(कवि धनञ्जय के गृहनिवास का दृश्य है। प्रात:काल का समय है। वे तैयार होकर जिनमंदिर जाने के लिए उद्यत हैं)—
धनञ्जय कवि—अरी ! सुनती हो ! पत्नी—जी, अभी आयी। (कमरे में आकर) कहिए ! क्या कार्य है ?
धनञ्जय—कार्य कुछ नहीं, बस इतना बताने के लिए बुलाया कि मैं जिनमंदिर जा रहा हूँ।
पत्नी—ठीक है स्वामी! किन्तु थोड़ा जल्दी आइएगा, आपको मंदिर में अत्यन्त विलम्ब हो जाता है।
धनञ्जय—ठीक है, ठीक है, जल्दी आने की कोशिश करूंगा। वैसे मैं क्या करूं, मंदिर में जाने के बाद भगवान की भक्ति में इतना लीन हो जाता हूं कि समय का पता ही नहीं लग पाता। (कविवर मंदिर चले जाते हैं और जिनपूजन में तल्लीन हो जाते हैं)
—अगला दृश्य—
जिनमंदिर का दृश्य— कविराज भगवान का अभिषेक कर पूजा करने में तल्लीन हो गए हैं। तभी घर से एक नौकर आकर समाचार देता है।
धनञ्जय कवि—(पूजा करते हुए)शुचि निर्मल नीरं गंध सुअक्षत पुष्प चरू ले मन हरषाए, दीप धूप फल अघ्र्य सु लेकर नाचत ताल मृदंग बजाय। श्री आदिनाथ के चरण कमल पर बलि बलि जाऊं मन वचन काय, हे करुणानिधि भव दुख मेटो यातें मैं पूजों प्रभु पाय।
नौकर—स्वामी ! मालकिन ने कहलाया है कि आप शीघ्र ही घर आ जावें, आपके पुत्र को सर्प ने डंस लिया है।
धनञ्जय- जल फल आठों शुचिसार ताकों अघ्र्य करों, तुमको अरपों भव तार भव तरि मोक्ष वरूं। श्री वीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो, जय वर्धमान गुणधीर सन्मति दायक हो।।(तभी दूसरा नौकर भागा-भागा आता है और कहता है—
नौकर (२)—मालिक ! जल्दी चलिए, आपके पुत्र की हालत बिगड़ रही है, घर में सभी लोग बहुत परेशान हैं।
धनञ्जय— (किसी की बात का ध्यान न देते हुए पूजा में मग्न हैं) जल फल आठों द्रव्य अघ्र्य कर प्रीति धरी है, गणधर इन्द्र नहूतैं थुति पूरी न करी है।। द्यानत सेवक जान के हो जग ते लेहुं निकार, सीमन्धर जिन आदि जिन स्वामी बीस विदेह मंझार।। श्री जिनराज हो भव तारण तरण जिहाज, श्री महाराज हो।।(तभी धनञ्जय कवि के माता-पिता दौड़े-दौड़े आते हैं)—
पिता—अरे बेटा ! जल्दी चल, तेरे पुत्र को सर्प ने डंस लिया है।
माता—बेटे ! अगर जल्दी कुछ नहीं किया तो वह मर जाएगा। (धनञ्जय कवि तब भी पूजा में निमग्न हैं, तब माँ कहती हैं)—
माता—हे प्रभु ! इतनी तल्लीनता, इतनी जिनेन्द्र भक्ति, बेटे का भी होश नहीं है, अरे बेटा ! तू सुनता क्यों नहीं है, तेरा लाल मर जाएगा फिर यह पूजा किस काम की। (उधर घर में पत्नी परेशान है, पुत्र को विष चढ़ता ही जा रहा है। आस-पास के लोग एकत्र हो गए हैं, वह बेचारी घबराकर रोने लग जाती है)—
—अगला दृश्य—
पत्नी—(रोते हुए)—हे भगवन् ! मेरे पुत्र की रक्षा करो। पता नहीं, इसके पिता अभी तक घर क्यों नहीं आए ?
पड़ोसी (१)—हां बहन ! अब तक कितने ही लोग उन्हें बुलाने जा चुके हैं परन्तु ऐसा क्या कारण है कि वह आ ही नहीं रहे हैं ?
पत्नी—अरे वो ! वो तो मगन होंगे अपनी पूजा में, उन्हें घर की सुध कहाँ ? (आखिरकार पत्नी इकलौते पुत्र की गम्भीर स्थिति देखकर कुपित होकर बच्चे को लेकर ही जिनमंदिर में आ जाती है)
—अगला दृश्य—
(जिनमंदिर में धनञ्जय कवि अब भी पूजा में लीन हैं। पत्नी आकर इकलौते पुत्र को उनके सामने डाल देती है और चिल्लाने लगत