विश्व इतिहास की पहली घटना युद्ध क्षेत्र में गौ सेना का प्रयोग
भारतीय संस्कृति का मूलाधार गौवंश सेवा है। हमारे धर्म ग्रन्थों में गाय को माता एवं वृषभ को धर्म कहा गया है। गाय में सभी देवता निवास करते हैं। एकै साधे सब सधे के अनुसार मात्र गाय की सेवा करने से सभी प्रकार के पुण्य फल प्राप्त होते हैं। शिव के दरबार में नन्दी (वृषभ) को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। शिव के साथ नन्दी की भी पूजा की जाती है । कृषक जगत का अर्थ सम्पन्न होना गोवंश पर निर्भर है। गो–वंश की सेवा के बिना भारतीयता की कल्पना संभव नहीं है। युद्ध में विजय पाने के लिए कभी किसी ने युद्ध भूमि में गौ—वंश का उपयोग गाय—सेना के रूप में करके भारतीय धर्म, सभ्यता—संस्कृति को आहत करने का अक्षम्य अपराध किया था। किन्तु यह सत्य है। विश्व इतिहास की यह इकलौती घटना है जब किसी ने युद्ध जीतने के लिए गौ सेना तैयार कर गौ—माता का दुरुपयोग किया। इस गौ—सेना को जानने के लिए ग्यारहवीं सदी में जाना होगा। अवध प्रदेश में भारशिव क्षत्रिय वंशोत्पन्न राजा बिहारीमल भर राज्य करते थे। श्रावस्ती (सावत्थी) उनकी राजधानी थी। राजा बिहारीमल भर शिव एवं गौ—माता के अनन्य उपासक थे। बसंत पंचमी १८ फरवरी १००९ ई. को उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।राज पुरोहित ने उसका नाम सुहेलदेव अथवा सुहृध्वज रखा। राज ज्योतिषी ने कहा कि यह जातक धर्म प्रेमी, धर्म रक्षक महाप्रतापी सम्राट होगा। राजा बिहारीमल के तीन पुत्र और एक पुत्री और हुए। सुहेलदेव बहुत तेजस्वी थे। अल्पवय में उन्होंने सभी प्रकार की विद्याएं आत्मसात् कर लीं ।
उनकी योग्यता एवं लोकप्रियता देख कर भर क्षत्रिय राजा बिहारीमल ने मात्र अठारह वर्ष की उम्र में सन् १०२७ में सुहेलदेव को राजपाट सौंप दिया और रानी जयलक्ष्मी सहित ईश्वर आराधना करने लगे। ग्यारहवीं सदी का प्रारम्भ उथल—पुथल से पूर्ण था। विदेशी आक्रमणकारी भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक सम्पदा को तहस—नहस करने में लगे थे। विदेशी दुर्दान्त लुटेरे इच्छानुसार भारत पर आक्रमण करते थे। भारत में कुछ ऐसे राजा महाराजा भी थे जो अपने विरोधियों को समाप्त करने के लिए विदेशी विधर्मी लुटेरों का सहारा लेते थे, इन भारतीय नरेशों के परस्पर द्वेष ने भारत माता को असहाय कर रखा था। विदेशी आक्रमणकारी महमूद गजनवी ने भी यहां की फूट का लाभ उठाकर भारत की अपार सम्पदा लूटी।यहां की धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक निधि को तहस—नहस करने में कोई कोर कसर नहीं रखी। गजनी लौटते समय मार्ग में ही उसकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के पूर्व उसने अपने भान्जे सैयद सालार मसूद गाजी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। सैयद सालार मसूद गाजी ने एक बड़ी सेना लेकर भारत पर आक्रमण कर दिया। महमूद गजनवी का उद्देश्य भारत को लूटना था किन्तु सैयद सालार मसूद ने लूट के साथ जेहाद को भी अपना ध्येय बनाया। सिन्ध, मुल्तान, कन्नोज, दिल्ली, मेरठ आदि को रौंदता हुआ आगे बढ़ा। बनारस के भर राजा बन्दारस को पराजित किया। अयोध्या रामजन्मभूमि मन्दिर को जमींदोज किया। आतंक के पर्याय सैयद सालार मसूद ने भूरायचा दुर्ग पर आक्रमण कर सुहेलदेव के लघु भ्राता भूरायदेव भर को परास्त किया तथा भ्राता से मिलने आई बहिन अम्बे का अपहरण कर लिया। महाराजा सुहेलदेव को जब यह सब ज्ञात हुआ तो वह क्रोधित हो गए। बन्दारस राजा की पराजय, राम जन्मभूमि का ढहाया जाना, लघु भ्राता भूरायदेव की पराजय, भूरायचा दुर्ग पर सैयद सालार मसूद का अधिकार और प्रिय बहिन अम्बे का अपरहण ये कुछ ऐसी दुर्घटनाएं थीं जिन्होंने महाराजा सुहेलदेव के धैर्य का बांध तोड़ दिया। भारत नरेशों की आपसी फूट से वे भली भांति परिचित थे। वह यह भी जानते थे कि अकेले युद्ध करने पर अनहोनी हो सकती है। अपने अधीन इकत्तीस छोटे राजाओं को अपनी—अपनी सेना तैयार कर एक जुट होकर लड़ने का आदेश महाराजा सुहेलदेव ने दिया। सबने मिलाकर युद्ध नीति तय की।रायसाहब, रायरायब, अर्जुन, भीखन, नगरू, हरगुन, शंकर, बीरबल,जयपाल, श्रीपाल, पाल, रामकरन, हुरखू, नरहर, भल्लर, जूधारी, देवनारायन, दल्लू, नरसिंह, कल्याण, जगमणि, कर्णदेव, बलभद्रदेव, मल्हराय, इचौल, भूरायदेव आदि राजाओं के साथ अशोकपुर जरौल, भरौली, रजदेरवा एवं दुगांव के शासकों ने युद्ध नीति तय कर महाराज सुहेलदेव को समेकित सेना का सेनापतित्व सौंप दिया। हर युग में देशद्रोही रहे हैं । उस समय भी पण्डित कुबेर एवं नन्द महर जैसे कुछ देशद्रोही सैयद सालार मसूद गाजी से जा मिले। महाराजा सुहेलदेव राय भर को कैसे पराजित किया जा सकता है इसका उपाय इन देशद्रोहियों ने सैयद सालार मसूद गाजी को बयाया महाराजा सुहेलदेव की विवशता से मसूद को परिचित करा दिया। पण्डित कुबेर एवं नन्द महर ने गाजी को बताया कि महाराजा सुहेलदेव कट्टर राष्ट्रवादी, विभिन्न भारतीय धर्मों एवं संस्कृति का संरक्षक तथा शिव के अनन्य भक्त एवं गो—वंश प्रेमी हैं। यदि आप मुस्लिम सेना के आगे गौ—सेना करके युद्ध करेंगे तो वह और उसकी सेना मुस्लिम सेना पर हथियार नहीं चला सकेगे। उन्हें यह भय रहेगा कि अस्त्र—शस्त्र चलाने पर कहीं गौ—हत्या न हो जाए और उसे परास्त करने के लिए आप और आपकी सेना इस स्थिति का भरपूर लाभ उठा पायेंगे। पण्डित कुबेर एवं नन्द महर की इस योजना को कार्यान्वित करने का आदेश सैयद सालार मसूद ने तुरन्त दे दिया। गौ सेना तैयार की जाने लगी। नन्द महर ने इस कार्य के लिए अपनी सम्पूर्ण गौवें सैयद सालार मसूद गाजी को सौंप दी एवं और भी व्यवस्था कर एक बृहद् गाय—सेना तैयार कर दी । पण्डित कुबेर एवं नन्द महर की योजनानुसार सैयद सालार मसूद ने अपनी सेना के चारों ओर गौ—सेना का घेरा डाल दिया। महाराजा सुहेलदेव जब युद्ध भूमि में आए, तब पूरा दृश्य देखकर धर्म संकट में पड़ गए।
उन्होंने देखा कि सैयद सालार मसूद की सेना चारों ओर से सुरक्षित है। दुर्दान्त गाजी मियां का वध आवश्यक था अतएव उन्होंने तुरन्त अपनी रणनीति बदल दी। राष्ट्रवीरा महाराजा सुहेलदेव ने अपने सहयोगी राजाओं को आदेश दिया कि हम सबकी प्राथमिकता गौ—माताओं की सुरक्षा होगी अतएव किसी भी स्थिति में तीरों का प्रयोग न किया जाए ताकि गौवों को किसी प्रकार का नुकसान न पहुंचे। तीरों के स्थान पर सरकण्डों का प्रयोग गौ—दल को बिदकाने (तितर—बितर करने) को किया जाए। साथ ही उन्होंने यह भी आदेश दिया कि सुअर झुण्डों का उपयोग गायों को बिदकाने के लिए किया जाए अतएव अधिक से अधिक सुअर एकत्र किए जाएं । यदि ऐसा न हो पाए तो हमारे सैनिक काले कपड़े ओढ़ कर गाय—सेना में घुस पड़े और उन्हें मुस्लिम सेना के आगे से हटाएं। रणनीति के अनुसार गाय—सेना को मुस्लिम सेना के आगे से हटा दिया गया। इस प्रकार गौ—सेवक ,गौ—भक्त महाराजा सुहेलदेव ने गौ रक्षा का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। यह सब देख कर सैयद सालार मसूद गाजी घबरा गया।घोर युद्ध हुआ। दोनों पक्ष के लाखों सैनिक मारे गए किन्तु महाराज सुहेलदेव का पलड़ा भारी पड़ा। सैयद सालार की पूरी सेना मारी गई । सैयद सालार के तीन सेवक ही जीवित बच पाए। अन्त में अपने प्राण बचाने के लिए सैयद सालार मसूद गाजी युद्ध क्षेत्र से भागा और एक झुरमुट में छुप गया किन्तु वह महाराजा सुहेलदेव भर की कोप दृष्टि से नहीं बच पाया। भारत माता के सपूत महाराजा सुहेलदेव ने एक ऐसा तीर मारा जो सीधे सैयद सालार मसूद की गर्दन में जा घुसा। उसकी गर्दन कट कर एक तरफ लटक गई । इस प्रकार १० जून सन् १०३४ को आततायी मसूद गाजी का अन्त हुआ। सैयद सालार मसूद गाजी के एक खादिम सिकन्दर दीवान ने अपने मालिक मसौद गाजी का शव एक महुए के पेड़ के नीचे लिटा दिया और उसका सिर काबा की ओर मोड़ दिया। सैयद सालार मसौद गाजी की मृत्यु के विषय में आयत् हयवत् मसौदी में लिखा है—: निज्द दरियाब कुटिलाजेर दरख्तांगुल चिकां नावकहम चुंमिजान शहीद शुदंद। १० जून की तिथि हिन्दुत्व विजय दिवस है। महाराजा सुहेलदेव ने गौवों की रक्षा की। रामजन्मभूमि ढहाए जाने एवं दूसरे सोमनाथ मन्दिर को ध्वंस करने का प्रतिशोध लिया। मसूद गाजी का वध कर अम्बे देवी को उसके चंगुल से छुड़ाया। अतएव १० जून की तिथि नारी मुक्ति दिवस का भी प्रतीक है। गौ—रक्षक , देश, धर्म, सभ्यता एवं संस्कृति रक्षक महाराजा सुहेलदेव को सुहेलदेव शौर्य सागर में लिखीं निम्नांकित पंक्तियों के साथ हम नमन करते हैं— :
देश औ धर्म, समाज औ सभ्यता, संस्कृति गौरव आंच न आई।
स्वाभिमानी महा, रिपुसूदन वीर, लड़ाई के बीच भी गाय बचाई।।
नारी के मान में, सीना को तान,जीत के जंग रखी हिन्दुआई।
‘‘राजगुरू’’ अस राष्ट्र को नायक, वीर सुहेल की कीजे बड़ाई।।