अर्थ:-वैभव सम्पन्न सुविख्यात पंबुजनगर (हुमचा) में विहार करने वाली निर्गुंडिका वृक्ष में वास करने वाली, कामनाओं को पूर्ण करने वाली, जिनदत्तराय को वर प्रदान करने वाली पद्मावती मेरी रक्षा कीजिए।
”सा तारा खलु देवता भगवतीं मन्यापि मन्यामहे, षष्मासावधि जाड्यसांख्यमगमद् भट्टाकलंकप्रभो:।
अर्थ:- भगवती पद्मावती ने श्री अकलंक भट्ट की सहायता की और शास्त्रार्थ में विजय दिलाई।अंधो मणिमविन्दत ।अर्थ – जैसे किसी अन्धे ने मणि प्राप्त की वैसे ही छद्मस्थ मनुष्यों की स्थिति है” ।
-(पुराणसार संग्रह, आचार्य दामनंदि, भाग १, ३९ पृष्ठ ४०)
अर्थात् एक समय कच्छ, महाकच्छ के पुत्र नमि, विनमि भगवान ऋषभदेव के पास याचना करने आए, तब धरणेन्द्र ने उन दोनों को विजयार्ध पर्वत की उत्तर-दक्षिण श्रेणी का स्वामी बना दिया। भवनवासी देव भी मोक्षगामी होते हैं
‘आज्योतिष्काश्च ये देवास्तेऽनन्तरभवे न हि। शलाकापुरूषा ये तु केचिन्निर्वृतिगामिन:।।’
भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिष्क देव वे अनंतरभव में शलाका पुरुष नहीं होते हैं अर्थात् तीर्थंकर, चक्रवर्ती नारायण, प्रतिनारायण और बलभद्र नहीं होते हैं परन्तु इनमें से कोई मनुष्यभव में आकर मोक्षगामी होते हैं। गुणी के गुण देखो अवगुण नहीं
परगुणपरमाणून् पर्वतीकृत्यनित्यं
अर्थ:-किसी में परमाणुप्रमाण गुण हो तो उसे पर्वताकार वर्णन करने में जिन्हें सुख मिलता है।
परनिन्दासु ये मूका निजश्लाध्यपराङ्मुखा:। ईदृशैयै गुणैर्युक्तास्ते पूज्या: सर्वविष्टपे।।
-(श्रीमद् कुलभद्राचार्य, सार समुच्चय, ८६)
अर्थ:-जो व्यक्ति दूसरों की निन्दा करने में मौन रखते हैं तथा अपनी प्रशंसा से उदासीन हैं, कभी अपनी बड़ाई नहीं करते हैं और जो इस प्रकार के गुणों से युक्त हैं वे सर्व लोक में पूज्यनीय हैं।