हस्तिनापुर के राजा महापद्म अपने बड़े पुत्र पद्मराज को राज्य देकर छोटे पुत्र विष्णुकुमार के पास मुनि हो गये। राजा पद्म के चार मंत्री थे-बलि, बृहस्पति, नमुचि और प्रहलाद।किसी समय इन्होंने शत्रु राजा को जीतकर राजा पद्म से ‘वर’ प्राप्त किया था और उसे धरोहररूप में राजा के पास रख दिया था। एक समय अकंपनाचार्य सात सौ मुनियों के साथ आकर वहाँ बगीचे में ठहर गये। मंत्री जिनधर्म के द्वेषी थे। उन्होंने राजा से अपना वर देने को कहा और उसमें सात दिन का राज्य मांग लिया। राजा को वर देना पड़ा। फिर क्या था, इन दुष्टों ने मुनियों को चारों तरफ से घेर कर, बाहर से यज्ञ का बहाना करके आग लगा दी।
उधर मिथिला नगरी में रात्रि में श्रवण नक्षत्र कंपित होते देख श्रुतसागर आचार्य के मुख से हाहाकार शब्द निकला। पास में बैठे हुए क्षुल्लक जी ने सारी बातें पूछी और उपसर्ग दूर होने का उपाय समझकर, धरणीभूषण पर्वत पर आए। वहां विष्णकुमार मुनि से कहा-भगवन्! आपको विक्रिया ऋद्धि है, आप शीघ्र ही जाकर उपसर्ग दूर कीजिये।
मुनि विष्णुकुमार वहां आये और राजा पद्म से (भाई से) सारी बातें अवगत कर मुनिवेष छोड़कर बलि के पास वामन का रूप लेकर पहुँचे, जहां बलि राजा दान दे रहा था। बलि ने इनसे भी कुछ मांगने को कहा। वामन ने कहा-मुझे तीन पैर धरती दे दो। उसने कहा-आप अपने पैरों से ही नाप लें। बस! वामन विष्णुकुमार ने अपनी विक्रिया से एक पैर सुमेरु पर्वत पर रखा और दूसरा मानुषोत्तर पर्वत पर रखा। तीसरा पैर उठाया किन्तु उसके रखने की जगह ही नहीं थी। इतने में सर्वत्र हाहाकार मच गया, पृथ्वी कंप गई। देवों के विमान परस्पर में टकरा गये। चारों तरफ से क्षमा करो, क्षमा करो, ऐसी आवाज आने लगी।
देवों ने आकर बलि को बांधकर विष्णुकुमार मुनि की पूजा की और सात सौ मुनियों का उपसर्ग दूर किया। विष्णुकुमार मुनि ने मुनियों के प्रति वात्सल्य करके उनका उपकार किया। अन्त में जाकर प्रायश्चित्त आदि लेकर अपनी आत्मा का कल्याण कर लिया। उसी दिन से मुनि रक्षा की स्मृति में श्रावण शुक्ला पूर्णिमा को प्रतिवर्ष रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है।