–दोहा–
शांतिनाथ को नमन कर, चाहूँ आतम शांति।
सर्व उपद्रव शमन कर, पाऊँ सुख अरु शांति।।१।।
विश्वशांति के हेतु मैं, करूँ मंत्र का जाप।
चालीसा के पाठ से, होवें सब निष्पाप।।२।।
पाप बहुल इस सृष्टि में, हो सतयुग का वास।
मैत्री पैâले विश्व में, आपस में सौहार्द।।३।।
–चौपाई–
हो जयवंत भरत का भारत, आर्यावर्त कहा जो शाश्वत।।१।।
जन्मे जहाँ सभी तीर्थंकर, पूज्य धरा वह सर्व हितंकर।।२।।
इस धरती का कण कण पावन, सारे तीर्थ यहीं मन भावन।।३।।
यहाँ धर्म गंगा बहती है, जनता सभी सुखी रहती है।।४।।
सन्त तपस्या में रत रहते, ज्ञानप्रभा युत प्रवचन करते।।५।।
भारत देश तभी तो जग में, धर्मगुरू कहलाया सच में।।६।।
उनके तप का अतिशय भारी, वे ही वरते हैं शिवनारी।।७।।
कहा जैन रामायण में यह, सन्त करें तप त्याग जहाँ पर।।८।।
उस धरती के शासक को भी, मिले पुण्य का छठा अंश भी।।९।।
यह विशेषता है भारत की, धर्मनीति अरु राजनीति की।।१०।।
धर्मगुरू यहाँ पूजे जाते, शासक उनसे शक्ती पाते।।११।।
भक्त यहाँ मंदिर बनवाते, प्रभु को मंदिर में पधराते।।१२।।
गूंजे जहाँ सदा पूजा स्वर, मंगलगान करें सब घर–घर।।१३।।
सभी चाहते जीवन सुखमय, कभी न आवे दु:खों का भय।।१४।।
दुख से डरता है हर प्राणी, फिर भी दुख पाते अज्ञानी।।१५।।
इसमें कारण एक यही है, पुण्य भावनाएँ न रही हैंं।।१६।।
पुण्य का फल सुख सभी चाहते, किन्तु पुण्य करना न चाहते।।१७।।
पाप का फल दुख नहीं चाहते, किन्तु लिप्त हों पाप कार्य में।।१८।।
ये अनादि संस्कार हैं जग में, जिससे प्राणी दुखी है सच में।।१९।।
पर की उन्नति देख न पाता, अपनी ईर्ष्या रोक न पाता।।२०।।
गुण में दोष तभी दिखता है, अपना दोष भी गुण दिखता है।।२१।।
इन भावों से सुख नहिं मिलता, आत्मज्ञान का कमल न खिलता।।२२।।
आत्मशांति तो भंग हुई है, दु:ख अशांति की वृद्धि हुई है।।२३।।
देश जाति भाषा के नाम पर, होते हैं संघर्ष परस्पर।।२४।।
हिंसा अरु आतंक बढ़े हैं, बम विस्फोटक तत्व बढ़े हैं।।२५।।
इनसे शांति मिलेगी वैâसे, प्रेम की कली खिलेगी वैâसे।।२६।।
विश्वशांति के अनुष्ठान हों, जिससे जन–जन का कल्याण हो।।२७।।
एक बात जानो नर नारी, हस्तिनापुर है नगरी प्यारी।।२८।।
जम्बूद्वीप बना जहाँ सुन्दर, ज्ञानमती माता की धरोहर।।२९।।
राष्ट्रपति जी जहाँ पधारीं, जनता ने किया स्वागत भारी।।३०।।
विश्वशांति की ज्योति जलाई, सम्मेलन की धूम मचाई।।३१।।
उच्चकोटि विद्वान् पधारे, धर्म अहिंसा गूंजे नारे।।३२।।
पुन: ज्ञानमति माताजी ने, कहा मनाओ शांतिवर्ष ये।।३३।।
विश्वशांति का मंत्र जपो सब, वातावरण पवित्र करो सब।।३४।।
इससे सबकी रक्षा होगी, परिवारों की सुरक्षा होगी।।३५।।
राज्य राष्ट्र में हो सुभिक्षता, मिट जावे धरती से हिंसा।।३६।।
बाल वृद्ध हों युवा या नारी, शांतिविधान करें सब भारी।।३७।।
दो हजार नौ शांति वर्ष में, राजा और जनता के स्वर ने।।३८।।
एक साथ जब बिगुल बजाया, सबमें अति आनंद समाया।।३९।।
जय हो विश्वधर्म की जय हो, धर्म अहिंसा सदा विजय हो।।४०।।
–शंभु छंद–
यह विश्वशांति का चालीसा, जग की अशांति को दूर करे।
सबके मन परिवर्तित करके, अध्यात्म भाव को पूर्ण भरे।।
”चंदनामती“ सुख शांति चमन का, उपवन पुष्पित सदा रहे।
भारत के संग सब देशों की, मैत्री युत गंगा सदा बहे।।
तर्ज-एक थी राजुल………………..
आज के मानव में कलियुग का, रूप दिखाई देता है।
राम की धरती पर रावण का, रूप दिखाई देता है।।आज के.।।
कहते हैं माँ की ममता, बच्चे पर सदा बरसती है।
कोई कह नहीं सके कि वह, बच्चे की हत्या करती है।।
लेकिन आज की माँ में नागिन, रूप दिखाई देता है।।आज के.।।१।।
सुना है कितना ही धन दे दो, किन्तु न प्राण कोई दे देगा।
क्योंकि प्राण के बदले मानव, दुनिया में क्या सुख देखेगा।।
लेकिन मानव बम में विष का, रूप दिखाई देता है।।आज के.।।२।।
देखो गौ माता बस तृण खा, मीठा दूध पिलाती है।
फिर भी कतलखाने में उन पर, छुरी चलाई जाती है।।
मानव में ही हत्यारों का, रूप दिखाई देता है।।आज के.।।३।।
खेत में खेती कर किसान, मेवा फल अन्न उगाता है।
कलियुग में नर अण्डा मछली, को कृषि कहकर खाता है।।
जिव्हा लोलुपता में उन्हें, सुख चैन दिखाई देता है।।आज के.।।४।।
तप संयम अध्यातम का, निर्यात जहाँ से हुआ सदा।
आज माँस निर्यात वहाँ से, करता मानव कलियुग का।।
इस भौतिक संपति में हिंसक, रूप दिखाई देता है।।आज के.।।५।।
अपने शील से सीता ने जहाँ, नीर बनाया अग्नी को।
आज की नारी फिल्मों में, कर रही प्रदर्शित अंगों को।।
अब सीता में सूपनखा का, रूप दिखाई देता है।।आज के.।।६।।
मातपिता की विनय जहाँ पर, जन्मघूंटि से मिलती है।
आज वहाँ भी उनको अपनों, की प्रताड़ना मिलती है।।
इस कलियुग के रिश्तों में, अपमान दिखाई देता है।।आज के.।।७।।
कलियुग में भी सतयुग का दर्शन चाहो हो सकता है।
एक कहानी से देखो, युगपरिवर्तन हो सकता है।।
इन्सानी भावों में प्रभु का, रूप दिखाई देता है।।आज के.।।८।।
देखो इक राजा ने सुन्दर, बड़ा सरोवर बनवाया।
उसको दूध से भरने हेतू, उसने ढिंढोरा पिटवाया।।
सभी दूध डालें उसमें, आदेश सुनाई देता है।।आज के.।।९।।
राजाज्ञा पाकर जनता ने, अपने हर्ष को दरशाया।
सबके सपनों में अब मानो, क्षीर का सागर लहराया।।
लेकिन एक व्यक्ति के मन में, खोट दिखाई देता है।।आज के.।।१०।।
सोचा उसने सभी दूध, डालें मैं तो जल डालूँगा।
पता किसी को नहीं लगेगा, चतुराई यदि कर लूँगा।।
रात्री में जल डाल के वह, संतुष्ट दिखाई देता है।।आज के.।।११।।
कलियुग का अभिशाप यह देखो, सबके मन में भी आया।
पानी डाल के दूध सरोवर, को देखना सबने चाहा।।
इसीलिए पूरा सरवर, जल भरा दिखाई देता है।।आज के.।।१२।।
चला देखने राजा खुश हो, दूध भरा सरवर अपना।
अपनी प्यारी प्रजा को लेकर, सोचा पूर्ण हुआ सपना।।
मात्र कल्पना करके वह, संतुष्ट दिखाई देता है।।आज के.।।१३।।
राजा पहुँचा निकट सरोवर, हक्का बक्का हुआ तभी।
लाल आँख करके मंत्री से, बोला आज्ञा क्यों न पली।।
बेचारे मंत्री में डर का, भूत दिखाई देता है।।आज के.।।१४।।
शीश झुका मंत्री बोला, राजन्! अब कलियुग आ ही गया।
कर न सकेंगे आप व मैं कुछ, मानो सतयुग चला गया।।
चिन्तायुत राजा-मंत्री में, क्रोध दिखाई देता है।।आज के.।।१५।।
चिन्तन कर राजा ने प्रजा पर, प्रेमपूर्ण दृष्टि डाली।
इस कलियुग को एक बार, सतयुग में बदल देने वाली।।
मानो अब जनता में पुन:, विश्वास दिखाई देता है।।आज के.।।१६।।
बोल पड़े सब एक साथ, राजन्! इक दिन का अवसर दो।
सरवर क्या हम दूध का सागर, भर देंगे चिन्ता न करो।।
फिर सबके मुख पर अद्भुत, संतोष दिखाई देता है।।आज के.।।१७।।
अब देखो उस राज्य में दूध का, भरा समन्दर लहराया।
बड़े-बड़े कलशों में दूध ले, सारा गाँव उमड़ आया।।
राजा देख सरोवर को, संतुष्ट दिखाई देता है।।आज के.।।१८।।
ढोल ढमाके बजे बहुत, राजा ने कहा यह सतयुग है।
अपनी करनी से कर सकते, हम कलियुग में सतयुग हैं।।
इसी धरा पर आज भी राम का, राज दिखाई देता है।।आज के.।।१९।।
दुनिया वालों देखो! मानव, स्वयं ही रूप बदलता है।
खुद को चतुर मान करके, कलियुग को दोषी कहता है।।
इसमें तो ईमान का केवल, दोष दिखाई देता है।।आज के.।।२०।।
बंधुओं! अब आप कलियुग में भी कहीं-कहीं दिखने वाले सतयुग की बात सुनेंगे-
आज के कलियुग में भी सतयुग रूप दिखाई देता है।
जिनवर की प्रतिमा में प्रभु का रूप दिखाई देता है।।टेक.।।
भारत भूमी साधु-साध्वियों, के विचरण से धन्य सदा।
जिनवर के लघुनंदन मुनिवर शांतिसिंधु का जन्म हुआ।।
आज के सन्तों में भी वैसा, रूप दिखाई देता है।। आज के.।।२१।।
संत शृंखला में इक गणिनी, ज्ञानमती माताजी हैं।
जिनने इस कलियुग में भी, नारी शक्ती बतला दी है।।
तभी आज उनमें ब्राह्मी का, रूप दिखाई देता है।।आज के.।।२२।।
दिल्ली में चौबिस कल्पद्रुम, मण्डल एक बार रचवाया।
भक्ती की गंगा में भक्तों, को अवगाहन करवाया।।
इन्हीं अनुष्ठानों से सुख, सन्तोष दिखाई देता है।।आज के.।।२३।।
अन्तर्राष्ट्री ऋषभदेव, निर्वाण महोत्सव करवाया।
प्रधानमंत्री के द्वारा, उसका उद्घाटन करवाया।।
इस उत्सव में व्यसनमुक्ति, उद्घोष दिखाई देता है।।आज के.।।२४।।
तीर्थ हस्तिनापुरी अयोध्या, कुण्डलपुर उद्धार किया।
तीर्थंकर की जन्मभूमियों, का जग भर में प्रचार किया।।
इसीलिए तीर्थों पर नूतन, रूप दिखाई देता है।।आज के.।।२५।।
टी.वी. के माध्यम से सब, घर-घर में सुनते गुरुवाणी।
निज जीवन निर्माण हेतु, जन-जन के लिए जो कल्याणी।।
गुरु भक्ती का अब जनता में, जोश दिखाई देता है।।आज के.।।२६।।
ज्ञानमती माताजी ने अब, शांति वर्ष उद्घोष किया।
राष्ट्रपति प्रतिभा जी ने, उस ज्योति को उद्योत किया।।
तभी ‘‘चंदनामती’’ धरम का, शोर दिखाई देता है।।आज के.।।२७।।
अहिंसा की जय हो-२, सत्यमेव जयते।
अहिंसा ही सबको-२, शांति और सुख दे।।टेक.।।
सारे जग में शांति और सुख इसके ही बल पर हो,
अहिंसा की जय हो-२।।टेक.।।
जब-जब धरती पर अन्याय तथा हिंसा भड़की है।
तब-तब सन्त महापुरुषों से धन्य हुई धरती है।।
इसीलिए सर्वदा न्याय की होती रही विजय है,
अहिंसा की जय हो….।।१।।
इन्सानों में ही हैवान का रूप छिपा रहता है।
उनमें ही भगवान का सच्चा रूप कभी दिखता है।।
जिओ और जीने दो यह ‘‘चंदनामती’’ सुखप्रद हो,
अहिंसा की जय हो।।२।।
अहिंसा प्रधान मेरी इण्डिया महान है।
इण्डिया में जन्मे महावीर और राम है।।
यहाँ की पवित्र माटी बनी चन्दन,
उसे करो सब नमन।।
जहाँ कभी बहती थीं दूध की नदियाँ।
वहाँ अब करुणा की माँग करे दुनिया।।
अत्याचार पशुओं पे होगा कब खतम,
उसे करो सब नमन।।१।।
प्रभु महावीर का अमर संदेश है।
लिव एण्ड लेट लिव का दिया उपदेश है।।
मानवों की मानवता की यही पहचान है।
जाने जो पराए को भी निज के समान है।।
तभी अहिंसा का होगा सच्चा पालन,
उसे करो सब नमन।।२।।
अहिंसा के द्वारा ही इण्डिया प्रâी हुई।
ब्रिटिश गवर्नमेंट की जब इति श्री हुई।।
चाहे हों पुराण या कुरान सभी कहते,
अहिंसा के पावन सूत्र सब में रहते।
यही मेरे देश की कहानी है पुरानी,
अहिंसक देश प्रेमियों की ये निशानी,
‘चंदनामती’ यह देश ऋषियों का चमन।
उसे करो सब नमन।।३।।
प्रभु! मेरा मन कब पावन होगा, पाप रहित कब यह मन होगा।
गुरु वाणी को सुनकर तन-मन पावन होगा।। प्रभु!मेरा.।।
कभी सताया निर्बल प्राणी, हिंसा में आनंद लिया।
कभी झूठ चोरी के कारण, अशुभ कर्म का बंध किया।।
सोचा न इसका क्या फल होगा, पाप रहित कब यह मन होगा।।१।।
कभी पशू बनकर मैंने भी, दु:ख असंख्य उठाये हैं।
कभी नरक में जाकर कर्मों, के फल मैंने पाये हैं।।
पाप कर्म का यही फल होगा, पाप रहित कब यह मन होगा।।२।।
पुण्ययोग से नर तन पाकर, तीरथ व्रत अरु भजन किया।
दीन दुखी की सेवा करके, निज मन को सन्तुष्ट किया।।
इनसे ही सुरगति पावन होगा, पाप रहित कब यह मन होगा।।३।।
नर तन से चारों गतियों का, मार्ग प्राप्त हो सकता है।
नर ही तो ‘चंदनामती’, नारायण भी बन सकता है।।
करना निजातम चिन्तन होगा, पाप रहित कब यह मन होगा।।४।।
ऐसी शक्ति मिले हमको भगवन्! पाप से दूर जब रह सकें हम।
हम चलें मुक्तिपथ के पथिक बन,
पथ से भटकें न प्रभुवर कभी हम।।ऐसी.।।
मन में आए अहं यदि कभी भी, उससे पहले विनय गुण प्रगट हो।
पर को दुख देने से पूर्व निज में, उसकी अनुभूति कर मन सजग हो।।
सबके प्रति सुख व हित भावनाएँ,
मन में आएँ मेरे नाथ हर दम।।ऐसी.।।१।।
मोह ममता में हमने अनादी, काल से अपना जीवन बिताया।
सात व्यसनों में यदि फंस गया तो, नरक पशुगति में जा दुख उठाया।।
रोते रोते वहाँ काल बीता,
पुण्य से पाया फिर मैंने नर तन।।ऐसी.।।२।।
हमको करना है अब प्रभु की भक्ती, और गुरुओं की सत्संगती भी।
इससे ही एक दिन पाऊँ मुक्ती, ‘‘चन्दनामति’’ मिले ऐसी शक्ती।
हँसते-हँसते बिता करके जीवन,
स्वर्ग सम सुख करें प्राप्त हरदम।।ऐसी.।।३।।
विश्वशांति की ज्योति जली, ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा मिली।
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के, द्वारा अहिंसा की ज्योति जली।।टेक.।।
धर्म और विज्ञान ने धरती-का सदैव शृंगार किया।
इक दूजे के पूरक बनकर, नामों को साकार किया।।
दोनों की जोड़ी है लगती भली, ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा मिली।।१।।
कलियुग में विज्ञान ने अपना, धर्म से नाता तोड़ लिया।
अणु-बम एटम-बम निर्मित कर, मानवता को छोड़ दिया।।
इसीलिए गुरुओं की प्रेरणा मिली, ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा मिली।।२।।
बिन लगाम का घोड़ा जैसे, आतंकी बन जाता है।
बिना धर्म के वैसे ही, विज्ञान भी धोखा खाता है।।
इसीलिए दोनों की जोड़ी बनी, ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा मिली।।३।।
शांतिवर्ष यह दो हजार नौ, शांतिदूत बन आया है।
मैत्री का संदेश ‘‘चंदना-मती’’ सभी ने पाया है।।
गूंजे अहिंसा की जय हर गली, ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा मिली।।४।।
शांतिनाथ की जन्मभूमि से, गूँज उठी शहनाई।
विश्वशांति के हेतु राष्ट्रपति जी ने ज्योति जलाई।।
जय हो विश्व धर्म की जय, अहिंसा परम धर्म की जय।
दुनिया के सब देश चाहते, आपस में मैत्री हो।
फिर भी क्यों आतंक बढ़ा है, यह विचार गोष्ठी हो।।
धर्म अहिंसा ने ही देश को……..
धर्म अहिंसा ने ही देश को, आजादी दिलवाई।
विश्वशांति के हेतु राष्ट्रपति जी ने ज्योति जलाई।।
जय हो विश्वधर्म की जय, अिंहसा परम धर्म की जय…।।१।।
जहाँ कभी प्रभु शांतिनाथ ने, छह खण्ड राज्य चलाया।
धर्मनीति अरु राजनीति का, सच्चा पाठ पढ़ाया।।
सत्य-न्याय की वही भूमि………….
सत्य-न्याय की वही भूमि, हस्तिनापुरी कहलाई।
विश्वशांति के हेतु राष्ट्रपति जी ने ज्योति जलाई।।
जय हो विश्वधर्म की जय, अहिंसा परम धर्म की जय…।।२।।
भारत की सर्वोच्च आर्यिका-गणिनी ज्ञानमती माता।
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने, जोड़ा उनसे नाता।।
तभी ‘‘चंदनामती’’ देश ने………
तभी चंदनामती देश ने, नव उपलब्धी पाई।
विश्वशांति के हेतु राष्ट्रपति जी ने ज्योति जलाई।।
जय हो विश्वधर्म की जय, अहिंसा परमधर्म की जय….।।३।।
ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथाय जगत्शान्तिकराय सर्वोपद्रवशान्तिम् कुरु कुरु ह्रीं नम:।