विश्वास
द्वारा -आर्यिका सुदृष्टिमति माताजी
धर्मग्रंथों में वर्णन है विश्वासं फलं दायका। अर्थात किसी बात, वस्तु, आस्था या धर्म पर विश्वास से ही फल की प्राप्ति होती है। इसलिए • ‘मानो तो भगवान हैं और नहीं मानो तो पत्थर श्रीरामचरितमानस में श्रद्धा विश्वास को भवानी शंकर कहकर वंदना की गई है। इस प्रकार प्रत्येक कार्य में विश्वास रखने से ही सफलता मिलती है, क्योंकि विश्वास में बहुत बड़ी शक्ति होती है। अगर मन में विश्वास है तो कठिन से कठिन अगर पर भरोसे के साथ आगे बढ़ना संभव है। अगर विश्वास नहीं तो जीवन की किसी राह में उठायी गया कदम डगमगा सकता है। यदि मन में विश्वास है कि कहीं कोई है, जो हमारी मदद कर रहा है तो व्यक्ति कहीं पर कुछ भी करने में समर्थ हो जाता है और अगर विश्वास नहीं हो तो वह धरातल कमजोर प्रतीत होता है, जिस पर व्यक्ति खड़ा है।
विश्वास मन का संबल और सहारा है, जो व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में आगे बढ़ाने में सहायक होता है। जीवन की किसी परिस्थिति में आगे बढ़ने के लिए सबसे पहले विश्वास करना सीखें। सबसे पहले खुद पर, फिर ईश्वर पर। यदि खुद पर भरोसा नहीं तो फिर आगे बढ़ने की राह पर व्यक्ति कमजोर पड़ जाता है। एक छोटी-सी छलांग लगानी है तो मन में यह विश्वास करना होता है कि हम यह कर सकते हैं। यदि इतना विश्वास नहीं तो छोटी-सी छलांग लगाने से पहले हम हार जाएंगे, उसे पार करना तो दूर की बात होगी।
प्रश्न उठता है कि हम कैसे अपनी शक्तियों को पहचानें? इसके लिए सही उत्तर यही है कि जिस तरह विशाल पेड़ बनने का सामर्थ्य एक छोटे से बीज में छिपा होता है, उसी तरह हमारे अंदर भी अनगिनत संभावनाओं की शक्ति बीज रूप में विद्यमान है। यदि हम स्वयं पर विश्वास नहीं करेंगे. तो उन शक्तियों का कभी उपयोग नहीं कर पाएंगे। स्वयं पर विश्वास करके हम अपनी शक्तियों का सदुपयोग कर सकते हैं और एक विशाल वृक्ष की तरह अपने व्यक्तित्व को महान बना सकते हैं।