौकुट चूर्ण करें। २ तोला चूर्ण ३२ तोला जल में धीमी अग्नि से उबालें। ४ तोला शेष रहने पर पीने से हाथ पैर, मुख और उदर की सूजन ठीक हो जाती है। पाण्डु रोग ठीक हो जाता है।
७. अन्दर का फोड़ा— पुनर्नवा की मूल एवं छाल दोनों का क्वांथ सेवन करने से शरीर के अन्दर का फोड़ा ठीक हो जाता है।
८. फालसा— यह आचार (चिरौंजी) फल जैसा किन्तु बड़ा होता है। इसके वृक्ष २०—२५ फीट तक ऊँचे होते हैं। अप्रैल से जुलाई तक मिलता है देखने में लाल होता है। स्वाद—खट्ठा—मिट्ठा व पकने पर मीठा होता है। गुण— शीतल (ठन्डा) दाह शामक इसका जूस भी निकालते हैं। वातनाशक/कप निस्सारक/शोथहर, दाहहर, शुकदौवण्र्य में लाभकारी है।
१. बड़ी बोतल में १/४ भाग शुद्ध तिल का तेल भर लें। शेष भाग को कुएँ के स्वच्छ पानी से भर दें। दवा तैयार। उपयोग विधि— बोतल को हिलाकर ३०—३० ग्राम दवा १—१ घन्टे के अन्तर से देते रहें। (रोगी को पानी कतई न दें।) रोग अधिक होने पर ६०—६० ग्राम दवा दें। नोट— रोगी कितना ही चिल्लाएँ पानी नहीं दे। वमन और दस्त के मार्ग से बड़े—बड़े कीड़े निकलकर रोगी ठीक हो जायेगा। २. कपूर±सुहागा समभाग २ ग्राम अर्क पोदीना के संग में देने है। अत्यन्त लाभ होता है। ३. अमृत धारा पिलाने से बहुत लाभ होता है। ४. रोगी को नींद आ जाए तो बच जाता है। अत: भैंस के दूध में नमक मिलाकर रोगी के तलवों पर मल दें नींद आ जायेगी।
१. पुराना गौ घृत भोजन के साथ ३—४ बाद दें।
२. मीठी वच, सौंठ, कालाजीरा समभाग का चूर्ण चासनी से चटाएँ खुराक दें।
३. उड़द को सौंठ के साथ काढ़ा बनार पिलाना।
४. आँक के पत्तों का तेल मालिस कराएँ।
५. सौठ±वच का चूर्ण भर चासनी से दें।
१. १० ग्राम चावल को धोवन लेकर १ जायफल को चन्दन की तरह धिसकर चटाएँ वमन तुरन्त मिल जाएगा। २. २—३ नीबू के बीजों को छीलकर १ गिलास जल में १० ग्राम गुलाब जल डालकर पिलाएँ।
लक्षण— छोटा बालक बार—बार कान को छुए एवं रोवे तथा सिर को इधर—उधर पटके तो समझना चाहिए कि कान में पीड़ा हो रही है। चिकित्सा—
१. अदरक श्वरस, सैद्यव तेल मिलाकर हल्का गरम कर कान में डालें।
२. लहसून, अदरक, सहजना, मूली, वरना, केला इनका रस सिद्ध तेल कान में ड़ालें।
३. हींग, सैंधानमक और सौंठ साघित तेल प्रयोग करें।
४. मदार (अंकोआ) के पीले पत्तों का तेल।
५. लौंघ को महीन पीसकर कान में डालने से कान बहना बन्द हो जाता है।
६. समुद्रपेन, सुपारी की राख, कत्था इनको महीन पीसकर कागज की पत्ती बनाकर कान में ठूंस दें। ७. मोर पंख जलाकर कान में महीन पीस डालें।
१.रूमी मस्तंगी ३ ग्राम मिश्री ६ ग्राम दोनों पीसकर मिलाएँ यह खुराक है। गर्म दूध या गर्म पानी से शाम को लेना।
२.जुलाफा + हरड़ ३—३ ग्राम पीसकर गर्म जल वैâसी भी कोष्ठ बद्धता ठीक हो जाती है। ३.स्वर्णाक्षरी (सत्यनासी) के बीजों को हाथ में लेकर कई बार जोर—जोर से दबाते रहने से परवाना साफ हो जायेगा
यह ६ से ७ वर्ष के बालकों को ज्यादा होती है। चिकित्सा विधि—
१. सर्पगन्धा १/४ रत्ती से १/२ रत्ती और मुलैठी चूर्ण १ रत्ती से २ रत्ती प्रवालपंचामृत १/२ रत्ती मिलाकर सीरा से देना चाहिए। ४—४ घन्टे के अन्दर से।
२. फूली फिटकरी, फूला सुहागा बबूल या बच (मीठी बच का चूर्ण) सीरा के साथ या फूला हुआ छुहारा या पिण्डखजूर मिलाकर ४—४ घण्टे के अन्तर से खिलाएँ इससे ३—४ दिन में आराम हो जाता है।
३. सावधानी— बच्चों को धूल धुआ और सर्दी से बचाव रखें। गुड़, शक्कर न देवे। ४. चिकित्सा— सीने पर पीठ पर निम्नमालिस करें— ५ तोला तारपीन का तेल १ तोला पिसा कपूर कड़ी कार्वâ (ढक्कन) लगाकर शीशी को धूप में रखें जब एक हो जाए (इसे काँच की शीशी में रखें) इसकी मालिश करने पर काली खाँसी में आराम होता है।
४. करंज (करेंच को सैक कर फोड़कर सफेद बीजी को पीस कर १० ग्राम चूर्ण बना ले। (बड़ी करेंच की बीज लेना) फिर उसमें ५ गोली मरचादि बटी की मिलाकर पीस लें। ३ से ४ रत्ती चूर्ण को सीरा से देना चाहिए।
५. सितोपलादि चूर्ण में कड़कड़ा सिग्गी मिलाकर दें।
कालीमिर्च, कासनी, मुलैठी, सौंप प्रत्येक को चूर्ण कर छान लें फिर ३ से ६ रत्ती खुराक माँ के दूध के साथ देने से लाभ होता है।
१. यदि दस्त लगते हों तो बेलगिरी, मीठा अतीस, जायफल, बेलगिरी, जीरा, सभी समभाग पीस कर १/४ चम्मच सीरा से देने से लाभ होगा।
२. हरे पीले दस्त उल्टी आने पर पीपल की छाल १ किलो। साफ जगह में जलाकर उसको १ सेर छने पानी में बुझाकर सूखा लें।फिर कपड़े से छानकर रखें। फिर थोड़े से पानी से बच्चे को पिलाएँ हरे पीले दस्त उल्टी आना बन्द हो जाती अधिक प्यास लगना शान्त होती है। ३. जहर मोहरा खताई पिष्टीय १ रत्ती प्रबल पिष्टी १/२ मयूर पिच्छ, भस्म, १/४ रत्ती लौंग के पानी से देना चाहिए उम्रानुसार थोड़ी मात्रा दें। बालक के अधिक सिर दर्द में— १. नारदीय लक्ष्मीविलास रस १/४ रत्ती, गोदन्ती भस्म १/२ रत्ती अदरख रस एवं दूध के साथ दें। २. सिरशूलादिवङ्का रस, १/४ एवं गोदन्ती १/२ रत्ती अदरख रस के साथ दें।
पृष्ठ क्र. ३६१ (आर्युवेदचार्य डा. सत्यनारायण से) (धन्वतरि शिशु रोगाङ्क १९६२)
१. सिद्ध प्रयोग— मृत्युजय रस १ रत्ती त्रिभुवन कीर्ति रस १/२ रत्ती गोदन्ती भस्म १ रत्ती प्रवाल भस्म १/२ रत्ती गोदन्ती भस्म १ रत्ती प्रवाल भस्म १/२ रत्ती मोती भस्म में सिद्ध मकर ध्वज १/२ रत्ती नवासय लौंह १/२ रत्ती १ पुड़िया।इस प्रकार ४ पुड़िया बनाकर रख लें दिन में ३ बार जल या दूध में घोलकर देना चाहिए। यह सैकड़ों रोगियों पर परीक्षित है। मोतीझरा की सर्वोत्तम औषधि है। ७—८ दिन से १५ दिन में रोगी पूर्ण स्वस्थ हो जाता है। पथ्य— अनाज, अन्न बन्द रखें। जूस, दूध, लाई आदि दें।
वैसे चैचक का वैक्सीन (टीका) लगवाने से बच्चों को यह रोग नहीं होता किन्तु किसी को हो जावे तो— (उपाय) १. हुलहुल के पत्तों का रस (रोकथाम) स्वरस पीने से इस रोग का भय नहीं रहता। २. नीम के बीज, बहेड़े के बीज और हल्दी इनको ठन्डे जल के साथ पीसकर पीने से चैचक नही निकलती। ३. ज्वर आने पर चैचक की शंका होने पर वैले के खम्बे का रस, मुलहठी का चूर्ण मिलाकर पीने से शीतला सम्बन्धी विकार नष्ट हो जाते हैं। ४. उम्र के अनुसार वमन।विरेचन (झलन) देने से रोगाणु दूर हो जाते हैं। भय नहीं रहता। ५. घर में उपले की धीमी अग्नि पर गन्धक की धूनी देते रहने से इसके रोगाणु घर में बाहर से नहीं आते। ६. बाँस की छाल, तुलसी, लाख, बिनौला की बीजी, जौं की भूसी और वच, बाह्मी इनकी धूप देने से रोग कम हो जाता है। नोट— चेचक हो जाने पर (शोधन) वमन विरेचन कभी नहीं कराना चाहिए। रोगी को चेचक में १ निम्वादि क्वाथ सर्वश्रेष्ठ है। (१) यदि चैचक निकलते पूर्ण न निकले तो (अन्त: प्रविष्ट हो गई हों) या अच्छी तरह ना निकले तो कचनार की छाल का क्वाथ में स्वर्णमाक्षिक भस्म चूर्ण मिलाकर देने से फिर बाहर निकल आती है। (२) पकी मसूरिका (चैचक) भरने के उपाय— चिरायता, नीम की छाल, कुटकी पित्त पापड़ा इनका क्वाथ मात्रानुसार पीने से चचेक के घाव भर जाते हैं, पकी हुई शीध्र ठीक हो जाती है। (३) यदि आँखों में चैचक (मसूलिका हो तो) मुलहटी, त्रिफला, मूर्वा, दारूहल्दी की छाल, नीलकमल, खश, लोघ, मजीठ, इनको पीसकर ऊपर लेप करें और क्वाथ पीने से आँखों में उत्पन्न हुई मसूरि का नष्ट हो जाती है। (४) काले जीरे के पत्तों का क्वांथ हल्दी का चूर्ण मिलाकर पीने से रोमान्ति का चेचक ठीक होती है।निसौड़ा की छाल जल में पीसकर लेप करने से वेजगत चैचक ठीक हो जाती है।
किसी दूसरे घर की नीम की डाली तुड़वाकर (अपने घर की नीम नहीं) उसमें से प्रत्येक बालक को २१/२ (ढ़ाई) पत्ती के हिसाब से गेरू के रंगे वस्त्र के चीर में हरेक बच्चे के पैर में २—१/२ (ढ़ाई) पत्ती बंधी हुई उत्तम चीर (कपड़े) से बाँध देने से प्रथम तो चैचक निकलती नहीं। यदि निकलती भी है तो बहुत न्यूनयवस्था में ज्वर में रहित शान्त हो जाती है। पथ्य— जौ का जूस, ग्लूकोज, फलों का रस, हल्के पदार्थ लेना चाहिए। भुने चने, मुनक्का शीघ्र पचने वाले पदार्थ देना चाहिए। भुने चने, मुनक्का शीध्र पचने वाले पदार्थ देना चाहिए। दवा से परहेज जरूरी है।
नीम का बाँदा— अधिक लाभकारी नीम का बाँदा घिसकर देह पर लेप करो तथा थोड़े जल में थोड़ा पिला दो तथा घुआँ भी कर दें तो रोगी कुछ घन्टों में शान्ति अनुभव करने लगता है। विशेष भूत भी भाग जाते हैं। इसकी अग्नि जलाकर घर के चारों कोने में प्रत्येक कमरे में धुआँ देकर बाहर फैक दें फिर इसकी १ लकड़ी छोटी सी घर के मूल दरवाजे पर खौंच दें। तो कठिन भूत भी घर छोड़ देता है।
१. गोरोचन को ताबीज में भर कर गले में पहिनाऐ।
२. केवल रेशमी वस्त्र पहिनाएँ।
३. णमोकार मंत्र पढ़ते हुए गौ पुच्छ से बालक का मार्जन करे।
४. देवदारू हल्दी वच खस, केतकी पुष्प के इनको जल में भिगोकर इनका रंग सा वनजावे छानकर स्नान कराएँबालक का रात्रि में डरना बुरे स्पप्न देखना, ग्रह दोष दूर हो जाते हैं। नोट—
(१) बच्चों को डरावने भयंकर खिलौने न दें।
(२) डरावनी पिक्चर टी.वी.से बचाव रखें।
(३) भयानक स्थान मेें ले जाएँ। नदी, तालाब, चौपथ (चौराहा) में जाने आने से बचाव रखें। काली मन्दिर,दुर्गा आदि मन्दिर, दुर्गा मन्दिर, दुर्गा आदि मन्दिर से बचाव रखें।